SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 622
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य द्रव्यवर्गणाएं वैक्रिय वर्गणा वेव्वियसरीरं ओरालियसरी रातो जतिवि सुहुमयरागं दीसति तहावि तं बहुतरएहि परमाणु संघायनिप्फण्णे हि खंधे हि निष्फज्जति । घणणिचियत्तणेण य ताओ ओरालियसरीराओ सिढिलखंधनिष्कण्णातो !.... जहा वर सकातो पमाणातो अण्णेण त दुगुणपमाणमेण सिढिलखंधणिफणणेण फुट्टपत्थरादिणा दव्वेण सह तोलिज्माणं घणणिचियत्तणेण खंधाणं डहरयंपि दीसमाणं बहुतरायं तुलति । एवं वेउब्वियसरीरं सुहुमतरागंपि दीसमाणं ओरालियसरी पाउग्गखंधे हितो बहुतरएहिं परमाणुसंघाय निष्फण्णेहि खंधेहिं निप्फज्जति । (आवचू १ पृ ४६, ४७) यद्यपि वैक्रिय शरीर बहुत परमाणुस्कन्धों से निष्पन्न होता है फिर भी वह औदारिक शरीर से सूक्ष्म होता है । इसका निचय बहुत सघन होता है । औदारिक शरीर का पुद्गलनिचय शिथिल होता है उसमें सघनता नहीं होती । एक वज्र को अपने प्रमाण से दुगुने प्रमाण वाले प्रस्तरखण्ड से तोलने पर वज्र का तोल अधिक होता है । वह सघन निचय वाले स्कन्धों से निर्मित होने के कारण छोटा दिखाई देता है। वैक्रिय शरीर के लिए भी यही नियम घटित होता है । ५. द्रव्यवर्गणा : गुरुलघु और अगुरुलघु ओरालि उवि आहारगतेअ गुरुलहू दव्वा । कम्मगमणभासाई, एआइ ५७७ Jain Education International वर्गणा औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस- ये चार द्रव्यवर्गणाएं गुरुलघु हैं । कार्मण, मन, भाषा और आनापान ये चार द्रव्यवर्गणाएं अगुरुलघु हैं । ६. अन्य द्रव्यवर्गणाएं अगुरुलहुआ || ( आवनि ४१ ) ओरालियरस गहण पाओग्गा वग्गणा अनंताओ । अग्गहण पाओग्गा तस्सेव तओ अनंताओ || एवमजोग्गा जोग्गा पुणो अजोग्गा य वग्गणाणता । उब्वियाइयाणं नेयं तिविगप्पमेवकेवकं ॥ ( विभा ६३५, ६३६ ) औदारिक शरीर के ग्रहणप्रायोग्य वर्गणाएं अनन्त हैं। उसके अग्रहणप्रायोग्य वर्गणाएं उनसे भी अनन्त हैं । इसी प्रकार वैक्रिय आदि प्रत्येक वर्गणा के तीन-तीन विकल्प बनते हैं--- कर्म वर्गणा से आगे की वर्गणाएं ग्रहण के प्रायोग्य नहीं होतीं। उनमें एक परमाणु की वृद्धि होने पर जघन्य १. अयोग्य २. योग्य और पुनः ३. अयोग्य । ये ध्रुववर्गणा होती । इसी प्रकार एक-एक की वृद्धि होने वर्गणाएं अनन्त हैं । पर अनंत ध्रुववर्गणाएं होती हैं । ध्रुव वर्गणाओं में एकएक परमाणु की वृद्धि होने पर अनंत अध्रुव वर्गणाएं होती हैं । उनमें फिर एक-एक परमाणु की वृद्धि होने पर अनन्त अशून्या- न्तर वर्गणाएं होती हैं । इसी क्रम से अचित्त महास्कंध वर्गणा पर्यंत ज्ञातव्य है । कम्मोवरि धुवेरसुण्णेयरवग्गणा अणंताओ । चवणंतरतणुवग्गणा य मीसो तहाऽचित्तो ॥ ( आवनि ४० ) कर्म वर्गणा के ग्रहण के अयोग्य, उससे अग्रवर्ती वर्गणाएं चौदह हैं१. ध्रुववर्गणा २. अध्रुव वर्गणा ३. शून्यान्तर वर्गणा ४. अशून्यान्तर वर्गणा ५-८. चार ध्रुवानन्तर वर्गणाएं (प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ) ९-१२. चार तनुवर्गणाएं (औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस) १३. मिश्रस्कन्धवर्गणा १४. अचित्तस्कन्धवर्गणा कम्मस्स उवरिल्ला अग्गहणपाउगा दव्ववग्गणा । ताओ एकुत्तरियातो अनंतातो दव्ववग्गणाओ गंता ता अताओ धुववग्गणाओ भवंति । ताओऽवि एकुत्तरियाओ अताओ धुवाओ गंता ताहे अणंताओ अद्भुववग्गणाओ भवति । ताओऽवि एगुत्तरियाओ अनंताओ गंता ताहे अताओ सुन्नंतर वग्गणाओ भवंति । तातोऽवि एकुत्तरियातो अनंताओ गंता ताहे अणंतातो असुण्णंतर वग्गणातो भवंति । चत्तारि ध्रुवणंतराइं चत्तारि सरीरवग्गणातो गंता एत्थ मीसयखंधो भवतित्ति । पच्छा अचित्तमहाखंधो भवति, एवमेयाओ दव्ववग्गणाओ भणियातो । (आवचू १ पृ ४७ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy