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________________ राजीमती 1 दूध, दही, घृत आदि तथा प्रणीत पान भोजन और रसों के वर्जन को रसविवर्जन ( रसपरित्याग ) तप कहा जाता है । यह तप का चौथा भेद है ( द्र. तप) तत्थ नव विगतीतो तं जहा - खीरं दधि नवनीतं सप्पि तेल्लं महुं मज्जं गुलो पुग्गलति । तत्थ पंच खीराणि - गावणं महिसणं उट्टीणं अजाणं एलियाणं, उट्ठीणं दधि नत्थि नवनीतं घयं च णवणीतघयवज्जा चत्तारि खीरा । अतसी कुसुंबसरिसवतेल्लाणि, एयातो विगतीतो लेवाडाति पुण होंति । दो विगडा ट्ठनिप्पण्णं उच्छुमादि पिट्ठनिष्फण्णं फाणिया दोन्नि --- दवगुडो य पिंडगुडो य । मधूणि तिष्णि - मच्छियं कुत्तियं भामरं । पोग्गलाणि जलचरं थलचरं खहचरं अहवा चम्मं मंसं सोणितं । एयातो नव विगतीतो ओगाहिमं च दसमं । ( आवचू २ पृ ३१९ ) रस ( विकृति) के नौ प्रकार हैं--क्षीर, दधि, नवनीत, घृत, तेल, गुड़, मधु, मद्य, पुद्गल (मांस) । • क्षीर के पांच प्रकार- गाय, महिषी, अजा, भेड़ और उष्ट्रिका का दूध 0 उष्ट्रिका के दूध का दही नहीं जमता । अतः दधि, घृत और नवनीत के चार प्रकार ही बनते हैं । तैल के चार प्रकार तिल, अलसी, कुसुम्भ और सरसों -- इन चारों का तैल विकृति ( विगय ) है | शेष तैल विगय नहीं हैं, किन्तु लेपयुक्त हैं । ० गुड़ के दो प्रकार - द्रवगुड़ और पिण्डगुड़ । ० मधु के तीन प्रकार- मधुमक्खी, कुन्त और भ्रमर से प्राप्त माक्षिक, कौन्तिक तथा भ्रामर मधु । ० मद्य के दो प्रकार - काष्ठनिष्पन्न तथा ईक्षुपिष्टनिष्पन्न | ० ० पुद्गल (मांस) के तीन प्रकार जलचरज, स्थलचरज, खेचरज अथवा चर्म, मांस, शोणित । ५४३ ये नव विकृतियां हैं। दसवीं विकृति अवगाहिमघी या तेल में तला हुआ पदार्थ है । विस्तृत विवरण के लिए देखें - ठाणं ९।२३ का टिप्पण ) | राजीमती - भोजकुल के राजन्य उग्रसेन की पुत्री । राजीमती अरिष्टनेमि के पूर्वभव एगम्मि सन्निवेसे गामाहिवस्स सुतो आसि धणनामो कुलपुत्तओ | माउलदुहिया धणवई तस्स भारिया । अन्नया ताई गिम्हयाले मज्भण्हे गयाई पओयणवसेणमरन्नं । दिट्ठो य तत्थ पंथपरिभट्ठो तण्हाछुहापरिस्समाइरेगेण निमीलियलोयणो किच्छपाणी भूमितलमइगतो किससरीरो Jain Education International राजीमती - अरिष्टनेमि के पूर्वभव गोणी । तं च दट्ठूण 'अहो ! महातवस्सी एस कोइ इममवत्थं पत्तो' त्ति संजायभत्तिकरुणेहि सित्तो जलेण, वीइतो चेलंचलेण, संबाहियाणि य धणेण अंगाई | जातो समासत्यो नीतो सग्गामं, पडियरओ य पच्छाऽऽहाराईहि । मुणिणा वि दिन्नो उचिओवएसो । 1 ..... पडिवन्नो य तेहि कालेण जइधम्मो । कालं काऊण सोहम्मे सामाणितो जातो धणो, इयरा वि जातो तस्सेवमित्तो । तत्थ दिव्वसुरसुहमणुभविउ चुतो संतो धणो उववन्नो वेयड्ढे सूरतेयराइणो पुत्तो चित्तगइनामा विज्जाहरराया । धणवई वि सूररायकन्नगा होऊण जाया तस्सेव भारिया रयणवई नाम । आसेवियमुणिधम्मो माहिदे घणो सामाणितो, इयरा य तम्मित्तो जातो । ततो चुतो धणो अवराजितो नाम राया जातो, सावि पिइमई तस्स पत्ती । काऊण समणधम्मं गयाई आरणके कप्पे । धणो सामाणितो जाओ, इयरा वि तम्मित्तो । ततो चुओ धणो संखराया जातो, सा वि जसमई तस्सेव कंता । तत्थ संखो पडिवन्नमुणिधम्मो अरहंत वच्छल्लाइऊहिं निबद्धतित्थयरनामो उववन्नो अवराइयविमाणे । जसमईवि साहुधम्मपहावेण तत्थेवोववण्णा । ततो चविऊण धण सोरियपुरे नयरे दसण्हं दसाराणं जेटुस्स समुद्द्विजयस्स राणो सिवादेवीए भारियाए कुच्छिसि चोद्दसमहासुमिणसूइतो कत्तिय कहबारसीए उववन्नो पुत्तत्ताए । उचियसमएण य सावणसुद्धपंचमीए पसूया सिवादेवी दारयं । ..... अरिनेमित्तिक पिउणा नामं । उग्गसेणरायदुहिया रायमई कन्नगा । सा पुण धणवइजीवो अपराजियविमाणातो चविऊण य तत्थोववन्ना । ( उसुवृ प २७७-२७९) एक सन्निवेश में धन नाम का कुलपुत्र था, जो ग्राम के अधिपति का पुत्र था । उसके धनपति नाम की भार्या थी । एक बार वे दोनों किसी प्रयोजनवश जंगल में गये । ग्रीष्मकाल मध्याह्न का समय । वहां उन्होंने एक कृशकाय मुनि को देखा, जो भूख-प्यास से क्लांत, निमीलितनयन, मूच्छित अवस्था में भूमितल पर लेटा हुआ था। महातपस्वी के प्रति उनके मन में करुणा और भक्ति का भाव जागा, उस पर जल छिड़का, वस्त्र से हवा की और अंगों को दबाया । इससे मुनि को मूर्च्छा टूट गई । वे उसे अपने गांव ले गये और वहां आहार आदि से उसकी परिचर्या की। मुनि ने उपदेश दिया ! अन्तिम वय में उन्होंने भी मुनिदीक्षा ग्रहण की। वहां से मर कर मुनि धन सौधर्म For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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