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________________ मोक्ष का स्वरूप ५३५ मोक्ष भरत ने उनके स्वाध्याय के लिए वेदों की रचना य । तत्थ जो महंत गंथं अहिज्जति सो गंथमेधावी। की, जिनमें अर्हत-स्तुति, मुनिधर्म, श्रावकधर्म और मेरा मज्जाया भण्णति तीए मेराए धावतित्ति मेराशांतिकर्म उपवर्णित थे। मेधावी। (दजिचू पृ २०३) (ब्राह्मण शब्द के प्राकृत रूप दो बनते हैं—माहण मेधावी-अध्ययनार्थावधारणशक्तिमान् मर्यादावर्ती वा । और बंभण । 'माहण' अहिंसा का और 'बंभण' ब्रह्मचर्य ....मेधावी मर्यादानतिवर्ती ॥ (उशाव ५.९०) (ब्रह्म-आराधना) का सूचक है । अहिंसा के बिना ब्रह्म मेधावी दो प्रकार के हैंकी आराधना नहीं हो सकती । इस प्रगाढ़ संबंध से दोनों १. ग्रन्थमेधावी ---महान् ग्रन्थों का अध्येता, बहुश्रुत शब्द एकार्थवाची बन गए । शान्त्याचार्य ने एक स्थान पर ___ अथवा अध्ययन के लिए अवधारणशक्ति संपन्न । 'माहण' की व्याख्या अहिंसक के रूप में की है और शेष २. मर्यादामेधावी - मेधा-मर्यादा के अनुसार चलने स्थानों में 'माहण' का अर्थ उन्होंने ब्राह्मण जाति से वाला, मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करने वाला। संबंधित माना है। देखें--उत्तरज्झयणाणि ९।६ का टिप्पण)। (मेहावित्ति सकृद् दृष्टश्रुतकर्मज्ञः-जो एक बार देखे मिथ्याकार-सामाचारी का एक भेद । अनुचित हुए या सुने हुए कार्य को करने की पद्धति जान जाता है, वह मेधावी होता है। ---उपासकदशावत्ति पत्र २१८) कार्य होने पर 'मेरा पाप निष्फल । हो' ऐसा कहना। (द्र. सामाचारी) मोक्ष-कर्मबन्धन से मुक्त अवस्था । मिथ्यादृष्टि-मिथ्यात्व, सत्य के प्रति विपरीत १. मोक्ष का स्वरूप दृष्टि। (द्र. गुणस्थान) २. मोक्ष का मार्ग मिथ्याश्रुत -मिथ्यादृष्टि का श्रुतज्ञान • ज्ञान-क्रिया-समन्वय से मोक्ष (द्र. वाद) (द्र. श्रुतज्ञान) ३. मोक्ष : साध्य और सिद्धि मुनि-ज्ञानी, साधु । * मोक्ष से पूर्व की अवस्था (द्र. सिद्ध) * जीव और कर्म का संबंध अनादि ....... 'नाणेण य मुणी होइ........। (उ २५।३०) (द्र. कर्म) ४. अनादि संबंध का अंत कैसे ? विजाणतीति मुणी, सावज्जेसु वा मोणवतीति मुणी । | * मोक्ष का स्थान (द्र. ईषत्प्राग्भारा) (दअचू पृ २३३) जो ज्ञान की आराधना करता है, वह मुनि होता है। १. मोक्ष का स्वरूप जो ज्ञाता है, वह मुनि है अथवा जो सावध कार्यों के ....... अट्ठविहकम्ममुक्को नायव्वो भावओ मुक्खो ।। प्रति मौन रहता है, वह मुनि है। मोक्षः अष्टविधक च्छेदः । क्षायिकभाव एवात्मनो मुणति-प्रतिजानीते सर्व विरतिमिति मणिः । मुक्तत्वलक्षणो मोक्षः । (उनि ४९७ शाव प ५५५) (उशावृ प ३५७) मुक्त जो सर्वविरति की प्रतिज्ञा करता है, वह मुनि है। मोक्ष का अर्थ हैमुनि को जीवनचर्या । (द्र. श्रमण) १. ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का समूल उच्छेद। मुनिसुव्रत-उन्नीसवें तीर्थंकर। (द्र. तीथंकर) २. आत्मा का क्षायिकभाव में प्रतिष्ठित होना। मूल-प्रायश्चित्त का आठवां प्रकार ।। बन्धं जीवकर्मयोगदुःखलक्षणं, मोक्षं च तद्वियोगसुख(द्र. प्रायश्चित्त) लक्षणम् । (दहावृ प १५९) मेधावी-अर्थ के ग्रहण और अवधारण में कुशल । जीव और कर्म का संबंध होना बंध है। उसका ___ मर्यादावान् । लक्षण है-दुःख । कर्म के योग से विमुक्त होना मोक्ष है। मेधावी दुविहो, तं जहा-गंथमेधावी मेरामेधावी उसका लक्षण है-अव्याबाध सुख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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