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________________ महाव्रत ५३० मृषावाद का स्वरूप साधु-मर्यादा का अतिक्रमण कर प्राणों का अतिपात मुसावाओ य लोगम्मि, सव्वसाहहिं गरहिओ। करना प्राणातिपात है। अविस्सासो य भूयाणं, तम्हा मोसं विवज्जए । प्राणाः-इन्द्रियादयः तेषामतिपातः प्राणातिपात:-- (द ६।१२) जीवस्य महादुःखोत्पादनं, न तु जीवातिपात एव । इस समूचे लोक में मृषावाद सब साधुओं द्वारा गहित है और वह प्राणियों के लिए अविश्वसनीय है। (दहावृ प १४४) केवल जीवों को मारना ही अतिपात नहीं है, उनको अत: निर्ग्रन्थ असत्य न बोले । किसी प्रकार का कष्ट देना भी प्राणातिपात है। ८. सत्य महाव्रत की भावना हिंसा के द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव दोच्चे महव्वते मुसावायाओ वेरमणं, तस्स खलु पाणातिपाते चतुम्विहे, तं जहा -दव्वतो खेत्ततो इमाओ पंच भावणाओ"हासं परियाण ति से निग्गंथे". कालतो भावतो। दव्वतो छस् जीवनिकाएस, खेत्ततो अणुवीइभासए""क्रोधं परियाणति""लोभं परियाणति.. सव्वलोगे, कालतो दिया वा राओ वा, भावतो रागेण वा । भयं परियाणति'..। (आवच २ पृ १४४) दोसेण वा । सत्य महाव्रत की पांच भावनाएं(दअचू पृ८०) १. हास्य विवेक। प्राणातिपात के चार प्रकार २. विमर्शपूर्वक बोलना। द्रव्यत:-छह जीवनिकाय । ३. क्रोध विवेक। क्षेत्रतः-समूचा लोक । ४. लोभ विवेक। कालतः-दिन-रात । ५. भय विवेक। भावतः-राग-द्वेष । ६. मृषावाद का स्वरूप ७. सत्य महाव्रत मुसावातो नाम असच्चवयणं । साधणमधितं तमसच्चं दोच्चे भंते ! महव्वए मूसावायाओ वेरमणं । सत्तऽहियं असच्चति वयणाओ। किंच अहितं ? जं सव्वं भंते ! मुसावायं पच्चक्खामि-से कोहा वा लोहा साधुमेरातिक्कमणंति । वा भया वा हासा वा, नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहि मुसं मृषावाद का अर्थ है-असत्य वचन । साधु के लिए वायावेज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समणजाणेज्जा जाव- जो अहितकर है, वह असत्य है । साधु की मर्यादा का ज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि अतिक्रमण ही अहित है। न कारवेमि करतं पि अन्नं न समण जाणामि । मुसावाते चउविहे, तं जहा-दव्वतो सव्वदव्वेसु, (द ४ सूत्र १२) खेत्ततो लोगे वा अलोगे वा, कालतो दिया वा रातो वा, भावतो कोहेण वा लोभेण वा भतेण वा हासेण वा । भन्ते ! दूसरे महाव्रत में मृषावाद की विरति होती (दअचू पृ ८२) मृषावाद के चार प्रकारभन्ते ! मैं सर्व मृषावाद का प्रत्याख्यान करता हैं। द्रव्यत:-सब द्रव्य । क्रोध से या लोभ से, भय से या हंसी से, मैं स्वयं क्षेत्रत:--लोक और अलोक । असत्य नहीं बोलूंगा, दूसरों से असत्य नहीं बुलवाऊंगा कालत:-दिन-रात । और असत्य बोलने वालों का अनुमोदन भी नहीं करूंगा, भावत:-क्रोध, लोभ, भय और हास्य । यावज्जीवन के लिए, तीन करण तीन योग से-मन से, मृषावाद के छह कारण वचन से, काया से न करूंगा, न कराऊंगा और करने क्रोधाद्वा त्वं दास इत्यादि । मानाद्वा अबहुश्रुत एवाहं वाले का अनुमोदन भी नहीं करूंगा। बहश्रत इत्यादि। मायातो भिक्षाटनपरिजिहीर्षया पादसच्चं-अणुवघायगं परस्स वयणं । (दअचू पृ ११) पीडा ममेत्यादि । लोभाच्छोभनतरानलाभे सति प्रान्तस्यजो वचन दूसरे का उपघात नहीं करता, वह सत्य है। षणीयत्वेऽप्यनेषणीयमिदमित्यादि। यदि वा 'भयात्' __ (आवचू २ पृ ९३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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