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________________ मनुष्य की आयुस्थिति सब दोषों से मुक्त, सर्वत्र समतल और रमणीय होती है । ७. सम्मूच्छिम मनुष्य के उत्पत्ति स्थान अंतमणुसखेत्ते पणयालीसाए जोयणसय सहस्सेसु अड्ढाइज्जेसु दीव-समुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमीसु छप्पन्नाते अंतरदीवएसु गन्भवक्कंतियमणुस्साणं चेव उच्चारेसु वा पासवणेसु वा खेलेसु वा सिंघाणेसु वासु वा पित्सु वा सोणिएसु वा सुक्केसु वा सुक्कपोग्गल परिसाडेसु वा विगयजीवकलेवरेसु वा थी पुरिससंजोगेसु वा गामणिद्धमणेसु वा नगरणिद्धमणेसु वा सव्वेसु चेव असुइट्ठाणेसु वा, एत्थ णं सम्मुच्छिममणुस्सा समुच्छंत ( नन्दीहावृ पृ३३ ) पैंतालीस लाख योजन प्रमाण मनुष्यक्षेत्र में अढ़ाई द्वीप समुद्रों, पन्द्रह कर्मभूमियों, तीस अकर्मभूमियों तथा छप्पन अन्तद्वीपों के गर्भज मनुष्यों के उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, सिंघाण, वमन, पित्त, शोणित, शुक्र, परिशारित शुक्रपुद्गल, मृतकलेवर, स्त्रीपुरुष संयोग, ग्रामनालियों नगरनालियों तथा सब अशुचि स्थानों में सम्मूर्छिम मनुष्य पैदा होते हैं । अवगाहना... आयुष्य अंगुलस्म असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए असन्नी मिच्छादिट्ठी अन्नाणी सव्वाहि पज्जत्तीहि अपज्जत्तगा अंतमुत्ताउया चेव कालं करंति । ( नन्दीहावृ पृ ३३ ) संमुच्छिमाणं चउव्वीस मुहुत्ता अंतरं अंतोमुहुत्तं च ठिती । ( अनुचू पृ ६९) सम्मूच्छिम मनुष्य की अवगाहना है-अंगुल का असंख्यातवां भाग । वह असंज्ञी, मिध्यादृष्टि, अज्ञानी और अपर्याप्त होता है । उसका आयुष्य अन्तर्मुहुर्त तथा अंतर काल चौबीस मुहूर्त का होता है । ८. मनुष्य की आयुस्थिति पलिओ माई तिणि उ, उक्कोसेण आउट्टिई मणुयाणं, अंतोमुहुत्तं मनुष्य की आयुस्थिति जघन्यतः उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की है । कायस्थिति वियाहिया । जहनिया ॥ Jain Education International ५१७ ( उ ३६।२०० ) अन्तर्मुहूर्त और पलिओ माई तिणि उ, उक्कोसेण वियाहिया । पुव्वकोडी पुहते, अंतमुत्तं जहन्निया ॥ ( उ ३६।२०१) मनुष्य मनुष्यों की काय स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टत: पृथक्त्व (दौ से नो तक) करोड़ पूर्व अधिक तीन पल्योपम है | पंचिदिकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । सत्तभवग्गणे ( उ १०/१३) अधिक सात आठ जन्म उसी कार्य में पंचेन्द्रिय काय में उत्पन्न हुआ है । ( पांच इन्द्रिय वाले जीव लगातार एक सरीखे सातअन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्टतः पृथक्त्व कोटि पूर्व अधिक तीन आठ जन्म ले सकते हैं । मनुष्यों की कायस्थिति जघन्यतः पल्योपम है । यह तीन पत्योपम की भवस्थिति यौगलिक मनुष्यों की होती है। शेष मनुष्यों की उत्कृष्ट भवस्थिति एक कोटिपूर्व की होती है । एक कोटिपूर्व आयुष्य वाले मनुष्य के सात भवों का कालमान सात कोटिपूर्व होता है । वही मनुष्य आठवां भव यदि यौगलिक का करता है तब कुल मिलाकर उसकी स्थिति तीन पल्य और सात पूर्वकोटि की हो जाती है। जीवाजीवाभिगम ९।२२५) अन्तरकाल ... अनंत कालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । ( उ ३६।२०२ ) मनुष्य का अन्तरकाल ( मनुष्य के काय को छोड़कर पुन: उसी काय में उत्पन्न होने तक का काल ) जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः अनन्त काल का है । अवगाहना ग्रहण कर सकता जीव अधिक से शरीरस्यावगाहना तत् जघन्यम् - अंगुलासंख्येयभागलक्षणम् उत्कृष्टं - त्रिगव्यूतप्रमाणम्) । मनुष्य के शरीर की जघन्य असंख्येय भाग और उत्कृष्ट ( तीन कोस ) प्रमाण होती है । संख्या परिमाण ( आवमवृप ४४६ ) अवगाहना अंगुल का अवगाहना तीन गव्यूत For Private & Personal Use Only gri ओरालिया बद्धेल्लिया सिय संखिज्जा सिय असंखेज्जा, जहण्णपदे संखेज्जा । गब्भवक्कंतिया णिच्चकालमेव संखेज्जा, परिमितक्षेत्रवर्तित्वात् महाकायत्वात् प्रत्येकशरीरत्वाच्च । ( अनुचू पृ ६८ ) गर्भज मनुष्य सदा संख्येय होते हैं, क्योंकि उनका www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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