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________________ मनुष्य ५१४ मनुष्य के प्रकार • मनःपर्यवज्ञान विपर्ययज्ञान नहीं होता, केवलज्ञान भी * लेश्या की स्थिति (द्र. लेश्या) विपर्ययज्ञान नहीं होता। * चार प्रकार की सामायिक (द्र. सामायिक) मनःपर्याप्ति-मन के योग्य पुद्गलों का ग्रहण, * अवधिज्ञान का संस्थान (द्र. अवधिज्ञान) परिणमन और उत्सर्ग करने वाली । १. मनुष्य के प्रकार पौद्गलिक शक्ति की प्राप्ति । (द्र. पर्याप्ति) जि मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमा य मणुया, गब्भवक्कंतिया तहा ।। मनुष्य-विकास की सर्वाधिक क्षमता रखने वाला (उ ३६।१९५) प्राणी। मनुष्य के दो प्रकार हैं-सम्मूच्छिम और गर्भ व्युत्क्रान्तिक । १. मनुष्य के प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिक के निर्वचन २. कर्मभूमिज मनुष्य ___गर्ने व्युत्क्रान्ति:-उत्पत्तिर्येषां ते गर्भव्युत्क्रान्तिकाः, ३. अकर्मभूमिज मनुष्य अथवा गर्भाद् व्युत्क्रान्तिः-- व्युत्क्रमणं निष्क्रमणं येषां ते ४. अन्तर्वीपज मनुष्य गर्भव्युत्क्रान्तिकाः, उभयत्रापि गर्भजा इत्यर्थः । ५. अन्तीपज तिर्यच (नन्दीमव प १०२) ६. छप्पन अन्तःप १. जिनकी गर्भ में व्युत्क्रांति/उत्पत्ति होती है, वे • क्षेत्रीय वैशिष्ट्य गर्भव्युत्क्रांतिक/गर्भज हैं। ७. सम्मूच्छिम मनुष्य के उत्पत्ति स्थान २. जिनका गर्भ से व्युत्क्रमण/निष्क्रमण होता है, वे ८. मनुष्य को आयुस्थिति गर्भव्युत्क्रांतिक/गर्भज हैं। ० कायस्थिति गब्भवतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया। ० अन्तर काल अकम्मकम्मभूमा य, अंतरद्दीवया तहा ।। • अवगाहना (उ ३६।१९६) ० संख्यापरिमाण गर्भज मनूष्य तीन प्रकार के हैं-१. कर्मभूमिज २. अकर्मभूमिज और ३. अन्तर्वीपज। ९. मनुष्यभव की प्राप्ति का हेतु पन्नरस तीसइ विहा, भेया अट्ठवीसइं। १०. चार अंग दुर्लभ संखा उ कमसो तेसि, इइ एसा वियाहिया ।। ११. मनुष्य भव की दुर्लभता : बस दृष्टान्त (उ ३६।१९७) १२. आर्यक्षेत्र की दुर्लभता सम्मूच्छिमा-वान्तादिसमुद्भवाः । कर्मभूमका:१३. पूर्ण इन्द्रियों की दुर्लभता पञ्चदशकर्मभूमिजाताः। अकर्मभ्रमका: --विशदकर्म१४. श्रुति की दुर्लभता और उसके हेतु भूमिजाताः। अन्तरद्वीपका:-षट्पञ्चाशत् अन्तरद्वीपेषु १५. श्रद्धा की दुर्लभता जाताः। (आवमवृ प ४३९) १६. आचरण की दुर्लभता मनुष्य के चार प्रकार हैं१७. दुर्लभता के अन्य प्रकार ० सम्मूच्छिम –वान्त, उच्चार-प्रस्रवण आदि चौदह • मनुष्य जन्म : दस अंग स्थानों में उत्पन्न होने वाले। १८. मनुष्य को दस अवस्थाएं ० कर्मभूमिज-पन्द्रह कर्मभूमियों में उत्पन्न होने वाले। * मनुष्य गति : शुभ नामकर्म (द्र. कर्म) ० अकर्मभूमिज-तीस अकर्मभ्रमियों में उत्पन्न होने * मनुष्य में शरीर (द्र. शरीर) वाले। शरीर की अवगाहना का माप (द्र. अंगुल) ० अन्तर्वीपज-छप्पन अन्तर्वीपों में उत्पन्न होने * आयुष्य का माप (द्र. पल्योपम) वाले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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