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________________ व्यवहार भाषा के प्रकार ४९३ भाषा ६. द्वेषनिश्रित-द्वेष सहित बोलना । देखकर कहना-ओह! यह कितना बड़ा जीवों ७. हास्यनिश्रित-हंसी में बोलना । का समूह है। ८. भयनिश्रित-डरकर बोलना । ५. अजीव-मिश्रित-कड़े-कचरे के ढेर को देखकर यह ९. आख्यायिकानिश्रित-कहानी कहते समय असंभव कहना-'यह सब अजीव है' किन्तु इसमें बहुत से बातें कह देना। जीव भी हो सकते हैं। १०. उपघातनिश्रित-प्राणियों की हिंसा हो, ऐसी ६. जीवाजीव-मिश्रित-जीव-अजीव की राशि में भाषा बोलना। अयथार्थ रूप में यह बताना कि इसमें इतने जीव हैं तत्थ मुसावातो चउन्विहो, तं जहा-सम्भावपडि- और इतने अजीव । सेहो असब्भूयुब्भावणं अत्यंतरं गरहा। तत्थ सब्भावपडि- ७. अनन्त-मिश्रित-आलू, ककड़ी आदि का समूह सेहो णाम जहा णत्थि जीवो नत्थि पूण्णं नत्थि पावं देखकर कहना-'यह सब तो अनन्तकाय है।' नत्थि बंधो णत्थि मोक्खो एवमादी । असन्भूयुब्भावणं नाम ८. प्रत्येक-मिश्रित-ककड़ी, आल आदि का समूह जहा अत्थि जीव (सव्ववावी) सामागतंदुलमेत्तो वा एव- देखकर कहना-'यह सब प्रत्येककाय है।' मादी। पयत्थंतरं नाम जो गावि भणइ एसो आसोत्ति । ९. अद्धा-मिश्रित -दिन-रात आदि काल के विषय में गरहा णाम 'तहेव काणं काणित्ति' एवमादी । मिश्र वचन बोलना। (दजिच पृ १४८) १०. अद्धाद्धा-मिश्रित-दिन या रात के एक भाग को मृषावाद के चार प्रकार हैं अद्धाद्धा कहते हैं। प्रधम पौरुषी के काल में यह १. सदभाव प्रतिषेध–जो है, उसके विषय में कहना कि कहना कि मध्याह्न हो गया है-यह अद्धाद्धा-मिश्रित यह नहीं है। जैसे जीव आदि हैं, उनके विषय में कहना कि जीव नहीं है, पुण्य नहीं है, पाप नहीं है, हा व्यवहार भाषा के प्रकार बंध नहीं है, मोक्ष नहीं है आदि । आमंतणि आणमणी जायणि तह पुच्छणी य पण्णवणी । २. असद्भाव उद्भावना--जो नहीं है, उसके विषय में पच्चक्खाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा य॥ कहना कि यह है । जैसे आत्मा के सर्वगत, सर्वव्यापी अणभिग्गहिता भासा भासा य अभिग्गहम्मि बोधव्वा । न होने पर भी उसे वैसा बतलाना अथवा उसे संसयकरणी भासा वोकड अव्वोकडा चेव ।। श्यामाक तन्दुल के तुल्य बताना । (दनि १७८, १७९) ३. अर्थान्तर-जो है, उसको अन्य बताना। जैसे गाय व्यवहार भाषा के बारह प्रकार हैंको घोड़ा कहना आदि । १. आमंत्रणी-संबोधन करना । ४. गर्दा -जैसे काने को काना कहना। २. आज्ञापनी--आज्ञा देना। मिश्रभाषा के प्रकार ३. याचनी-याचना करना । उप्पण्ण विगत मीसग जीवमजीवे य जीव अज्जीवे । ४. प्रच्छनी-पूछना, किसी विषय में सन्देह होने पर तहऽणंतमीसिया खलू परित्त अद्धा य अद्धद्धा ।। पूछकर उसकी निवृत्ति करना। (दनि १७७) ५. प्रज्ञापनी--प्ररूपण करना। मिश्रभाषा के दस प्रकार हैं - ६ प्रत्याख्यानी-त्याग करना। १. उत्पन्न-मिश्रित जिस नगर में जितने बच्चों को ७. इच्छानुलोमा-इच्छानुसार अनुमोदन करना। जन्म हुआ है, उससे न्यूनाधिक बताना । ८. अनभिगहीता-अपनी सम्मति प्रकट न करना। २. विगत-मिश्रित-इसी प्रकार मरण के विषय में ९. अभिगहीता-सम्मति देना। न्यून और अधिक बताना । १०. संशयकारिणी-जिस शब्द के अनेक अर्थ हैं, उसका ३. उत्पन्न-विगत-मिश्रित-जन्म-मृत्यु - दोनों के विषय प्रयोग करना। ___ में न्यूनाधिक बताना। ११. व्याकृत-विस्तार सहित बोलना, जिससे स्पष्ट ४. जीव-मिश्रित-जीव-अजीव की विशाल राशि को समझ में आ जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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