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________________ भाव ४८६ भावना का निर्वचन सन्निवादितो भावोऽन्यभावेन सह निपात्यत इति सम्मत्त-नाण-दसण-सिद्धत्ताई तु साइओऽणतो । संनिपातिकः। अविरोधेन वा द्विकादिनैकत्र मेलकः नाणं केवलवज्जं साई संतो खओवसमो।। सन्निपातकः। (अनुचू पृ४४) मइअन्नाणाईया भव्वाऽभव्वाण तइयचरमोऽयं । ० एक भाव का दूसरे भाव के साथ निपात-संयोग सम्वो पोग्गलधम्मो पढमो परिणामिओ होइ ।। सान्निपातिक भाव है। भव्वत्तं पुण तइओ जीवा-ऽभव्वाइं चरमभंगो उ । ० अविरोध रूप से दो, तीन, चार अथवा पांच भावों भावाणमयं कालो भावावस्थाणओऽणण्णो । का संयोग होना सन्निपात है । (विभा २०७७-२०८१) पांच भावों के चार विकल्प हैं१५. भाव : सादिसपर्यवसित आदि चार विकल्प १. सादि-सपर्यवसित ३. अनादि-सपर्यवसित जो नारगाइभावो तह मिच्छत्तादओ वि भव्वाणं । २. सादि-अपर्यवसित ४. अनादि-अपर्यवसित । ते चेवाभव्वाणं ओदइओ वितियवज्जोऽयं । कौन सा भाव किस विकल्प में समवतरित होता है, सम्मत्त-चरित्ताइं साई संतो य ओवसमिओऽयं । यो लिवदाणाइलद्धिपणगं चरण पि य खाइओ भावो ।। भावों के समवतार का यंत्र संख्या) विकल्प । औदयिक औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक | पारिणामिक सादि नारक आदि भव | औपशमिक | क्षायिक चारित्र, प्रथम चार पुद्गल में | सपर्यवसित सम्यक्त्व, दान आदि पांच लब्धियां ज्ञान यणुक आदि औपशमिक (भवस्थ केवली की चारित्र अपेक्षा) सादि क्षायिक सम्यक्त्व, केवलअपर्यवसित ज्ञान, केवलदर्शन, सिद्धत्व अनादि कषाय, तीन वेद, मति-श्रुत अज्ञान भव्यत्व | सपर्यवसित | अज्ञान, असंयत, (भव्य जीवों असिद्धत्व, लेश्या की अपेक्षा) (भव्य जीवों की अपेक्षा) अनादि कषाय, तीन वेद, मति-श्रुत अज्ञान जीवत्व, अपर्यवसित अज्ञान, असंयत, (अभव्य जीवों अभव्यत्व असिद्धत्व, लेश्या की अपेक्षा) (अभव्य जीवों की अपेक्षा) भावना -पुनः पुनः अभ्यास । विविध संकल्पों से १. भावना का निर्वचन मन को भावित/वासित करना । भाव्यते-आत्मसान्नीयतेऽनयाऽऽत्मेति भावना। (उशाव प ७१०) १. भावना का निर्वचन भाव्यत इति भावना ध्यानाभ्यासक्रियेत्यर्थः । २. ज्ञान आदि भावनाएं (आवहाव २ प ६२) ३. कान्दपी आदि भावनाएं जो आत्मा को भावित करती है, आत्मसात् करती * अनित्य आदि भावनाएं (द्र० अनुप्रेक्षा) है, वह भावना है। * पच्चीस भावनाएं (द्र० महाव्रत) ध्यान के योग्य चेतना का निर्माण करने वाली ध्यान के अभ्यास की क्रिया का नाम है भावना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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