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________________ आराधना-विराधना का परिणाम अंगबाह्य द्वादशांग गणिपिटक में अनन्त भावों, अनन्त अभावों, निवेसेण अण्णहा पण्णवेतो ताए अत्थाणाए सुत्तं विराअनन्त हेतओं, अनन्त अहेतुओं, अनन्त कारणों, अनन्त हेत्ता तीते काले अणंता जीवा संसार भमितपूव्वा, गोदाअकारणों, अनन्त जीवों, अनन्त अजीवों, अनन्त भव- माहिलवत् । (नन्दीचू पृ८१) सिद्धिकों, अनन्त अभवसिद्धिकों, अनन्त सिद्धों, अनन्त द्वादशांग गणिपिटक को सूत्रतः स्वीकार करते हए असिद्धों का उल्लेख है। भी जो अपने अभिनिवेश के कारण उसके अर्थ की अन्यथा ११. द्वादशांग और आज्ञा को एकार्थकता प्ररूपणा करते हैं, वे वास्तव में सूत्र की विराधना करते दुवालसंग"आणा य एवं एगट्रिता तहा वि अभिधाणतो है। इससे अतीत काल में अनंत जीवों ने संसार में विसेसो कज्जति-यदा आज्ञाप्यते एभिः तदा आज्ञा भ्रमण किया है, जैसे आचार्य आर्यरक्षित का शिष्य भवति । (नन्दीचू पृ८१) गोष्ठामाहिल । द्वादशांग और आज्ञा एकार्थक हैं। फिर भी उनमें जं अत्थतो दुवालसंगं गणिपिडगं तं सुत्ततो अभिणिकुछ भेद है। जब द्वादशांगी के आधार पर निर्देश दिया वेसेण अण्णहा पढंतो ताए सुत्ताणाए अत्थं विराहेत्ता तीते काले अणंता जीवा संसारं भमितपुव्वा, जमालिवत् । जाता है, तब उसे आज्ञा कहते हैं। १२. आज्ञा की विराधना-द्वादशांग की विराधना (नन्दीचू पृ८१) द्वादशांग गणिपिटक को अर्थतः स्वीकार करते हुए पंचविहायारायरणसीलस्स गुरुणो हितोवदेसवयणं भी जो अपने अभिनिवेश के कारण उसके सूत्र का अन्यथा आणा, तमण्णधा आयरतेण गणिपिडगं विराधितं भवति । पाठ करते हैं, वे वास्तव में अर्थ की विराधना करते हैं। (नन्दीचू पृ८१) इससे अतीतकाल में अनंत जीवों ने संसार में भ्रमण पांच आचार की सम्पदा से सम्पन्न आचार्य का किया है. जैसे-भगवान महावीर का शिष्य जमालि। हितोपदेशवचन आज्ञा है। जो उससे विपरीत आचरण करता है, वह गणिपिटक की विराधना करता है। अंगबाह्य-अनंगप्रविष्ट, आचार्यों तथा स्थविरों १३. आराधना-विराधना के परिणाम द्वारा रचित आगमग्रंथ, उपांग । इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता १. अंगबाह्य की परिभाषा जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणु- | २. अंगबाह्य की रचना का उद्देश्य परियट्टिसु ।" * अंगबाह्य : आगम का एक भेद (द्र. आगम) पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा"अणुपरियति । " * अंगबाह्य : श्रुतज्ञान का एक भेद (द्र. श्रुतज्ञान) अणागए काले अणंता जीवा "अणुपरियट्टिस्संति। ३. अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य की भेदरेखा इच्चेइयं वालसंगं तीए काले अणंता जीवा आणाए | ४. वाटा आराहित्ता चाउरतं संसारकतारं वीईवइंसु ।" * आवश्यक (द. आवश्यक) पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवावीईवयंति । • आवश्यकव्यतिरिक्त "अणागए काले अणंता जीवा""वीईवइस्संति । ५. आवश्यकव्यतिरिक्त के प्रकार (नन्दी १२५) • कालिकश्रुत अतीत काल में अनंत जीव, वर्तमान में परिमित • उत्कालिकश्रुत जीव और भविष्य में अनंत जीव द्वादशांग गणिपिटक की ६. कालिकश्रुत आज्ञा की विराधना कर चार गति वाले संसारकांतार में • परिभाषा परिभ्रमण कर चुके हैं, करते हैं, करेंगे। • परिमाण अतीत काल में अनंत जीव, वर्तमान में परिमित • प्रकार और परिचय जीव और भविष्य में अनंत जीव द्वादशांग की आराधना * कालिकश्रुत : अगमिकश्रुत (प्र. श्रुतज्ञान) कर भवभ्रमण से मुक्त हुए हैं, हो रहे हैं और होंगे। • कालिकश्रुत और नय (द्र. नय) जं सुत्ततो दुवालसंगं गणिपिडगं तं अत्थतो अभि- ! ७. उत्कालिकश्रुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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