SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचर्य-समाधि के स्थान ४७३ ब्रह्मचर्य ३. ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार देवीनामिदं देवम्, अप्सरोऽमरसम्बन्धीति भावः । अट्ठारस विधं बंभं। (दअचू पृ २३४) (दहावृ प १४८) ___ अब्रह्मचर्य (मैथुन) दो तरह का होता है --१. रूप ओरालियं च दिव्वं मणवयकाएण करणजोएणं ।। में २. रूपसहित द्रव्य में। रूप में अर्थात् निर्जीव अणुमोयणकारावणकरणाणष्ट्रारसाबंभं ।। वस्तुओं के साथ-जैसे प्रतिमा या मृत शरीर के साथ । (उशावृ प ६१४) रूप सहित मैथुन तीन प्रकार का होता है-दिव्य, अब्रह्मचर्य के दो प्रकार हैं -औदारिक (मनुष्य और मानुषिक और तिर्यंच सम्बन्धी । देवी- अप्सरा तिर्यंच सम्बन्धी) तथा दिव्य (देव संबंधी) । इन दोनों को सम्बन्धी मैथुन को दिव्य कहते हैं। नारी से सम्बन्धित तीन करण (मन, वचन, काया) और तीन योग (कृत, मैथुन को मानुषिक और पशु-पक्षी आदि से संबंधित कारित, अनुमति] से गुणन करने पर अब्रह्मचर्य के मैथुन को तिर्यंच विषयक मैथुन कहते हैं। अठारह भेद हो जाते हैं। इन अठारह प्रकारों से अब्रह्मचर्य मेहुणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा–दव्वतो रूवेसु का सेवन न करने पर ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार निष्पन्न वा रूवसहगतेसु वा दव्वेसु, खेत्ततो उड्ढलोए वा होते हैं। अहोलोर वा तिरियलोए वा, कालतो दिया वा रातो औदारिक काममोगों का वा, भावतो रागेण वा दोसेण वा। (दअच पृ८४) १. मन से सेवन न करे, अब्रह्मचर्य (मैथुन) के द्रव्य, क्षेत्र........ २. मन से सेवन न कराए और द्रव्य-रूप और रूपसहगत द्रव्य (चेतन ३. मन से सेवन करने वाले का अनुमोदन भी न करे। और अचेतन द्रव्य) ४. वचन से सेवन न करे, क्षेत्र- ऊर्ध्वलोक, अधोलोक, तिर्यक्लोक ५. वचन से सेवन न कराए और काल-दिन-रात ६. वचन से सेवन करने वाले का अनुमोदन भी न करे। भाव-राग-द्वेष ७. काया से सेवन न करे, परदारे दुविहे-ओरालिए वेउव्विए य । ओरालिए ८. काया से सेवन न कराए और दुविहे-तेरिक्को माणुसे य। विउविए देवाण वा ९. काया से सेवन करने वाले का अनुमोदन भी न करे। माणुसाण वा। (आवचू २ पृ २८९) दिव्य कामभोगों का . परदारगमन अब्रह्मचर्य के दो प्रकार हैं१०. मन से सेवन न करे, १. औदारिक-तिर्यंच और मनुष्य सम्बन्धी। ११. मन से सेवन न कराए और २. वैक्रिय-देव अथवा मनुष्य सम्बन्धी। १२. मन से सेवन करने वाले का अनुमोदन भी न करे। ५. ब्रह्मचर्य-समाधि के स्थान १३. वचन से सेवन न करे, १४. वचन से सेवन न कराए और इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा १५. वचन से सेवन करने वाले का अनुमोदन भी न करे। पन्नत्ता " १६. काया से सेवन न करे, विवित्ताई सयणासणाइं सेविज्जा, से निग्गंथे । नो १७. काया से सेवन न कराए और इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाइं सेवित्ता हवइ, से १८. काया से सेवन करने वाले का अनुमोदन भी न करे। निग्गंथे । नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ, से निग्गंथे। ४. अब्रह्मचर्य के प्रकार नो इत्थीणं सद्धि सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से दव्वओ मेहुणं रूवेसु वा रूवसहगए सु वा दब्वेसु, निग्गंथे । तत्थ रूवेत्ति णिज्जीवे भवइ, पडिमाए वा मयसरीरे वा। नो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोरूवसहगयं तिविहं भवति, तं जहा-दिव्वं माणुसं इत्ता निझाइत्ता हवइ, से निग्गथे।। तिरिक्खजोणियंति। (दजिचू पृ १५०) नो इत्थीणं कुड्डंतरंसि वा, दूसंतरंसि वा, भित्तंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy