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________________ प्रमाण ४६० प्रमाद तिणि निप्फावा कम्ममासओ, एवं चउक्कओ कम्ममा- ६.काल प्रमाण सओ । बारस कम्ममासया मंडलओ, एवं अडयालीसाए कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पएसनिप्फण्णे कागणीओ मंडलओ। सोलस कम्ममासया सुवण्णो, एवं य विभागनिष्फण्णे य । (अनु ४१३) चउसट्टीए कागणीओ सुवण्णो। (अनु ३८४) कालप्रमाण के दो प्रकार-प्रदेशनिष्पन्न और प्रतिमान-जिससे स्वर्ण आदि का तौल किया विभागनिष्पन्न । जाता है, जैसे गुजा, काकणी, निष्पाव, कर्ममाषक, ७. भाव प्रमाण मण्डलक और सुवर्ण । पांच गुञ्जा, चार काकणी और भावप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -गुणप्पमाणे तीन निष्पाव का एक कर्ममाषक होता है । नयप्पमाणे संखप्पमाणे । (अनु ५०६) ___इस प्रकार चार काकणी से निष्पन्न कर्ममाषक को भावप्रमाण के तीन प्रकार-गुणप्रमाण, नयप्रमाण चतुष्क कर्ममाषक कहते हैं । बारह कर्ममाषक का एक और संख्याप्रमाण । मण्डलक होता है। गुणप्रमाण इस प्रकार अड़तालीस काकणी का एक मण्डलक ___ गुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-जीवगुणप्पमाणे और सोलह कर्ममाषक का एक सुवर्ण होता है। इस य अजीवगुणप्पमाणे य । (अनु ५०७) प्रकार चौसठ काकणी का एक सुवर्ण होता है। गुणप्रमाण के दो प्रकार- जीवगुणप्रमाण और एएणं पडिमाणप्पमाणेणं सुवण्ण-रजत-मणि-मोत्तिय अजीवगुणप्रमाण । संख-सिल-प्पवालादीणं दव्वाणं पडिमाणप्पमाणनिवित्ति अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- वण्णलक्खणं भवइ। (अनु ३८५) गणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे, रसगुणप्पमाणे फासगूणप्पमाणे इस प्रतिमान प्रमाण से स्वर्ण, रजत, मणि, मौक्तिक, संठाणगुणप्पमाणे । (अनु ५०८) शंख, शिला (मूल्यवान पत्थर), प्रवाल आदि द्रव्यों का अजीवगुणप्रमाण के पांच प्रकार-वर्णगणप्रमाण, प्रतिमान प्रमाण जाना जाता है। गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और ५. क्षेत्र प्रमाण संस्थानगुणप्रमाण । खेत्तप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते तं जहा–पएसनिप्फण्णे जीवगुणप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-नाणय विभागनिप्फण्णे य ।। (अन् ३८६) गुणप्पमार्ण दसणगुणप्पमाणे चरित्तगुणप्पमाणे । क्षेत्रप्रमाण के दो प्रकार-प्रदेशनिष्पन्न और विभाग (अनु ५१४) निष्पन्न। जीवगुणप्रमाण के तीन प्रकार-ज्ञानगुणप्रमाण, पएसनिप्फण्णे - एगपएसोगाढे दुपएसोगाढे तिपए दर्शनगुणप्रमाण और चारित्रगुणप्रमाण । सोगाढे जाव दसपएसोगाढे संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्ज- ज्ञानगुणप्रमाण पएसोगाढे। (अनु ३८७) नाणगुणप्पमाणे चउविहे पण्णते, तं जहा-पच्चक्खे प्रदेशनिष्पन्न -एकप्रदेशावगाढ, द्विप्रदेशावगाढ, अणुमाणे ओवम्मे आगमे। (अनु ५१५) त्रिप्रदेशावगाढ यावत् दसप्रदेशावगाढ, संख्येय प्रदेशावगाढ ज्ञानगुणप्रमाण के चार प्रकार-(१) प्रत्यक्ष और असंख्येय प्रदेशावगाढ । (२) अनुमान (३) उपमान (४) आगम। विभागनिप्फण्णे--- (द्र. संबद्ध नाम) अंगुल विहत्थि रयणी, कूच्छी धण गाउयं च बोधव्वं । जोयण सेढी पयरं, लोगमलोगे वि य तहेव ॥ प्रमाद-धर्माचरण में अनुत्साह । (अनु ३८८) मज्जं विसय कसाया निहा विगहा य पंचमी भणिया। अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, धनुष, गव्यूत, योजन, (उनि १८०) श्रेणी, प्रतर, लोक और अलोक-यह विभागनिष्पन्न प्रमाद के पांच प्रकार-मद्य, विषय, कषाय, निद्रा प्रमाण है। और विकथा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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