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________________ प्रत्येकबुद्ध ४५६ नग्गति द्विमुख उसे पिलाया जाए। गोपालों ने यह बात स्वीकार की। अप्रिय लगते हैं, यह सोचकर सभी रानियों ने एक-एक बछड़ा सुखपूर्वक बढ़ने लगा। वह युवा हआ। कंकण के अतिरिक्त शेष कंकण उतार दिए हैं। अकेले उसमें अतुल शक्ति थी। राजा ने उसे देखा। वह बहत में घर्षण नहीं होता । घर्षण के बिना शब्द कहां से प्रसन्न हुआ। कुछ समय बीता । एक दिन राजा पुनः उठे? . वहां आया । उसने देखा कि वही बछड़ा आज ब्रढ़ा हो राजा नमि ने सोचा--'सुख अकेलेपन में है। जहां गया है, आंखें धंसी जा रही हैं, पर लडखडा रहे हैं और द्वन्द्व है, दो हैं, वहां दुःख है।' विचार आगे बढ़ा। उसने वह दूसरे छोटे-बड़े बैलों का संघटन सह रहा है। राजा । a या है। राजा सोचा-यदि मैं इस रोग से मुक्त हो जाऊंगा तो अवश्य का मन वैराग्य से भर गया। उसे संसार की परिवर्तन- ही प्रव्रज्या ग्रहण कर लूंगा। उस दिन कार्तिक मास की शीलता का भान हआ। वह प्रतिबुद्ध होकर प्रवजित हो । पूर्णिमा थी। राजा इसी चिंतन में लीन हो सो गया। गया। रात्रि के अन्तिम प्रहर में उसने स्वप्न देखा। नन्दीघोष की आवाज से जागा । उसका दाह-ज्वर नष्ट हो चुका था । उसने स्वप्न का चिन्तन किया। चितन करते-करते पांचाल देश में कांपिल्य नाम का नगर था। वहां उसे जाति-स्मति हो गई। वह प्रतिबद्ध हो प्रवनित हो द्विमुख नाम का राजा राज्य करता था। एक बार इन्द्र गया। महोत्सव आया। राजा की आज्ञा से नागरिकों ने इन्द्रध्वज की स्थापना की। वह इन्द्रध्वज अनेक प्रकार के नग्गति पुष्पों, घण्टियों और मालाओं से सज्जित किया गया। गांधार जनपद में पुण्ड्रवर्द्धन नाम का नगर था। लोगों ने उसकी पूजा की। स्थान-स्थान पर नत्य, गीत वहां नग्गति नाम का राजा राज्य करता था । एक दिन होने लगे। सारे लोग मोद-मग्न थे। इस प्रकार सात राजा नग्गति भ्रमण करने निकला। उसने एक पुष्पित दिन बीते । पूर्णिमा के दिन महाराज द्विमुख ने इन्द्रध्वज आम्र-वृक्ष देखा। एक मंजरी को तोड़ वह आगे निकला। की पूजा की। पूजा-काल समाप्त हुआ। लोगों ने इन्द्र- साथ वाले सभी व्यक्तियों ने मञ्जरी, पत्र, प्रवाल, पुष्प, ध्वज के आभूषण उतार लिए और काष्ठ को राजपथ फल आदि सारे तोड़ डाले । आम्र का वृक्ष अब केवल ठंठ पर फेंक दिया । एक दिन राजा उसी मार्ग से निकला। मात्र रह गया । राजा पुन: उसी मार्ग से लौटा । उसने उसने उस इन्द्रध्वज काष्ठ को मलमूत्र में पड़े देखा । उसे पूछा-'वह आम्र-वृक्ष कहां है ?' मंत्री ने अंगुली के वैराग्य हो आया। वह प्रतिबुद्ध हो पंचमुष्टि लोच कर इशारे से उस ठूठ की ओर संकेत किया। राजा आम प्रवजित हो गया। की उस अवस्था को देख अवाक् रह गया । उसे कारण ज्ञात हुआ। उसने सोचा-'जहां ऋद्धि है, वहां शोभा नरेश पद्मरथ विदेह राष्ट्र की राज्यसत्ता नमि को है परन्तु ऋद्धि स्वभावतः चंचल होती है'-इन विचारों सौंप प्रवजित हो गया। एक बार महाराज नमि को। से वह संबुद्ध हो गया। दाह-ज्वर हुआ। उसने छह मास तक अत्यन्त वेदना (इन चारों का विस्तृत वर्णन उत्तराध्ययनसूत्र की सही। वैद्यों ने रोग को असाध्य बतलाया। दाह-ज्वर सुख र सुखबोधा वृत्ति (पत्र १३३-१४५) में प्राप्त है। कुछ को शांत करने के लिए रानियां स्वयं चन्दन घिस रही भिन्नता के साथ बौद्धग्रन्थ (कुम्भकार जातक) में भी थी। उनके हाथ में पहने हए कंकण बज रहे थे। उनकी इन चार प्रत्यकबुद्धा आवाज से राजा को कष्ट होने लगा। उसने कंकण ऋषिभाषित प्रकीर्णक में पैतालीस प्रत्येकबुद्ध मुनियों उतार देने के लिए कहा । सभी रानियों ने सौभाग्य चिह्न का जीवन तथा उनके शिक्षापद निबद्ध हैं। उनमें बीस स्वरूप एक-एक कंकण को छोड़कर शेष सभी कंकण उतार प्रत्येकबुद्ध अर्हत् अरिष्टनेमि के तीर्थ में, पन्द्रह पावदिए। कुछ देर बाद राजा ने अपने मंत्री से पूछा- नाथ के तीर्थ में तथा दस महावीर के तीर्थ में हुए हैं। कंकण का शब्द क्यों नहीं सुनाई दे रहा है ? मंत्री ने उन पैंतालीस प्रत्येक बुद्धों में करकण्ड आदि चार प्रत्येक कहा-'राजन् ! उसके घर्षण से उठे हए शब्द आपको बुद्धों का उल्लेख नहीं है।) नमि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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