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________________ प्रत्याख्यान ४५२ प्रत्याख्याता"चार विकल्प कोटि का अर्थ है-कोण। पहले दिन आचाम्ल का मुहर्त है। अर्ध मास, मास यावत् छह मास पर्यंत की प्रत्याख्यान कर, उसका अहोरात्र पालन कर, दूसरे दिन तपस्या अद्धा प्रत्यख्यान के अन्तर्गत है। पुनः आचाम्ल करने से दूसरे दिन के आचाम्ल का ८. प्रत्याख्यान की विशोधि के स्थान आरम्भ कोण तथा प्रथम दिन के आचाम्ल का पर्यंत सा पुण सद्दहणा जाणणा य विणयाणभासणा चेव । कोण-दोनों कोणों के मिलने से इसको कोटिसहित तप अणुपालणा विसोही भावविसोही भवे छट्ठा । कहा जाता है। ____ अथवा-प्रथम दिन आचाम्ल, दूसरे दिन कोई (आवनि १५८६) प्रत्याख्यान-विशोधि के छह स्थान हैं--- दूसरा तप और तीसरे दिन फिर आचाम्ल, उसे कोटि १. श्रद्धाशुद्धि-प्रत्याख्यान में श्रद्धा । सहित तप कहते हैं। २. ज्ञानशुद्धि-प्रत्याख्यान विषयक ज्ञान । ६. नियंत्रित प्रत्याख्यान ३. विनयशुद्धि-कृतिकर्म आदि क्रियाओं में निपुणता । मासे मासे अ तवो अमुगो अमुगं दिणंमि एवइओ। ४. अनुभाषणशुद्धि-गुरुवचनों के अनुसरण में कुशलता । हठेण गिलाणेण व कायव्वो जाव ऊसासो॥ ५. अनुपालनाशुद्धि-कृत प्रत्याख्यान की अखंड अनुएयं पच्चक्खाणं नियंटियं धीरपुरिसपन्नत्तं । पालना। जं गिण्हंतऽणगारा अणिस्सि अप्पा अपडिबद्धा।। ६. भावशुद्धि-रागद्वेष रहित भावधारा। चउदसपूवी जिणकप्पिएस पढमंमि चेव संघयणे । इन छह स्थानों से प्रत्याख्यान दूषित नहीं होता, एयं विच्छिन्नं खलु थेरावि तया करेसी य ॥ शुद्ध होता है। (आवनि १५७१-१५७३) ६. प्रत्याख्यान को अशोधि के स्थान , जिसमें पूर्व स्वीकृत अमुक दिन अथवा अमुक मास में थंभा कोहा अणाभोगा अणापुच्छा असंतई। अमुक तप अंतिम श्वास तक निश्चित रूप से किया जाता परिणामओ असुद्धो अवाउ जम्हा विउ पमाणं ॥ है, वह नियन्त्रित प्रत्याख्यान है। इसमें स्वस्थता हो या (आवभा २५३) रुग्णता—किसी भी स्थिति में अपवादविधि का सेवन राग और द्वेष से संक्लिष्ट चित्त से कृत प्रत्याख्यान नहीं किया जाता। . अशुद्ध होता है । इसके मुख्य हेतु पांच हैंइस प्रत्याख्यान का वहन वे ही मुनि करते थे, जो १. स्तब्धता- 'इस तपस्वी की पूजा हो रही है । मैं तप विषयों से अनिश्रित, शरीर में अप्रतिबद्ध, वज्रऋषभ ___ करूंगा तो मेरी भी पूजा होगी'-इस भावना से तप नाराच संहननवाले, चतुर्दशपूर्वी अथवा जिनकल्पी आदि करना। होते थे। उस समय स्थविर मुनि भी इस प्रत्याख्यान के २. क्रोध-गुरु आदि के द्वारा प्रतिकूल वचन सुनकर अधिकारी थे। यह सोचना कि मैं तिरस्कृत हुआ हूं, अतः आहार चतुर्दशपूर्वी, प्रथम संहनन और जिनकल्पिक के नहीं करूंगा। विच्छेद के साथ यह नियंत्रित प्रत्याख्यान भी विच्छिन्न ३. अनाभोग-त्याग की विस्मृति होने पर कुछ खा हो गया। लेना। ७. अद्धा प्रत्याख्यान ४. अनापृच्छा ---गुरु की स्वीकृति से पूर्व खाना। अद्धा पच्चक्खाणं जं तं कालप्पमाणछएणं । ५. असत्-खाने योग्य कोई वस्तु न होने पर त्याग पुरिमड्ढपोरिसीए मुहुत्तमासद्धमासेहिं ।। करना। (आवनि १५७९) प्रत्याख्यान के संदर्भ में गुण-दोषों को जानने वाला पौरुषी आदि काल से जिसका परिमाण होता है. विद्वान् ही प्रमाण है। वह कालावबद्ध प्रत्याख्यान अद्धा प्रत्याख्यान कहलाता १०. प्रत्याख्याता"""चार विकल्प है। जैसे--पुरिमार्ध, पौरुषी (प्रहर) आदि। सबसे छोटा मूलगुणउत्तरगुणे सव्वे देसे य तह य सुद्धीए । प्रत्याख्यान नमस्कारसहिता है, जिसका कालमान एक पच्चक्खाणविहिन्न पच्चक्खाया गुरू होइ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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