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________________ प्रत्याख्यान ४४८ एकस्थान पुरिमार्ध जो पुरुष से निष्पन्न है, वह पौरुषी है। दिन का हत्थे पायाणि चालेज्जावि, तस्स अट्र आगारा"...... चतुर्थ भाग बीत जाने पर पुरुष प्रमाण छाया होती है सागारियं अद्धसमूहिट्स्स आगतं, जदि वोलेति पडिच्छति, और यही पौरुषी (प्रहर) का प्रमाणकाल है । इसके छह अह थिरं ताहे सज्झायवाघातोत्ति उठूत्ता अन्नत्थ गंतूणं अपवाद हैं समुद्दिसति, हत्थं वा पायं वा सीसं वा आउंटेज्जा वा १. अनाभोग-अत्यंत विस्मृति होने पर। पसारेज्ज वा ण भज्जति, अभद्राणारिहो आयरितो वा २. सहसाकार-सहसा मुंह में कुछ डाल लेने पर। आगतो अब्भट्ठयव्वं, तस्स एवं समुद्दिट्टयस्स पारिद्वावणिया ३. प्रच्छन्नकाल-आकाश में बादल आदि छा जदि होज्जा करेति । (आव २ पृ ३१६) जाने से काल का पता न लगने पर। एकाशन में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य-इस चतुर्विध ४. दिग्मूढ़-पौरुषी का कालमान ज्ञात न होने पर। आहार का प्रत्याख्यान किया जाता है। ५. साधुवचन - अन्य साधुओं के द्वारा प्रहर की पूर्णता एक आसन में बैठ, पुतों को स्थिर रख कर आहार ___ की सूचना मिलने पर। करना एकासन कहलाता है। इसमें हाथ-पैरों का संकोच६. सर्वसमाधिहेतु-अचानक किसी रोग के उभरने फैलाव किया जा सकता है। इसके आठ अपवाद हैंके कारण औषधि आदि दिए जाने पर। १. अनाभोग --अत्यंत विस्मृति होने पर। २. सहसाकार-सहसा मुंह में कूछ डाल लेने पर। सरे उग्गए पूरिमड्ढं पच्चक्खाइ चाउम्विहंपि आहारं ३. सागारिक-गहस्थ के आ जाने पर अन्यत्र जाकर -असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं सहसा- खाने पर। गारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरा ४. हाथ-पैरों का संकुचन-प्रसारण करने पर। गारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। (आव ६३) ५. गुरु-अभ्युत्थान-गुरु-आगमन पर खड़े होने पर। सूर्योदय होने पर पुरिमार्ध (दिन के प्रथम दो प्रहर) ६. पारिष्ठापनिका-अतिरिक्त आहार आ जाने पर में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य-इस चतुर्विध आहार का परिष्ठापन की स्थिति में खाने पर। प्रत्याख्यान किया जाता है । इसके सात अपवाद हैं ७. महत्तराकार --आचार्य के द्वारा आज्ञा देने पर। १. अनाभोग-अत्यंत विस्मृति होने पर । ८. सर्वसमाधिहेतु-अचानक किसी रोग के उभरने के २. सहसाकार-सहसा मुंह में कुछ डाल लेने पर। कारण औषधि दिए जाने पर। ३. प्रच्छन्नकाल-आकाश में बादल आदि छा जाने से काल का पता न लगने पर। एकस्थान ४. दिग्मूढ-दो पौरुषी का कालमान ज्ञात न होने एगट्ठाणं पच्चक्खाइ चउन्विहंपि आहार-असणं पर। पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागा५. साधूवचन-अन्य साधुओं के द्वारा दो प्रहर की रियागारेणं गरुअब्भदाणेणं पारिद्रावणियागारेणं महत्तरा_पूर्णता की सूचना मिलने पर । गारेणं सब्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ । (आव ६।५) ६. महत्तराकार-आचार्य के द्वारा आज्ञा देने पर। एकस्थान में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य-इस ७. सर्वसमाधिहेत-अचानक किसी रोग के उभरने के चविध आहार का प्रत्याख्यान किया जाता है। इसके ___ कारण औषधि आदि दिए जाने पर । सात अपवाद हैं --- एकाशन १. अनाभोग -अत्यंत विस्मृति होने पर। एगासणं पच्चक्खाइ चउन्विहंपि आहारं-असणं पाणं २. सहसाकार-सहसा मुंह में कुछ डाल लेने पर। खाइमं साइम, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागारिया- ३. सागारिक - गृहस्थ के आने पर अन्यत्र जाकर गारेणं आउंटणपसारणेणं गुरुअब्भदाणेणं पारिद्वावणिया- खाने पर। गारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। ४. गुरु-अभ्युत्थान -गुरु आगमन पर खड़े होने पर। (आव ६४) ५. पारिष्ठापनिका-अतिरिक्त आहार आ जाने पर एगासणगं नाम पुता भूमीतो ण चालिज्जति, सेसाणि परिष्ठापन की स्थिति में खाने पर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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