SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत्याख्यान दस प्रत्याख्यान प्रवृत्तिकोबारा जो१२० *प्रत्याख्यान और श्रतग्रहण योग्य परिषद तानि आवकहिताणि । साधूणं केति अभिग्गहविसेसा (त. परिषद) | सावगाणं चत्तारि सिक्खावताणि इत्तिरियाणित्ति । १४. प्रत्याख्यान-प्रतिपादन विधि (आवचू २ पृ २७३) * श्रावक के नवकोटि प्रत्याख्यान (द्र. श्रावक) भाव प्रत्याख्यान के दो प्रकार हैं-- श्रुत प्रत्याख्यान * साधु के प्रत्याख्यान (द्र. महाव्रत) और नोश्रुत प्रत्याख्यान । श्रुत प्रत्याख्यान के दो प्रकार हैं१. प्रत्याख्यान का अर्थ १. पूर्व श्रुत -- नौवां प्रत्याख्यान पूर्व । प्रत्याख्यायते-निषिध्यतेऽनेन मनोवाक्कायक्रिया- २. नोपूर्व श्रुत--प्रत्याख्यान अध्ययन, आतुरप्रत्याख्यान, जालेन किञ्चिदनिष्टमिति प्रत्याख्यानम् । महाप्रत्याख्यान आदि। (आवहाव २ पृ २०८) नोश्रुत प्रत्याख्यान के दो भेदमन, वचन और काया के द्वारा जो अनिष्टकारक १. मूल गुण-सर्वमूल गुण (महाव्रत), देशमूल गुण अथवा बंधकारक प्रवृत्ति का निषेध किया जाता है, वह (अणुव्रत)। प्रत्याख्यान कहलाता है। २. उत्तर गुण-सर्व उत्तरगुण (अनागत आदि दस जो अतियारो आलोयणपडिक्कमणकाउस्सग्गेहिं ण प्रत्याख्यान)। देश उत्तरगुण (तीन गुणवत, चार सुज्झति सो तवेण पच्चक्खाणेण य विसोधिज्जति। शिक्षाव्रत)। (आवच २ पृ २७२) अथवा उत्तर गुण के दो प्रकार ये हैं - जिन अतिचारों की शूद्धि आलोचना, प्रतिक्रमण और १. इत्वरिक-साधु के कुछ अभिग्रह आदि तथा श्रावक कायोत्सर्ग के द्वारा नहीं होती, उनकी शुद्धि तप और __ के चार शिक्षाव्रत इत्वरिक (अल्पकालिक)। प्रत्याख्यान से होती है। २. यावत्कथिक-साधु का नियंत्रित प्रत्याख्यान २. प्रत्याख्यान के प्रकार यावत्कथिक है, जिसका दुर्भिक्ष आदि में भी पालन किया जाता है। श्रावक के तीन गुणव्रत यावत्कथिक तं दुविहं सुअनोसुअ, सुयं दुहा पुव्वमेव नोपुव्वं ।। पुव्वसुय नवमपुव्वं, नोपुव्वसुयं इमं चेव ॥ नोसुअपच्चक्खाणं, मूलगुणे चेव उत्तरगणे य । ३. दस प्रत्याख्यान मुले सव्वं देसं, इत्तरियं आवकहियं च ।। नमुक्कारपोरिसीए पूरिमडढेगासणेगठाणे य । (आवभा २४१,२४२) आयंबिल अभत्तठे चरमे य अभिग्गहे विगई। णोपूव्वसुतपच्चक्खाणं तं अणेगविहं, तं जहा __ (आवनि १५९७) आतुरपच्चक्खाणं महापच्चक्खाणं, इमं पच्चक्खाणज्झयणं। प्रत्याख्यान के दस प्रकार-- जं तं णोसुतपच्चक्खाणं, तं दुविहं-मूलगुणपच्चक्खाणं १. नमस्कारसहिता (नवकारसी)- सूर्योदय से लेकर उत्तरगुणपच्चक्खाणं च । जं तं मूलगुणपच्चक्खाणं तं ४८ मिनट तक कुछ भी खाना-पीना नहीं। समय दुविहं-सव्वमूलगुणपच्चक्खाणं देसमूलगुणपच्चक्खाणं सम्पन्न होने पर नमस्कार मंत्र का स्मरण कर इसको च । सव्वमूलगुणपच्चक्खाणं पंच महब्वता, देसमूलगुण- पूरा किया जाता है, इस दृष्टि से इसका नाम पच्चक्खाणं च पंच अणुव्वता। उत्तरगुणपच्चक्खाणं नमस्कारसहिता रखा गया है। दुविहं-सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणं देसुत्तरगुणपच्चक्खाणं च। २. प्रहर-दिन के एक चौथाई भाग को प्रहर कहा सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणं दसविहं अणागतमतिक्कंत.... । जाता है। उतने समय तक खाद्य-पेय पदार्थों का देसुत्तरगुणपच्चक्खाणं सत्तविहं-तिन्नि गुणव्वताणि उपयोग नहीं किया जाता। चत्तारि सिक्खावताणि । अहवा उत्तरगुणपच्चक्खाणं ३. पुरिमार्ध-दिन का आधा भाग अर्थात् प्रथम दो दविहं-इत्तिरियं आवकहियं । जथा णियंटितं, तं दुब्भि- प्रहर के काल तक खान-पान का परित्याग करना क्खमादिसुवि जं पडिसेवति । सावगाणं च तिन्नि गुणव्व- आधा दिन या पुरिमार्ध कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy