SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस्त्रपात्र-प्रतिलेखना काल ४४१ प्रतिलेखना ६. नव खोटक-प्रत्येक पूर्व में तीन-तीन बार खोटक (प्रमार्जन) करे। एक भाग में नौ खोटक होते हैं। तत्पश्चात् जो कोई प्राणी हो, उसका हाथ पर नौ बार विशोधन (प्रमार्जन) करे। . दृष्टि डालना, छह पूर्व और अठारह खोटक करना-इस प्रकार प्रतिलेखना के पच्चीस प्रकार होते ठाणनिसीयतुयट्टणउवगरणाईण गहणणिक्खेवे । पुव्वं पडिलेहे चक्खुणा उ पच्छा पमज्जेज्जा । (ओभा १५१) ___ स्थान, निषीदन, त्वक्वर्तन (शयन) तथा उपकरण आदि को लेते-रखते समय पहले दृष्टि-प्रतिलेखना की जाती है, फिर प्रमार्जन किया जाता है। धुवं च पडिलेहेज्जा, जोगसा पायकंबलं । सेज्जमुच्चारभूमि च, संथारं अदुवासणं ।। (द ८।१७) मुनि पात्र, कंबल, शय्या, उच्चारभूमि, संस्तारक अथवा आसन का यथासमय प्रमाणोपेत (न न्यून न अतिरिक्त) प्रतिलेखन करे । ३. प्रतिलेखना के विकल्प अण्णाइरित्तपडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य । पढम पयं पसत्थं, सेसाणि उ अप्पसत्थाई॥ (उ २६।२८) वस्त्र के प्रस्फोटन और प्रमार्जन के प्रमाण से अन्यून, अनतिरिक्त (न कम और न अधिक) और अविपरीत प्रतिलेखना करनी चाहिए। इन तीनों विशेषणों के आधार पर प्रतिलेखना के आठ विकल्प बनते हैं। इनमें प्रथम विकल्प (अन्यून, अनतिरिक्त और अविपरीत) प्रशस्त है और शेष अप्रशस्त । आठ विकल्प ये हैं१. अन्यून अनतिरिक्त अविपरीत २. अन्यून अनतिरिक्त विपरीत ३. अन्यून अतिरिक्त अविपरीत ४. अन्यून अतिरिक्त विपरीत ५. न्यून अनतिरिक्त अविपरीत ६. न्यून अनतिरिक्त अविपरीत ७. न्यून अतिरिक्त अविपरीत . ८ न्यून अतिरिक्त विपरीत ४. प्रतिलेखना का क्रम पडिलेहगा उ दुविहा भत्तट्ठिय इयरा य नायव्वा । दोण्हवि य आइपडिलेहणा उ मुहणंतगसकायं ।। तत्तो गुरू परिन्ना गिलाणसेहाति जे अभत्तट्ठी । संदिसह पायमत्ते य अप्पणो पट्टगं चरिमं ।। पट्टग मत्तय सयमोग्गहो य गुरुमाइया अणन्नवणा । तो सेस पायवत्थे पाउंछणगं च भत्तट्टी। (ओनि ६२८-६३०) प्रतिलेखना करने वाले मुनि दो प्रकार के होते हैं १. तपस्वी (उपवास आदि करने वाले) २. आहारार्थी। दोनों ही प्रतिलेखक सर्वप्रथम मुखवस्त्र और उससे अपने शरीर का प्रमार्जन करते हैं । तत्पश्चात् तपस्वी मुनि गुरु, अनशनधारी, ग्लान, शैक्ष आदि के उपकरणों की प्रतिलेखना करते हैं। फिर गुरु से अनुज्ञा प्राप्त कर पात्र, मात्रक तथा अन्य उपधि और अन्त में चोलपट्रक की प्रतिलेखना करते हैं। भक्तार्थी मुनि अपने चोलपट्टक, मात्रक, पात्र आदि की प्रत्युपेक्षा कर गुरु आदि की उपधि की प्रत्युपेक्षा करते हैं । फिर गुरु को अनुज्ञापित कर शेष संघीय वस्त्र-पात्रों की प्रतिलेखना करते हैं और अन्त में पादप्रोञ्छन (रजोहरण) की प्रत्युपेक्षा करते हैं। ५. वस्त्रपात्र-प्रतिलेखना काल पूव्विल्लंमि चउब्भाए, पडिलेहित्ताण भंडयं । गुरुं वंदित्तु सज्झायं, कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ।। पोरिसीए चउब्भाए, वंदित्ताण तओ गुरुं । अपडिक्कमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहए ।। मुहपोत्तियं पडिलेहित्ता, पडिले हिज्ज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगुलिओ, वत्थाइं पडिलेहए। चउत्थीए पोरिसीए, निक्खवित्ताण भायणं । सज्झायं तओ कुज्जा, सव्वभावविभावणं ।। (उ २६१२१-२३,३६) दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में भाण्डउपकरणों का प्रतिलेखन कर, गुरु को वंदना कर, दुःख से मुक्त करने वाला स्वाध्याय करे। पौन पौरुषी बीत जाने पर गुरु को वंदना कर, काल का प्रतिक्रमण-कायोत्सर्ग किए बिना ही भाजन की प्रतिलेखना करे। मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर गोच्छग की प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy