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________________ प्रतिक्रमण के प्रकार समय बीता। एक दिन कन्या ने अपना आत्म संताप करते 'हुए एकान्त में अपने आपसे कहा - 'अरे चित्रकारघुया ! तू यह गर्व मत करना कि तू राजा की प्रिया है।' राजा ने यह सुना और उसके आत्म-संताप और यथार्थ पर प्रसन्न होकर उसे अग्रमहिषी बना दिया । यह द्रव्य निदा है। मुनि भाव निन्दा करे हे जीव ! तुम अनन्तकाल से भवभ्रमण कर रहे हो। इस जन्म में तुम्हें मनुष्यत्व, सम्पक्त्व और चारित्र मिला। लोगों में तुम पूजनीय बने । परंतु यह गर्व मत करो कि तुम पूजनीय हो, बहुश्रुत हो आदि । ७. गगुरु के समक्ष आलोचना करना । ४३३ एक स्थविर ब्राह्मण अध्यापक की तरुण पत्नी एक पिंडारक में आसक्त थी । वह नर्मदा नदी के उस पार रहता था । तरुणी ब्राह्मणी वैश्वदेव बलि करती और कहती मुझे कौओं से भय लगता है। ब्राह्मण ने उसकी रक्षा के लिए छात्रों को नियुक्त कर दिया। एक दिन एक छात्र ने यह जान लिया कि यह तरुणी ब्राह्मणी प्रतिदिन मगरमच्छों से भरी नर्मदा नदी को तैर कर जाती है और कहती है में कौओं से डरती हूं। उस छात्र ने एक बार उसे कहा 'दिवा कागाण बीमेसि सि तरसि नम्मदं । कृतित्याणिव जाणासि, अच्छीणं उक्कणाणि च ।।' उस तरुणी ने जान लिया कि छात्र ने मेरा सारा रहस्य जान लिया है। वह उसमें आसक्त हो गई। छात्र ने कहा- अध्यापक को ज्ञात हो जाने पर ? तब उस तरुणी ने अपने पति अध्यापक को मरवा डाला । कालान्तर में वह विक्षिप्त हो गई। वह पर पर भिक्षा मांगने जाती और कहती 'मए मदणुसत्ताए, पती मारितो मे रखो । तरुण खमाणीए कुलं सीलं च कुंसितं ।' 'मैं पतिमारक हूं, मैं पतिमारक हूं, मुझे भिक्षा दो ।' वह ग करती रही। कालान्तर में वह प्रवजित होकर आत्म-साधना करने लगी । ८. शोधि दोषों का उच्छेद करना । राजा श्रेणिक ने एक बार रजक को दो रेशमी वस्त्र प्रक्षालन के लिए दिए। उस दिन कौमुदी महोत्सव था । रजक ने उत्सव का दिन सोचकर दोनों वस्त्र अपनी दोनों Jain Education International प्रतिक्रमण पत्नियों को दे दिए। वे उन्हीं रेशमी वस्त्रों को पहन कर महोत्सव में गईं । प्रच्छन्नरूप से घूमते हुए राजा ने अपने वस्त्र पहचान लिए। दोनों महिलाओं ने ताम्बूल से उन दोनों वस्त्रों को बिगाड़ डाला। घर पहुंचने पर रजक ने उन्हें उपालंभ दिया और क्षार पदार्थ से ताम्बूल के धब्बों को मिटाकर, प्रातः राजा को सौंपने गया । राजा ने रजक से पूछा । रजक ने सही-सही बता दिया । यह द्रव्य शोधि है । मुनि भावशोधि करे दोषों का प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध हो जाए। ( आवचू २ पृ ५३ - ६१; हावृ २ पृ ४३-४८ ) ३. प्रतिक्रमण के प्रकार पडिकमणं देवसियं राज्यं च इत्तरियमावकहियं च । पक्खिय चउम्मासिय संवच्छर उत्तिमट्ठे य ॥ ( आवनि १२४७ ) प्रतिक्रमण के आठ प्रकार १. दैवसिक प्रतिक्रमण ५. पाक्षिक प्रतिक्रमण ६. चातुर्मासिक प्रतिक्रमण ७. सांवत्सरिक प्रतिक्रमण ४. यावत्कथिक प्रतिक्रमण ८ उत्तमार्थ प्रतिक्रमण २. रात्रिक प्रतिक्रमण ३. इत्वरिक प्रतिक्रमण अनशन के समय किया जाने वाला । देवसिक रात्रिक प्रतिक्रमण । देसियं च अइयारं चितिज्ञ अणुपुष्यसो नाणे दंसणे चेव, चरितम्मि तहेव य ॥ पारियक उस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरुं । देसियं तु अइयारं, आलोएज्ज जहक्कमं ॥ पडिक्कमित्त निस्सल्लो, वंदिताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ( उ २६ ३९-४१ ) सम्बन्धी दैवसिक ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप अतिचार का अनुक्रम से चिन्तन करे कायोत्सर्ग को समाप्त कर गुरु को वन्दना करे। फिर फिर अनुक्रम से देवसिक अतिचार की आलोचना करे । प्रतिक्रमण से निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करे मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे । । फिर सर्व दुःखों से राइयं च अइयारं चितिज्ज अणुपुव्वसो । नाणंमि दंसणंमी, चरितंमि तबंमिय ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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