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________________ ४२६ पूर्वो की चूलि कायें अठारह बारह सोलह तीस ४. अस्तिनास्तिप्रवाद ५. ज्ञानप्रवाद ६. सत्यप्रवाद ७. आत्मप्रवाद ८. कर्मप्रवाद ९. प्रत्याख्यानप्रवाद १०. विद्यानुप्रवाद ११. अवन्ध्य (कल्याण) १२. प्राणायुप्रवाद १३. क्रियाविशाल १४. लोकबिन्दुसार बीस पन्द्रह बारह तेरह तीस पच्चीस बारहवें प्राणायुप्रवाद पूर्व में आयुष्यप्राण तथा अन्य इन्द्रिय आदि सभी प्राण भेदोपभेद सहित प्ररूपित हैं। इसका पदपरिमाण है-एक करोड छप्पन लाख पद। क्रियाविशाल पूर्व तेरसमं किरियाविसालं, तत्थ कायकिरियादियाओ विसाल त्ति-सभेदा, संजमकिरियाओ य छंदकिरियविहाणा य, तस्स वि पदपरिमाणं णव कोडीओ। (नन्दीचू पृ७६) तेरहवें क्रियाविशाल पूर्व में कायिकी आदि क्रियाएं, संयमक्रियाएं, छन्द-शार्दूलविक्रीडित आदि, क्रियाएं करोति, भवति आदि तथा उनके प्रकार विस्तार से वणित हैं। इसका पदपरिमाण है -नौ करोड़ पद । लोकबिन्दुसार पूर्व चोद्दसमं लोगबिंदुसारं, तं च इमम्मि लोए सुतलोए वा बिंदुमिव अक्खरस्स सारं सव्वुत्तमं सव्वक्खरसण्णिवातपढितत्तणतो लोगबिंदुसारं, तस्स पदपरिमाण अड्ढतेरस पदकोडीओ। (नन्दीच पृ ७९) ___ लोकबिन्दुसार चौदहवां पूर्व है । यह लोक में अथवा श्रुतलोक में अक्षर पर बिंदु की भांति सर्वोत्तम है। यह सर्वाक्षर-सन्निपात लब्धि का हेतू है। इसका पदपरिमाण है-साढे बारह करोड़ पद । ४. पूर्व के वस्तु (अध्याय) दस चोदस अट्ठ, अट्ठारसेव बारस दुवे य वत्थूणि। सोलस तीसा वीसा, पण्णरस अणुप्पवायम्मि ।। बारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुण तेरसमे, चोद्दसमे पण्णवीसाओ।। (नन्दी ११८ संग्रहणी गाथा १,२) वस्तु १. उत्पाद दस २. अग्रायणीय चौदह ३. वीर्यप्रवाद आठ __ चूडा इव चूडा, ग्रन्थे उक्ताऽनुक्तार्थसंग्रहपरा ग्रन्थपद्धतयश्चूडा। (नन्दीहाव पृ ९३) ___ मूल ग्रन्थ में प्रतिपादित-अप्रतिपादित अर्थ का संग्रह करने वाली ग्रन्थपद्धति का नाम है चला। दिट्टिवाते जं परिकम्म-सुत्त-पुव्व-अणुयोगे य ण भणितं तं चूलासु भणितं । ताओ य चलाओ आदिल्लपुव्वाण चतुण्हं जे चूलवत्थू भणिता ते चेव सव्वुवरि ट्ठविता पढिज्जति य, अतो ते सुयपव्वयचूला इव चूला । (नन्दीचू पृ ७९) परिकर्म, सूत्र, पूर्व और अनुयोग--दृष्टिवाद के इन चार भेदों में जो प्रतिपादित नहीं हुआ है, वह चलाओं में प्रतिपादित है। प्रथम चार पूर्वो की चूलाएं हैं। अध्ययन के क्रम में चूलावस्तु सबसे अंत में पढ़ी जाती हैं, अतः वे श्रुत रूप पर्वत की चूलाएं हैं। चत्तारि दुवालस अट्ट चेव दस चेव चुल्लवत्थूणि । आइल्लाण चउण्हं, सेसाणं चूलिया नस्थि ।। (नन्दी ११८१३) उत्पादपूर्व के चार, अग्रायणीय के बारह, वीर्यप्रवाद के आठ और अस्तिनास्तिप्रवाद के दस चूलिका-वस्तु हैं। शेष पूर्वो के चूलिका-वस्तु नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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