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________________ पुद्गल ( द्र. तीर्थंकर) पार्श्वनाथ - तेईसवें तीर्थंकर । पाषण्ड- सम्प्रदाय । प्राचीन काल में मुख्यतया श्रमण सम्प्रदायों के लिए पाषण्ड शब्द का प्रयोग होता था । पासंडनामे -- समणे पंडुरंगे भिक्खू कावालिए तावसे परिव्वायगे । ( अनु ३४४ ) पाषण्ड के पांच प्रकार हैं श्रमण, पंडुरंग, भिक्षु, कापालिक (शैव की एक शाखा), तापस और परिव्राजक । निग्गंथ सक्क तावस गेरुय आजीव पंचहा समणा । निर्ग्रन्थाः साधवः, शाक्या मायासूनवीयाः, तापसा वनवासिनः पाखण्डिनः, गैरुका: गेरुकरञ्जितवाससः परिव्राजकाः, आजीवकाः गोशालक शिष्याः । (पिनि ४४५ वृप ६३० ) श्रमण के पांच प्रकार हैं निग्रंथ साधु बौद्ध शाक्य तापस - वनवासी परिव्राजक — गैरिक वस्त्र धारण करने वाले आजीवक - गोशालक के शिष्य । पुद्गल - वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से युक्त पदार्थ । १. पुद्गलास्तिकाय * अस्तिकाय का एक भेद २. पुद्गल के लक्षण वर्ण आदि ३. वर्ण- गंध-रस स्पर्श के प्रकार ४. पुद्गल के प्रकार ० स्कन्ध देश प्रदेश ० परमाणु ५. परमाणु के प्रकार ० ४१८ ० व्यावहारिक परमाणु • परमाणु का सप्रदेशत्व - अप्रदेशत्व ६. पुद्गल की स्थिति और अन्तर ७. पुद्गल - परमाणु बन्ध की प्रक्रिया ८. पुद्गल संयोग के प्रकार संयुक्त संयोग ० 0 Jain Education International ( द्र. अस्तिकाय) ० ० इतरेतर संयोग इतरेतर परमाणु संयोग के प्रकार * संस्थान संयोग स्कन्ध संयोग ० संस्थान और स्कन्ध में अंतर ९. पुद्गल का अवगाहन क्षेत्र १०. अजीव द्रव्यकरण-भावकरण ११. शब्द पुद्गल है * शब्द श्रवण का सिद्धान्त पुद्गल की वर्गणाएं * पुद्गल के लक्षण २. पुद्गल के लक्षण १. पुद्गलास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय: पूरणगलणभावत्तणतो पुद्गलाः । इहाप्यस्तिशब्दः प्रदेशवाचकोऽस्तित्वे वा कायशब्दोऽप्यत्र समूहवचनः समूहः प्रदेशानां सोऽवयवद्रव्यसमूहवचनो ( अनुचू पृ २९, ३० ) वा । परमाणु मिलते हैं, पृथक् होते हैं - यह पुद्गल का व्युत्पत्ति - लभ्य अर्थ है । अस्ति शब्द का अर्थ है - प्रदेश अथवा अस्तित्व । काय शब्द समूहवाचक है । प्रदेशों के समूह को तथा अवयवरूप पुद्गल द्रव्य के समूह को भी काय कहते हैं । ( द्र. संस्थान ) पुद्गलास्तिकाय का अर्थ है - पुद्गलों का प्रदेशसमूह अथवा पुद्गलद्रव्यों का समूह । (द्र भाषा ) (द्र. वर्गणा ) सधयारउज्जोओ पहा छायातवे aण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु For Private & Personal Use Only इ वा । लक्खणं ॥ ( उ २८/१२) शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गंध और स्पर्श-ये पुद्गल के लक्षण हैं । 'वण्णरसगंधफासा पोग्गलाण च लक्खणं' ( उशावृप २४ ) वर्ण, गंध, रस और स्पर्श – ये पुद्गल के लक्षण हैं । वण्णओ गंधओ चेव रसओ फासओ तहा । ठाणओ य विन्नेओ परिणामो तेसि पंचहा ॥ ( उ ३६।१५) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से उनका परिणमन पांच प्रकार का होता है । www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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