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________________ परिषद् भेरी का दृष्टांत ४०३ अवि गोपयम्मि वि पिवे सुढिओ तणुयत्तणेण तुंडस्स। जाहक (सैला) पात्र में से दूध पीते समय थोड़ान करेइ कलुस तोयं मेसो एवं सुसीसो वि ॥ थोड़ा पीकर उसके किनारे चाटता रहता है, इससे दूध (विभा १४६८, १४६९) की एक भी बंद नीचे नहीं गिरती। इसी प्रकार मतिमान महिष जब किसी जलाशय में पानी पीने के लिए शिष्य गुरु के पास श्रुत ग्रहण कर पहले उसे परिचित उतरता है तब वह आलोडन-विलोडन कर सारे पानी और स्थिर करता है, फिर नया श्रुत ग्रहण करता है। को कलुषित कर देता है। उस पानी को न तो वह स्वयं वह सम्पर्ण श्रतग्रहण पर्यंत यही क्रम चाल रखता है और पी सकता है और न दूसरे महिष ही पी सकते हैं। इसी गुरु को भी क्लान्त नहीं करता। प्रकार कुशिष्य व्याख्यामंडली में बैठकर विग्रह-विकथा करता है, असंबद्ध प्रश्न करता है, इससे वह स्वयं भी लाभ गो का दृष्टात से वंचित रहता है, दूसरों के भी बाधा उपस्थित करता है। अन्नो दोज्झिइ कल्ले निरत्थियं किं वहामि से चारि । मेष थोड़े से जल वाले जलाशय में, एक किनारे से चउचरणगवी उ मया अवन्न-हाणी य बडुयाणं ॥ धीरे-धीरे जल पीता है, पानी को कलुषित नहीं करता। मा मे होज्ज अवण्णो गोवज्झा वा पुणो वि न दविज्जा। इसी प्रकार सुशिष्य शांतभाव से गुरु के पास श्रुत ग्रहण वयमवि दोज्झामो पुणो अणुग्गहो अन्नदुद्धे वि ।। करता है और परिषद् में किसी प्रकार की बाधा उप (विभा १४७३, १४७४) स्थित नहीं करता। चार ब्राह्मणों को गाय दान में मिली। चारों ने मशक और जलौका का दृष्टांत बारी-बारी से गाय की रक्षा का भार लिया। पहले मसउ व्व तुदं जच्चाइएहिं निच्छुब्भए कुसीसो वि । ब्राह्मण ने गाय को दुहा और चारा डालते समय सोचा जलुगा व अदूमतो पिबइ सुसीसो वि सूयनाणं ॥ -'कल गाय को ले जाने वाला ब्राह्मण चारा डालेगा (विभा १४७०) ही। मैं नहीं डालूंगा तो क्या होगा ? चारों ने ऐसा ही मच्छर शरीर को व्यथित करता है, तब उसे उड़ाने सोचा। क्रम चलता रहा और चारे के अभाव में गाय साचा । क्रम चलता रहा आर चार क अ का प्रयत्न किया जाता है। इसी प्रकार कशिष्य जाति मर गई। चारों का लोगों में अवर्णवाद हुआ और गोआदि से संबंधित दोष उद्घाटित कर अपने गरु को हत्या का पाप लगा। व्यथित करता है, तब उसे मण्डली से निष्काशित कर दूसरे चार ब्राह्मणों को गाय दान में मिली । उन दिया जाता है। चारों ने गाय की सार-संभाल की और लम्बे समय तक जलौका शरीर से खून पीती है, पर उसे पीड़ित उसके दूध का लाभ उठाते रहे। वे गोहत्या के पाप से नहीं करती। इसी प्रकार सुशिष्य गुरु को व्यथित किये बच गए और लोगों में उनकी प्रशंसा हुई। बिना श्रुतज्ञान का पान करता है। ___इसी प्रकार अयोग्य शिष्य प्रथम चार ब्राह्मणों की मार्जारी और जाहक का दृष्टांत भांति सूत्रार्थ के लाभ से वंचित रह जाते हैं और अप कीर्ति के पात्र बनते हैं। योग्य शिष्य दूसरे चार ब्राह्मणों छड्डे उ भूमीए खीरं जह पियइ दुमज्जारी । की भांति गुरु की सम्यग् परिचर्या कर सूत्रार्थ से सम्पन्न परिसुट्ठियाण पासे सिक्खइ एवं विणयभंसी । हो जाते हैं। पाउं थोवं थोवं खीरं पासाईं जाहगो लिहइ । एमेव जियं काउं पुच्छइ मइमं न खेएइ । भेरी का दृष्टांत (विभा १४७१, १४७२) जो सीसो सुत्तत्थं चंदणकथं व परमयाईहिं । दुष्ट बिल्ली किसी पात्र में से सीधा दूध नहीं पीती। मीसेइ गलियमहवा सिक्खियमाणेण स न जोग्गो।। वह पहले उसे नीचे गिराती है, फिर पीती है। इसी (विभा १४३८) प्रकार कुशिष्य अपनी अस्मिता के कारण गुरु के पास वासुदेव के पास गोशीर्षचंदन की एक भेरी थी। वाचना नहीं लेता, किंतु वाचनापरिषद् की सम्पन्नता के उसको छह महीनों में एक बार बजाया जाता। जिसपश्चात् अन्य शिष्य से श्रुत ग्रहण करता है। जिसको उसका शब्द सुनाई देता, उसका उपद्रव मिट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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