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________________ परिग्रह के नौ प्रकार रश्न के प्रकार रयणाई चउव्वीसं सुवण्ण तउ तंब रयय लोहाई । सीसग हिरण्ण पासाण वइर मणि मोत्तिय पवालं ।। संखो तिणिसो अगरु चंदणाणि, तह चम्म दंत वाला रत्न के चौबीस प्रकार - १. स्वर्ण वत्थाssमिलाणि कट्ठाणि । गंधा दव्वासहाई च ॥ रत्न ९. वज्र १०. मणि ११. मुक्ता १२. प्रवाल स्थावर के प्रकार ( दनि १५७, १५८ ) २. त्रपु — कलइ ३. ताम्र १५. अगरु ४. चांदी १६. चंदन ५. लोहा १७. वस्त्र ६. सीसा - रांगा ७. हिरण्य - रुपया ८. पाषाण - विजातीय २०. महिष, सिंह आदि का १८. अमिला - ऊनी वस्त्र १९. काष्ठ चर्म २१. दंत - हाथी दांत आदि २२. चमरी गाय आदि के बाल २३. गंध-सौगंधिक द्रव्य २४. द्रव्य - औषधि । १३. शंख १४. तिनिश भूमी घरं तरुगणा तिविहं पुण थावरं मुणेयव्वं । स्थावर के तीन प्रकार - १. भूमि - खेत आदि २. गृह - १. खात (भूमिगृह आदि ) Jain Education International (दनि १५९) २. उच्छ्रित (प्रासाद आदि ) ३. खातोच्छ्रित-भूमिगृह के ऊपर निर्मित प्रासाद ३. तरुगण – नारियल, आम्र आदि के बगीचे । द्विपद के प्रकार .....चक्कारबद्ध माणुस्स दुविहं पुण होइ दुपयं तु ॥ ( दनि ९५९) द्विपद के दो प्रकार१. चकारबद्ध - दो पट्टियों से चलने वाली गाड़ी, रथ आदि । २. मनुष्य - दास, भूतक आदि । परिग्रह दुपदं दासीदाससुगसारिगादि । अपदं वाहणरुक्खादि । (आवचू २ पृ २९२) दासी, दास, शुक, सारिका आदि द्विपद हैं । वाहन, वृक्ष आदि अपद हैं। चतुष्पद के प्रकार ३९९ गावी महिसी उट्टी अय एलब आस आसतरगा य । घोडग गद्दह हत्थी चउप्पयं होति दसहा उ ॥ ( दनि १६० ) के दस प्रकार - चतुष्पद १. गौ जाति २. महिष जाति ३. उष्ट्र जाति ४. अज जाति ५. भेड़ जाति कथ्य के प्रकार ६. अश्व जाति ( उत्तम अश्व ) ७. अश्वतर जाति ( खच्चर) ८. घोटक जाति ९. गर्दभ जाति १०. हस्ति जाति । विहोवकरणं णेगविहं कुप्पलक्खणं होइ ।'' कुवियं नाम घडघडिउचणियं सयणासणभायणादि गिहवित्थारो । (दनि ९६१ जिचू पृ २१३) कुवियं-घरोवक्खरकणगपारसलोहादीह कडा हगादि( आवचू २ पृ २९२) कुप्य का अर्थ है - घट, घटी, शयन, आसन, पात्र आदि गृहोपकरण । णाणाविहं । ....... चउसट्ठिविहो विभागेणं ।। (दनि ९५२) धन्नाणि चउव्वीसं, रयणाणि चउवीसं, थावरं तिविहं, दुपयं दुविहं, चउप्पयं दसविहं, कुवियं अणेगविहं, तं च अणेगविहमवि एवं चेव गणिज्जति, सव्वे ते भेया पिंडिया चउसट्ठी भवंति । (जिचू पृ २११ ) चौबीस प्रकार के धान्य, चौबीस प्रकार के रत्न, तीन प्रकार के स्थावर, दो प्रकार के द्विपद, दस प्रकार के चतुष्पद और कुप्य - इस प्रकार अर्थ के कुल चौंसठ प्रकार हैं । २. परिग्रह के नौ प्रकार परिग्गहे दुविहे – सचित्ते अचित्ते य। विभागतो पुण गविहो - धणधन्नखेत्तवत्थुरुप्प सुत्रण कुवितदुपदादिभेदेण । ( आवचू २ पृ २९२ ) For Private & Personal Use Only परिग्रह के दो प्रकार - १. सचित्त - द्विपद, चतुष्पद आदि । www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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