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________________ निव ३९० निह्नव कौन ? लब्धि से सम्पन्न चतुर्दशपूर्वी मुनि विस्तार से उसका 'अहंत निसीदिका' का पाठ मिलता है। निसीदिया का अर्थ प्रतिपादित करते हैं। अर्थ है-निषद्या । यह स्वाभाविक प्रयोग है। स्थान के उत्तराध्ययननियुक्ति अर्थ में निसीहिया का संस्कृत रूप निषीधिका, नषेधिकी ओहाविउकामोऽवि य अज्जासाढो"" ॥ या निशीथिका किया जाए तो यह रूप मौलिक प्रतीत न च केषाञ्चिदिहोदाहरणानां नियुक्तिकालादर्वा- नहीं होता। 'निसीदिया' और 'निसीहिया' दोनों का क्कालभावितेत्यन्योक्तत्वमाशङ्कनीयं, स हि भगवांश- एकीकरण हो जाने पर आर्थिक जटिलता उत्पन्न हुई है।) चतुर्दशपूर्ववित् श्रुतकेवली कालत्रयविषयं वस्तु पश्यत्येव। निषीधिका-निषद्या। (द्र. परीषह) (उनि १२३ उशावृ प १३९,१४०) निह्नव–अर्हत-वचन का अपलाप करने वाले । उत्तराध्ययन सूत्र के 'परीषह प्रविभक्ति' नामक अध्ययन में दर्शन परीषह के संदर्भ में नियुक्तिकार ने | १. निह्नव कौन ? आचार्य आषाढ़ का उदाहरण दिया है, जो नियुक्तिकाल | २. जमालि और बहुरतवाद के पश्चात् घटित होने वाली घटना है। कुछ उदाहरण ३. तिष्यगुप्त और जीवप्रादेशिकवाद नियुक्तिकाल-पश्चात् भावी हैं, किंतु उनके आधार पर ४. आचार्य आषाढ़ के शिष्य और अव्यक्तवाद यह आशंका नहीं करनी चाहिए कि ये किसी अन्य व्यक्ति ५. अश्वमित्र और समुच्छेदवाद द्वारा प्रतिपादित हैं। क्योंकि आचार्य भद्रबाहु चौदहपूर्वी ६. आचार्य गंग और क्रियवाद थे। वे श्रुतकेवली होने के कारण कालिक विषयों के ७. रोहगुप्त और त्रैराशिकवाद ज्ञाता थे। ८. गोष्ठामाहिल और अबद्धिकवाद (यह वृत्तिकार का अभिमत है, किन्तु आषाढभूति ९. शिवभूति और बोटिकमत का प्रसंग यह प्रमाणित करता है कि नियुक्तिकार आचार्य १. निह्नव कौन ? भद्रबाह द्वितीय हैं। उनका अस्तित्व-काल विक्रम की पांचवीं-छठी शताब्दी है।) .''जो पुण पयं पि निण्हवइ । मिच्छाभिनिवेसाओ स निण्हवो ॥ (विभा २२९९) निवृत्तिबादर-जो संयती स्थूल कषाय से निवृत्त होता है, उसकी आत्म-विशुद्धि । तीर्थंकरभाषितमर्थमभिनिवेशात् निह नुवते- प्रपञ्चआठवां गुणस्थान । (द्र. गुणस्थान) तोऽपलपन्तीति निह्नवाः, एते च मिथ्यादृष्टयः सूत्रोक्तार्था पलपनात्", एते साक्षादुपात्ता उपलक्षणसूचिताश्च निषद्या-स्थान । स्वाध्याय भूमि । एक परीषह। देशविसंवादिनो द्रव्यलिङ्गेनाभेदिनो निह्नवाः । बोटिकास्तु (द्र. परीषह) वक्ष्यमाणाः सर्वविसंवादिनो द्रव्यलिङ्गतोऽपि भिन्ना (आगमों में तथा व्याख्या ग्रन्थों में निसीहिया शब्द निवाः। . (आवमवृ प ४०१) मिलता है और उसका संस्कृत रूप निशीथिका, निषी- जो अपने मिथ्या अभिनिवेश के कारण अर्हत्-प्रज्ञप्त धिका या नषेधिकी किया जाता है। जहां निसीहिया अर्थपद का अपलाप करते हैं. वे नितव कहलाते हैं। वे शब्द परीषह के अन्तर्गत आया है वहां निसीहिया और सूत्र के अर्थ का अपलाप करने के कारण मिथ्यादृष्टि होते स्थान को चूर्णिकार ने एकार्थक माना है। "णिसीहियत्ति हैं । निह्नव सिद्धांत के एक देश का विसंवाद करने वाले वा ठाणंति वा एगलैं' (उचू पृ ६७) । वृहदृवृत्ति पत्र ८३ तथा द्रव्यलिंग (वेश) से अभिन्न होते हैं। में इसका अर्थ स्वाध्याय भूमि किया गया है - बोटिकमतावलंबी सर्वविसंवादी तथा द्रव्यलिंग से "श्मशानादिका स्वाध्यायादिभूमिः निषधेति यावत्"। भिन्न होने पर भी निह्नव कहलाये। मूलतः यह पाठ निसीदिया होना चाहिए। प्राचीन लिपि (जिनका किसी एक विषय में, चालू जैन परम्परा के में 'द' और 'ह' का प्रायः साम्य है अत: लिपि परिवर्तन साथ, मतभेद हो गया और वे वर्तमान शासन से पृथक के साथ 'निसीदिया' का निसीहिया हो गया प्रतीत होता हो गये, किन्तु किसी अन्य धर्म को स्वीकार नहीं किया, है। खारवेल के शिलालेख में 'काय निसीदिका' और उन्हें निह्नव कहा गया ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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