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________________ नमस्कार पंचक ३६८ नमस्कार महामंत्र २४. पूर्वाभाद्रपद २४. अज २५. उत्तराभाद्रपद २५. विवृद्धि (अहिर्बुध्न) २६. रेवति २६. पूषा २७. अश्विनी २७. अश्व २८. भरणी २८. यम नन्दनवन-क्रीडास्थल । णंदंति जेण वणयर-जोतिस-भवण-वेमाणिया विज्जाहर-मण्या य तेण णंदणं, वणं ति-वणसंडं । (नन्दीचू पृ५) जहां व्यन्तर, ज्योतिष्क, भवनपति और वैमानिक देव, विद्याधर और मनुष्य आनन्द का अनुभव करते हैं, क्रीडा करते हैं, वह वनषण्ड नन्दनवन है। नमस्कार महामंत्र- अर्हत् परंपरा का सुप्रसिद्ध मंत्र जिसमें पंच परमेष्ठी को नमन किया जाता है। १. नमस्कार पंचक २. नमस्कार के अनुयोग ३. नमस्कार की उत्पत्ति ४. नमस्कार का प्रयोजन ५. नमस्कार की स्थिति ६. नमस्कार की निष्पत्ति ७. नमस्कार का महत्त्व ८. नमस्कार के पद पांच क्यों ? ९. नमस्कारपदों का क्रम यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला और सब मंगलों में प्रथम मंगल है। ..."काऊणं पंचमंगलं आरंभो होइ सुत्तस्स ॥ (आवनि १०१३) कयपंचनमोक्कारस्स दिति सामाइयाइयं विहिणा । आवासयमायरिया कमेण तो सेसयसूयं पि॥ (विभा ५) शिष्य सर्वप्रथम मंगलरूप पंचनमस्कार करता है, उसके पश्चात ही आचार्य शिष्य को उसकी योग्यता के अनुसार सामायिक, आवश्यक, आचारांग आदि शेष सूत्रों की विधियुत वाचना देते हैं । जदा संहिता सव्वा उच्चारिता भवति तत्थ सो सुत्ताणु गमो।""सुत्तं अणुगंतव्वं । तं च पंचनमोक्कारपुव्वं भणंति पुव्वगा। (आवचू १ पृ ५०१,५०२) आगम पाठ में सर्वप्रथम सूत्र का उच्चारण किया जाता है, जो सूत्रानुगम कहलाता है। पूर्वविदों द्वारा सूत्रानुगम से पूर्व पंच नमस्कार किया जाता है। अरहंतनमोक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होइ पूणो बोहिलाभाए । अरिहंतनमोक्कारो सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं पढम हवइ मंगलं ॥ (आवनि ९२३,९२६) अर्हत् को भावपूर्वक नमस्कार करने से बोधिलाभ होता है, अनंत भवों से मुक्ति मिलती है। अर्हत-नमस्कार सब पापों का नाश करता है और सभी मंगलों में प्रथम मंगल है। निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का। अव्वाबाहं सुक्खं अणुहुंती सासयं सिद्धा ।। सिद्धाण नमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसि बिइअं होइ मंगलं ।। (आवनि ९८८,९९२) ___ सब दुःखों से मुक्त, जन्म-जरा-मरण के बंधन से विप्रमुक्त सिद्ध अव्याबाध, शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं । सिद्ध-नमस्कार सब पापों का नाश करता है और सब मंगलों में द्वितीय मंगल है। आयारदेसणाओ पुज्जा परमोवगारिणो गुरवो। विणयाइगाहणा वा उवज्झाया सुत्तया जं च ।। १. नमस्कार पंचक नमो अरहताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं (आव १/१) एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं ।। (आवनि १०१८ म प ५५२) अर्हतों को नमस्कार सिद्धों को नमस्कार आचार्यों को नमस्कार उपाध्यायों को नमस्कार लोक के सब साधुओं को नमस्कार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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