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________________ ध्यान ३५८ ध्यान की परिभाषा माणसत्तंमि आयाओ जो धम्म सोच्च सहहे । १. ध्यान की परिभाषा तवस्सी वीरिय लधु संवुडे निधुणे रयं ।। ० प्रकार (उ ३।११) । २. आर्तध्यान का निर्वचन मनुष्यत्व को प्राप्त कर जो धर्म को सुनता है, उसमें | ० प्रकार श्रद्धा करता है, वह तपस्वी संयम में पुरुषार्थ कर, संवत ० लक्षण हो कर्मरजों को धुन डालता है। ० अधिकारी जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। ० आर्तध्यान : लेश्या-अध्यवसाय-गति अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जति राइओ। ३. रौद्रध्यान का निर्वचन जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । • प्रकार धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ ।। ० लक्षण (उ १४।२४,२५) ० अधिकारी जो-जो रात बीत रही है, वह लौटकर नहीं आती । • रौद्रध्यान : गति और लेश्या अधर्म करने वाले की रात्रियां निष्फल और धर्म करने | ४. धम्यव्यान वाले की रात्रियां सफल होती हैं । ० प्रकार ० लक्षण १२. लौकिक और लोकोत्तर उपकार ० अधिकारी परोपकारश्च द्विधा द्रव्यतो भावतश्च । तत्र द्रव्यतो • आलम्बन विविधान्नपानकाञ्चनादिप्रदानजनितः । स च नैकान्तिकः, • अनुप्रेक्षाएं कदाचित्ततो विसूचिकादिदोषसम्भवतः उपकारासम्भवात् । ० धर्म्यध्यान : लेश्या-अध्यवसाय-गति नाप्यात्यन्तिक: कियत्कालमात्रभावित्वात् । भावतो जिन ० निष्पत्ति प्रणीतधर्मसम्पादनजनितः, स चैकान्तिकः, कदाचिदपि ५. शुक्लध्यान का निर्वचन ततो दोषासम्भवात्, आत्यन्तिकश्च परम्परया शाश्वतिक ० प्रकार मोक्षसौख्यसम्पादकत्वात् । (नन्दीमवृ प १) ० लक्षण परोपकार के दो भेद हैं-द्रव्य और भाव । अन्न ० अधिकारी पानी, स्वर्ण आदि से सहयोग करना द्रव्य उपकार • आलंबन अर्थात् लौकिक उपकार है। इससे विसूचिका आदि दोषों ० अनुप्रेक्षाएं की सम्भावना रहती है, इसलिए यह उपकार ऐकान्तिक • शुक्लध्यान : योग-लेश्या-गति नहीं है। यह अल्पकालीन होने के कारण आत्यन्तिक भी ० निष्पत्ति नहीं है। आर्हत धर्म का सम्पादन करना भाव उपकार ० केवली में शक्लध्यान कैसे? अर्थात् लोकोत्तर उपकार है। इससे कभी दोष संभव * शुक्लध्यान और योगनिरोध (द्र. केवलज्ञान) नहीं है, अत: यह ऐकान्तिक उपकार है। परम्परित रूप ६. वाचिक-कायिक ध्यान में शाश्वत मोक्षसुख का सम्पादक होने से यह आत्यन्तिक ७. ध्यान के सात विकल्प उपकार है। ८. दृष्टिवाद और ध्यान ९. ध्यान की योग्यता : भावना धर्मास्तिकाय- गतिसहायक द्रव्य । १०. ध्यान के अयोग्य __(द्र. अस्तिकाय) ११. ध्यान का स्थान-काल-आसन धारणा--निर्णयात्मक ज्ञान की अविच्युति । * ध्यान : तप का एक भेद (द्र. तप) (द्र. आभिनिबोधिक ज्ञान) * धर्म्य-शुक्ल ध्यान : उच्छित कायोत्सर्ग ध्यान-चित्त की एकाग्रता । योगनिरोध । (द्र. कायोत्सर्ग) www.jainelibrary.org | Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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