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________________ देव ३४८ देवों की कायस्थिति जवन्य आयु उत्कृष्ट आयु सनत्कुमार दो सागरोपम सात सागरोपम माहेन्द्र किंचित् अधिक दो सागरोपम किंचित् अधिक सात सागरोपम ब्रह्मलोक सात सागरोपम दस सागरोपम लान्तक दस सागरोपम चौदह सागरोपम महाशुक्र चौदह सागरोपम सतरह सागरोपम सहस्रार सतरह सागरोपम अठारह सागरोपम आनत अठारह सागरोपम उन्नीस सागरोपम प्राणत उन्नीस सागरोपम बीस सागरोपम आरण बीस सागरोपम इक्कीस सागरोपम अच्युत इक्कीस सागरोपम बाईस सागरोपम • नव प्रैवेयक प्रथम प्रैवेयक बाईस सागरोपम तेईस सागरोपम द्वितीय ग्रैवेयक तेईस सागरोपम चौबीस सागरोपम तृतीय ग्रैवेयक चौबीस सागरोपम पच्चीस सागरोपम चतुर्थ नैवेयक पच्चीस सागरोपम छब्बीस सागरोपम पंचम ग्रैवेयक छब्बीस सागरोपम सत्ताईस सागरोपम षष्ठ ग्रैवेयक सत्ताईस सागरोपम अट्ठाईस सागरोपम सप्तम ग्रैवेयक अट्ठाईस सागरोपम उनतीस सागरोपम अष्टम अवेयक उनतीस सागरोपम तीस सागरोपम नवम अवेयक तीस सागरोपम इकतीस सागरोपम • पांच अनुत्तर विमान विजय वैजयन्त इकतीस सागरोपम तेतीस सागरोपम जयन्त अपराजित सर्वार्थसिद्ध तेतीस सागरोपम तेतीस सागरोपम १०. देवों की कायस्थिति अन्तरकाल जा चेव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया । अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । सा तेसिं कायठिई, जहन्नुक्कोसिया भवे ।। विजढंमि सए काए, देवाणं हज्ज अंतरं ।। (उ ३६।२४५) (उ ३६२४६) सारे ही देवों की जितनी आयुस्थिति है, उतनी ही उनका अन्तर-अपने-अपने काय को छोड़कर पुनः उनकी जघन्य या उत्कृष्ट कायस्थिति है। उसी काय में उत्पन्न होने का काल जघन्यत: अन्तर्मुहर्त देवे नेरइए य अइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । और उत्कृष्टत: अनन्तकाल का है। इक्किक्कभवग्गहणे ........ ॥ अवगाहना (उ १११४) एवं असुरकुमाराईणं जाव अणत्तरविमाणवासीणं देव और नरकयोनि में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से सगसगसरीरोगाहणा भाणियव्वा। (अनु ४०५) अधिक एक-एक जन्म ग्रहण तक वहां रह जाता है। असुरकूमाराणं भवधारणा जहण्णा अंगुलअसंखभागो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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