SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दृष्टिवाद देव कंडिकानुयोग में कुलकरकंडिका, तीर्थंकरकंडिका, ७. दृष्टिवाद के अनह चक्रवर्तीकंडिका, दशारकंडिका, बलदेवकंडिका, वासुदेव- बहवे दुम्मेधा असत्ता दिद्विवार्य अहिज्जिलं । अप्पाकंडिका, गणधरकंडिका, भद्रबाहुकंडिका, तपःकर्मकडिका, उयाण य आउयं ण पहप्पति । इत्थियाओ पुण पाएण हरिवंशकंडिका, अवसर्पिणी कंडिका, उत्सपिणीकाडका, तच्छाओ. गारवबहलाओ चलिंदियाओ, दुब्बलधिईओ, चित्रांतरकंडिका, देव, मनुष्य, तिर्यञ्च और नरकगति में अतो एयासिं जे अतिसेसज्झयणा अरुणोववायणिसीहगमन तथा विविध परिवर्तन इत्यादि कंडिकाओं का का माइणो दिद्रिवातोय ते ण दिज्जति । मानना प्रतिपादन है। ___(आवचू १ पृ ३५) इक्ष्वादीनां पूर्वापरपर्वपरिच्छिन्नो मध्यभागो जो मंद बुद्धि वाले हैं, वे दृष्टिवाद को पढ़ने में गण्डिका । गण्डिकेव गण्डिका - एकार्थाधिकारा ग्रन्थ असमर्थ हैं। जो अल्पायु हैं, उनका आयुष्य विशाल पद्धतिरित्यर्थः। गण्डिकानुयोगे कुलकरगण्डिकाः, इह ज्ञानराशि को प्राप्त करने से पूर्व ही समाप्त हो जाता सर्वत्राप्यपान्तरालवत्तिन्यो बह्वयः प्रतिनियतैकार्थाधि- है। स्त्रियां प्राय: तुच्छ और गौरवबहुल होती हैं। काररूपागण्डिका: कुलकरगण्डिकाः, तत्र कुलकराणां उनकी इन्द्रियां चंचल और धृति दुर्बल होती है, इसलिए विमलवाहनादीनां पूर्वभवजन्मनामादीनि सप्रपञ्चमुप- उन्हें अरुणोपपात, निशीथ जैसे अतिशेष-विशिष्ट वर्ण्यन्ते, एवं तीर्थकरगण्डिकादिष्वभिधानवशतो भाव- अध्ययनों तथा दष्टिवाद की वाचना नहीं दी जा सकती। नीयम् । (नन्दीमव प २४२) देव-दिव्य शक्ति-सम्पन्न । इक्ष आदि के पूर्व-अपर पर्व से परिच्छिन्न मध्यभाग को गंडिका-कंडिका कहते हैं। कंडिका की भांति जो १. देव का निर्वचन २. देव के प्रकार समान वक्तव्यता के अर्थाधिकार वाली ग्रन्थपद्धति है, वह कंडिकानुयोग है। जैसे-कूलकरकंडिका में विमल ३. भवनपति देव * परमाधामिक देव (द्र. नरक) वाहन आदि कुलकरों का पूर्वभव, जन्म, नाम आदि विस्तार ४. व्यंतर देव से वर्णित हैं। तीर्थकरकंडिका आदि में भी इसी प्रकार • जम्भक देव अपने-अपने नाम के आधार पर विस्तार से वर्णन होता है। ५. ज्योतिष्क देव चित्रान्तरकंडिका का प्रतिपाद्य * नक्षत्र देव (. नक्षत्र) ऋषभाजित तीर्थकरान्तरे ऋषभवंशसमुद्भूतभूपतीनां ६. वैमानिक देव शेषगतिगमनव्युदासेन शिवगतिगमनानुत्तरोपपातप्राप्ति- ७. कल्पोपग देव प्रतिपादिका गण्डिकाश्चित्रान्तरगण्डिकाः । ८. कल्पातीत देव (नन्दीमत् प २४२) ० प्रैवेयक और अनुत्तर देव चित्रान्तरकंडिका में अर्हत् ऋषभ और अर्हत् अजित | * लोकांतिक देव (. तीर्थकर) के अन्तराल काल में ऋषभवंश में उत्पन्न राजाओं के | ९. देवों की आयुस्थिति मोक्षगमन तथा अनुत्तर विमानों में उपपात का प्रतिपादन १०. देवों की कायस्थिति • अन्तरकाल (अर्हत ऋषभ के वंशज आदित्ययश आदि सम्राट ० अवगाहना दीक्षित हुए, साधना की और मुक्त हो गये। वे संख्या | ११. देव-आयुष्य बंध के कारण तीत थे। उनके पश्चात् अर्हत् अजित हुए-इससे संबद्ध | . देवों की सम्पदा विवरण वाली असंख्येय चित्रांतरगडिकाएं हैं। यह सारी | १२. देव के मनुष्यलोक में आगमन के कारण बात अष्टापद पर्वत पर चक्रवर्ती सगर के महामंत्री | १३. बेव के मनुष्यलोक में न आने के कारण सुबुद्धि ने सगरपुत्रों को बतायी थी। * देवलोक को अवस्थिति (द्र. लोक) (देखें-नन्दीमव प २४२-२४६) * देव की अस्तित्व सिद्धि (द्र. गणधर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy