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________________ सूत्र और नयदृष्टि ३४१ दृष्टिवाद प्रकार सुत्ताई बावीसं पण्णत्ताई, तं जहा-उज्जुसुयं, परिणयापरिणय, बहुभंगियं, विजयचरियं, अणंतरं, परंपर, सामाणं, संजूह, संभिण्णं, आहच्चायं, सोवत्थियं पंट, नंदावत्तं, बहुलं, पुट्ठापुढें, वियावत्तं, एवंभूयं, दुयावत्तं, वत्तमाणुप्पयं, समभिरूढं, सव्वओभइं, पण्णासं, दुप्पडिग्गहं। (नन्दी १०२) सूत्र बाईस प्रकार के हैं१. ऋजुसूत्र १२. नन्द्यावर्त २. परिणतापरिणत १३. बहुल ३. बहुभंगिक १४. स्पृष्टास्पृष्ट ४. विजयचरित १५. व्यावत ५. अनन्तर १६. एवंभूत ६. परम्पर १७. द्विकावर्त ७. सत् १८. वर्तमानपद ८. संयूथ १९. समभिरूढ़ ९. संभिन्न २०. सर्वतोभद्र १०. यथात्याग २१. पंन्यास ११. सौवस्तिक घंट २२. दुष्प्रतिग्रह सूत्र के गुण निद्दोस सारवन्तं च हेउजुत्तमलंकियं । उवणीयं सोवयारं च मियं महरमेव य ॥ अप्पक्खरमसंदिद्धं सारवं विस्सओमुहं । अत्थोभमणवज्जं च सुत्तं सवण्णभासियं ॥ (आवनि ८८५.८८६) सूत्र के आठ गुण हैं-१. निर्दोष, २. सारवत् - बहु पर्याय वाला, ३. हेतुयुक्त-अन्वयव्यतिरेकलक्षण युक्त, ४. अलंकृत-उपमा आदि से युक्त, ५. उपनीतउपनयों से युक्त, ६. सोपचार-अग्राम्यअभिधान, ७. मित-नियत वर्ण आदि, ८. मधुर । अथवा १. अल्पाक्षर २. असंदिग्ध ३. सारवत् ४. विश्वतोमुख - प्रत्येक सूत्र में अनुयोगों का कथन, अनेक अर्थ वाला ५. अस्तोभक-निपातरहित ६. अनवद्य-ये सर्वज्ञभाषित सूत्र के लक्षण हैं। सूत्र के दोष अलियमुवघायजणयं निरत्थयमवत्ययं छलं दुहिलं । निस्सारमधियमूणं पुणरुत्त वाहयमजुत्तं ॥ कमभिण्णवयणभिण्णं विभत्तिभिन्नं च लिंगभिन्नं च। अणभिहियमपयमेव य सभावहीणं ववहियं च ॥ कालजतिच्छविदोसा समयविरुद्धं च वयणमित्तं च । अत्थावत्तीदोसो य होइ असमासदोसो य॥ उवमारूवगदोसाऽनिद्देस पदत्थसंधिदोसो य। एए उ सुत्तदोसा बत्तीसं होंति णायव्वा ।। (आवनि ८८१-८८४) सूत्र के बत्तीस दोष १. अनुत २. उपघातजनक- जीवों की घात करने वाला ३. निरर्थक ४. अपार्थक-पौर्वापर्य योग के सम्बन्ध से रहित ५. छल-वाक्छल ६. हिल-द्रोहस्वभाव ७. निःसार ८. अधिक-वर्ण आदि अधिक हों ९. ऊन-वर्ण आदि कम हों १०. पूनरुक्त-शब्द-अर्थ का पुनर्वचन ११. व्याहत पहले से दूसरे का हनन १२. अयुक्त १३. क्रमभिन्न १४. वचनभिन्न-वचनव्यत्यय १५. विभक्तिभिन्न १६. लिङ्गभिन्न १७. अनभिहित-अपने सिद्धान्त में अनुपदिष्ट १८. अपद १९. स्वभावहीन २०. व्यवहित-अन्तहित २१. कालदोष- अतीत आदि काल का व्यत्यय २२. यतिदोष-विरामरहित २३. छविअलंकारविशेष से शून्य २४. समयविरुद्ध-अपने सिद्धान्त से विरुद्ध २५. वचनमात्र २६. अर्थापत्ति दोष २७. असमास दोष-समास व्यत्यय २८. उपमादोष अधिक या कम उपमा २९. रूपक दोष-स्वरूपावयव व्यत्यय ३०. अनिर्देशदोष-उद्देश्यपदों को एक वाक्य में न करना ३१. पदार्थदोष ३२. सन्धिदोष । सूत्र और नयदृष्टि बावीस सुत्ताई छिण्णच्छेयनइयाणि ससमयसत्तपरिवाडीए। बावीसं सुत्ताई अच्छिण्णच्छेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए। - बावीसं सुत्ताइं तिगनइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए। ____ बावीसं सुत्ताई चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए। एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीइ सुत्ताइ भवंतीति मक्खायं । (नन्दी १.३) ___दृष्टिवाद के बाईस सूत्र स्वसमय परिपाटी (जैनागम पद्धति) के अनुसार छिन्नछेदनयिक होते हैं। बाईस सूत्र आजीवक परिपाटी के अनुसार अच्छिन्नछेदनयिक होते हैं। बाईस सूत्र राशिक परिपाटी के अनुसार त्रिक नयिक होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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