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________________ कैवल्य प्राप्ति तीर्थंकर है। भंते ! मैंने जो कुछ किया, उस सबके लिए क्षमा- गुणस्थान की स्थिति अन्तर्मुहुर्त होने से अनेक बार याचना करता हूं। प्रमाद की स्थिति प्राप्त होती है। अप्रमत्तसंयत का भगवन् ! मैं भग्नप्रतिज्ञ हूं, आप यथार्थप्रतिज्ञ हैं। अन्तर्मुहूर्त असंख्येय प्रकार का है। प्रमाद की स्थिति आप पधारें और पारणा करें। भगवन ! मैं अब उपसर्ग वाला अन्तर्महत सूक्ष्म होता है, किन्तु पूरे प्रमादकाल नहीं करूंगा। का संकलन करने पर बृहत्तर अन्तर्महर्त हो जाता है। महावीर ने कहा-हे संगम ! मैं किसी के वक्तव्य एक मान्यता के अनुसार इसे निद्राप्रमाद कहा गया है। की अपेक्षा नहीं रखता। मैं अपनी इच्छा से ही आता हूँ जयपारित और अपनी इच्छा से ही जाता हूं। दूसरे दिन महावीर गांव में भिक्षा के लिए गए। ताहे सामी जंभियगाम णाम णगरं गतो, तस्स एक वृद्धा ग्वालिन ने बासी खीर का दान दिया। पांच बहिया वियावत्तस्स चेतियस्स अदूरसामंते"उज्जुयालि याए णदीए तीरंमि उत्तरिल्ले कूले सामागस्स गाहादिव्य प्रकट हुए। उस दिन सौधर्म देवलोक के सभी देव उदविग्न से वतिस्स कट्ठकरणंसि सालपादवस अहो उक्कुडुयणिबैठे थे। संगम सौधर्म देवलोक में गया। सेज्जाए गोदोहियाए आतावणाए आतावेमाणस्स छठेणं उसे देख शक्र पराङ मुख हो देवों से बोला- हे भत्तेणं अपाणएणं अणुत्तरेणं णाणणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं ""अप्पाणं भावेमाणस्स दुवालसहिं देवो ! सुनो, यह दुरात्मा है। इसने न तो मेरी और न दूसरे देवों के चित्त की अनुपालना की है। यह तीर्थंकर संवच्छरेहिं वितिक्तेहिं तेरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा का प्रत्यनीक है । यह हमारे किसी काम का वट्टमाणस्स वइसाहसुद्धदसमीए पादीणगामिणीए छायाए नहीं है । यह बातचीत करने योग्य भी नहीं है। इसे अभिनिव्वट्टाए पोरुसीए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं देवलोक से निष्कासित कर दो। विजएणं मुहुत्तेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागतेणं इन्द्र ने संगम को पैर से लताड़ कर निकाल दिया। झाणंतरियाए वट्टमाणस्स एकत्तवितकं बोलीणस्स सुहम किरियं अणियट्रिमपत्तस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए महावीर का प्रमादकाल निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने। बारसवासे अहिए तवं चरंतस्स वद्धमाणस्स । (आवचू १ पृ ३२२,३२३) जो किर पमायकालो अंतमहत्तं तु संकलिअं। ..."ऋषभनाम्नो भगवत आचरतो यः"प्रमादकालः ___ जुभिकग्राम के बाहर, व्यावृत्त चैत्य । ऋजुबालिका .."अप्रमादगुणस्थानस्यान्तौहूतिकत्वेनानेकशोऽपि प्रमाद नदी का उत्तरी तट। श्यामाक गृहपति का खेत । शालप्राप्तौ तदवस्थितिविषयभूतस्यान्तर्महतस्यासंख्येयभेदत्वा- वृक्ष के नीचे । महावीर पहले उत्कटुक आसन में बैठे, तेषामतिसूक्ष्मतया सर्वकालसंकलनायामप्यहोरात्रमेवा- फिर गोदोहिका मुद्रा में आतापन । दो दिन का निर्जल भूत् ।""वर्द्धमानस्य यः किल प्रमादकालः इहाप्यन्तर- उपवास । मुहर्तानामसंख्येयभेदत्वात्प्रमादस्थिति-विषयान्तर्मुहूर्तानां अनुत्तर ज्ञान, दर्शन, चारित्र से अपने आपको सूक्ष्मत्वं, संकलनान्तर्मुहूर्तस्य च बृहत्तरत्वमिति भाव- भवित करते हुए बारह वर्ष बीत गए । तेरहवां वर्ष चल नीयम्। अन्ये त्वेतदनुपपत्तिभीत्या निद्राप्रमाद एवायं रहा था । वैशाख मास का शुक्ल पक्ष । दसवीं तिथि । विवक्षित इति व्याचक्षते । (उनि ५२४ शाव प ६२०) पूर्वगामिनी छाया । चतुर्थ प्रहर। सुव्रत दिवस । विजय भगवान् ऋषभ का संकलनात्मक प्रमादकाल एक मुहूर्त । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का योग । ध्यानकोष्ठक अहोरात्र का है। भगवान महावीर ने बारह वर्ष तेरह में प्रविष्ट । शुक्ल ध्यान की अंतरिका में वर्तमानपक्ष तक तपःसाधना की । इस कालखंड में उनके प्रमाद- एकत्ववितर्क अविचार (शुक्ल ध्यान का दूसरा भेद) के पूर्ण काल को संकलित किया जाये तो वह अन्तर्मुहर्त्त का होने पर, सूक्ष्मक्रियाअनिवृत्ति शुक्ल ध्यान की प्राप्ति से पूर्व होता है। अनन्त, अनुत्तर, निहित, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण तीर्थकर अप्रमत्त होते हैं, किंतु अप्रमत्तसंयत केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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