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________________ तीर्थंकर सहोवसग्गसहेत्ति देवेह से कतं णामं समणे भगवं महावीरे । ( आवचू १ पृ २४५) महावीर के तीन नाम १. उनका माता-पिता के द्वारा प्रदत्त नाम थावर्द्धमान । २. उन्हें सहज ज्ञान प्राप्त था, इसलिए वे समण कहलाए । ३. भीम और अतिभयंकर परीषहों और उपसर्गों को सहने के कारण देवों ने उनका नाम श्रमण महावीर रखा । ३१. महावीर का पूर्वभव : : सम्यक्त्वप्राप्ति ३२४ पंथ कर सित्ता साहूणं अडविविप्पणद्वाणं । सम्मत्तपढमलंभो बोद्धव्वो वद्धमाणस्स ॥ अरविदेहे तत्थ एगंमि गामंमि गामस्स चिंतओ (बलाहिओ) सो रायाएसवसेण सगडिसागडं गहाय एवं महं अि अणुपविट्ठो दारुगनिमित्तं, अन्ने य साधुणो सत्थपरिभट्ठा'''' तहाए छुहाए य परज्झहिता तं देतं गता जत्थ सो सगडसंनिवेसो । सो य ते पासित्ता साधुणो महता संवेगमावन्नो – अहो इमो साधुणो अदेसिया तवस्तिो अव विट्ठा, सो अणुकंपाए विपुलं अन्नं पाणं दाऊणं भगति - एह भगवं ! जाहे पंथं समोतरेमि एगो धम्मक हियलद्धिसपन्नो तस्स धम्मं कहेउमारद्धो, धम्मकावसाणे य से उवगतं सम्मत्तं । ( आवनि १४६ चू १ पृ १२८ ) अरविदेह के एक गांव का ग्रामचिंतक ( बलाहक ) राजा के आदेश से काष्ठ लाने के लिए गाड़ियां लेकर एक घने जंगल में गया। वहां कुछ ऐसे साधु थे, जो मार्ग भूल गये थे, भूख-प्यास से व्याकुल थे । मध्याह्न का समय था । वे सब उसी शकटसन्निवेश में गये । साधुओं को देख ग्रामचितक बहुत आनन्दित हुआ । उन्हें विपुल अन्न-पान से प्रतिलाभित कर सही मार्ग बताया । उन मुनियों में से एक धर्मकथालब्धिसम्पन्न मुनि ने धर्म का उपदेश दिया, जिसे सुन ग्रामचिन्तक ( महावीर के जीव ) को सम्यक्त्व प्राप्त हुआ । इक्खागेसु मरीई चउरासीई अ बंभलोगंमि । कोसिउ कुल्लागंमी असीइमाउं च संसारे ॥ थूणाई समित्तो आउं बावतरि च सोहम्मे । चेइअ अग्गज्जोओ चोवीसाणकष्पंमि || मंदिरे अग्गिभूई छप्पण्णा उ सणकुमारंमि । सेअवि भारद्दाओ चोआलीसं च माहिदे || Jain Education International महावीर का पूर्वभव : सम्यक्त्वप्राप्ति संसरिअ थावरो रायगिहे चउतीस बंभलोगंमि । छवि परिव्वज्जं भमिओ तत्तो अ संसारे ॥ यहि विस्सनंदी विसाहभूई अ तस्स जुवराया | वरण विस्तभूई विसाहनंदी अ इअरस्स । यहि विभूईवाससहस्सं दिक्खा ॥ ..... महसुक्के उववण्णो तओ चुओ पोअणपुरंमि ॥ पुत्त पयावइस्सा मिआवईदेविकुच्छिसंभूओ । नामेण तिविट्ठत्ती आई आसी दसाराणं ॥ चुलसी ईमप्पइट्ठे सीहो नरएसु तिरियमणुएसु । पिaमित्त चक्कवट्टी मूआइ विदेहि चुलसीई ॥ पुत्तो धणंजयस्सा पुट्टिल परिआउ कोडि सव्वट्ठे । णंदण छत्तग्गाए पणवीसाउं सयसहस्सा ॥ पव्वज्ज पुट्टिले सयसहस्स सव्वत्थ मासभत्तेणं । पुप्फुत्तरि उववण्णो तओ चुओ माहणकुलंमि ॥ ( आवनि ४४०-४५० ) महावीर के सत्ताईस भव- १. बलाहक २. सौधर्म देव ३. मरीचि (ऋषभ - पौत्र ) ४. ब्रह्मलोक में देव | ५. कौशिक ब्राह्मण ( कोल्लाक सन्निवेश ) ६. पुष्यमित्र ब्राह्मण (स्थूणा नगरी ) ७. सौधर्म देव ८. अग्निद्योत ब्राह्मण ( चैत्य सन्निवेश ) ९. ईशान कल्पवासी देव । १०. अग्निभूति ब्राह्मण (मन्दिर सन्निवेश ) ११. सनत्कुमार देव १२. भारद्वाज ब्राह्मण ( श्वेतविका नगरी ) १३. माहेन्द्र देव १४. स्थावर ब्राह्मण (राजगृह ) १५. ब्रह्मकल्प में देव १६. विश्वभूति ( राजगृह) १७. महाशुक्र देव १८. त्रिपृष्ठ वासुदेव ( पोतनपुर ) १९. सातवीं नरक २०. सिंह २१. नरक २२. प्रियमित्र चक्रवर्ती २३. महाशुक्र देव । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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