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________________ ज्ञानक्रियावाद २९४ तप गुणप्पमाणे केवलदसणगुणप्पमाणे । (अनु ५५२) तत्त्व नौ हैं दर्शन के चार प्रकार हैं --चक्षदर्शन, अचक्षदर्शन, जीव-जिसमें चेतना हो, सुख-दुःख का संवेदन हो। 'अवधिदर्शन, केवलदर्शन । अजीव-जिसमें चेतना न हो। चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शन पुण्य-शुभ रूप में उदय आने वाले कर्मपुद्गल । चक्षदर्शने-चक्षषा रूपसामान्यग्रहणे । अचक्षुषि-- पाप-अशुभ रूप में उदय आने वाले कर्मपुद्गल । चक्ष:सदशानि शेषेन्द्रियमनांसि तदर्शने तेषां स्वस्वविषय आश्रव-कर्मपुद्गलों को ग्रहण करने वाली आत्मप्रवृत्ति । सामान्यपरिच्छेदे। संवर--आश्रव का निरोध । (उशावृ प ६४२) चक्षु के द्वारा रूप का सामान्य ग्रहण चक्षदर्शन है। निर्जरा ---तपस्या आदि के द्वारा कर्मविलय से होने वाली श्रोत्र, घ्राण, रस, स्पर्श और मन के द्वारा अपने-अपने आत्मा की आंशिक उज्ज्वलता । विषय का सामान्य ज्ञान होता है, वह अचक्षुदर्शन है। बंध-आत्मा के साथ शुभ-अशुभ कर्मों का संबंध । मोक्ष-अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित कर्ममुक्त आत्मा । अवधिदर्शन तथाकार-आचार्य के वचनों को तहत्'-- आप जो सागारमणागारा ओहि (आवनि ६५) कह रहे हैं, वह वैसा ही है-इस रूप में जो रूपी द्रव्यों को विशेष रूप से ग्रहण करता है, वह अवधिज्ञान है। जो रूपी द्रव्यों को सामान्य रूप से स्वीकार करना । सामाचारी का एक भेद। ग्रहण करता है, वह अवधिदर्शन है। (द्र. सामाचारी) ज्ञान और दर्शन का भेद क्यों? तद्भवमरण -मरण का एक भेद। (द्र. मरण) सामान्यत एकरूपेऽपि क्षयोपशमलम्भेऽपान्तराले तप-कर्मशरीर को तपाने वाला अनुष्ठान, कर्मद्रव्याद्यपेक्षया क्षयोपशमस्य विशेषसम्भवाद विविधोपयोग- क्षय का असाधारण हेतु । सम्भवो भवतीति । (नन्दीमवृ प १०९) १. तप की परिभाषा ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति में ज्ञानावरणीय-दर्शनावर- | णीय कर्म के क्षयोपशम की समानता रहती है -सामा * तप : मोक्ष का मार्ग (द्र. मोक्ष) न्यतः क्षयोपशम एक ही प्रकार का है। किन्तु द्रव्य में २. तप के प्रकार सामान्य और विशेष----दोनों धर्म होते हैं, इस दष्टि से ३. बाह्य-आभ्यंतर के भेद का हेतु क्षयोपशम के दो रूप बनते हैं - ज्ञान (साकार उपयोग) ४. इत्वरिक तप के प्रकार और दर्शन (अनाकार उपयोग)। ० श्रेणी तप ० प्रतर तप ज्ञानक्रियावाद-- मुक्ति के लिए ज्ञान और क्रिया ० घन तप को समन्वित साधना का सिद्धान्त । ० वर्ग तप (द्र. वाद) ० वर्गवर्ग तप ज्ञानावरणीय-ज्ञान को आवत करने वाला कर्म। ० प्रकीर्ण तप (द्र. कर्म) * तप : चारित्र धर्म का एक भेद (इ. धर्म) ज्योतिष्क --जो प्रकाशमान विमानों में रहते हैं, वे | ५. तप चारित्र से पृथक क्यों ? देव। (द्र. देव) ६. तप का उद्देश्य तत्त्व-पारमार्थिक वस्तु -'तथ्याः अवितथाः निरुप- | ७. तप की अर्हता चरितवृत्तयः ।' (उशाव प ५६२) | ८. तप के परिणाम जीवाजीवा य बंधो य, पुण्णं पावासवो तहा। * तप : प्रायश्चित्त का एक प्रकार (द्र. प्रायश्चित्त) संवरो निज्जरा मोक्खो, संतेए तहिया नव ।। * नमस्कारसहिता आदि तप (द्र. प्रत्याख्यान) (उ २८।१४) * महावीर की तपस्या (द्र. तीर्थंकर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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