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________________ पृथ्वीकाय की परिभाषा ११. पृथ्वी आदि की दृश्यता पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवां में - * पर्याप्ति * अव्यक्त मन संज्ञा शरीर * चेतना विकास का क्रम * १. पृथ्वी कायिक २. अकायिक १. छह जीवनिकाय छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया तं जहा पुढविकाइय। आउ काइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया । (द ४ | सूत्र ३ ) भगवान महावीर द्वारा प्रज्ञप्त छह जीवनिकाय ये २. स्थावर जीव ३. तेजस्कायिक ६. कायिक ( इनमें प्रथम पांच जीवनिकाय स्थावर हैं ।) ( द्र पर्याप्ति ) ( द्र. आत्मा ) (द्र श्रुतज्ञान) .द्र. शरीर ) ( द्र. ज्ञान ) ४. वायुकायिक ५. वनस्पतिकायिक २७९ शीतातपाद्युपहता अपि स्थानान्तरं प्रत्यनभिसर्पितया स्थानशीला: स्थावराः । शीत, आतप आदि से उपहत होने स्थानान्तर में गमन नहीं करते, स्थिर जीव हैं । Jain Education International ( उशावृप २४४) पर भी जो जीव रहते हैं, वे स्थावर पुढवी आउजीवा उ तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा... ॥ ( उ ३६/६९ ) प्रस्तुत सूत्र में स्थावर के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं - पृथ्वी काय, अप्काय और वनस्पतिकाय । (तेजस्काय तथा वायुकाय को गति के कारण त्रस माना गया है ।) स्थावरजीवों के शस्त्र दबं सत्थ-ग्ग-विसं - नेहं बिल - खार- लोणमाईयं । भावो तु दुप्पउत्तो वाया काओ अविरई य ॥ (दनि १४० ) द्रव्यशस्त्र -- अग्नि, विष, स्नेह (तैल आदि ), क्षार तथा नमक आदि । जीवनिकाय भावशस्त्र -- दुष्प्रयुक्त मन-वचन-काय और असंयम । किंची सकायसत्थं किंची परकाय तदुभयं किचि । भावे अस्सं मो सत्यं ॥ एतं तु दव्वसत्थं ( दनि १४१ ) स्वकायशस्त्र - पांच प्रकार को मिट्टी परस्पर शस्त्र है । परकायशस्त्र - पृथ्वीकाय अप्काय के लिए शस्त्र है । उभयशस्त्र - काली मिट्टी जल में मिलने पर पानी और मिट्टी दोनों के लिए शस्त्र है । ३. पृथ्वीकाय की परिभाषा पृथिवी - काठिन्यादिलक्षणा प्रतीता सैव कायःशरीरं येषां ते पृथिवीकायाः । ( दहावृप १३८ ) काठिन्य आदि लक्षणों से जानी जाने वाली पृथ्वी ही जिनका काय - शरीर होता है, उन जीवों को पृथ्वीकाय कहते हैं । जीवत्वसिद्धि मंसंकुरो व्व सामाणजाइरूवं कुरोवलंभाओ । तरुगणविदुम-लवणोवलादओ सासयावत्था | ( विभा १७५६ ) विद्रुम, लवण उपल आदि पृथ्वीकाय अपने जन्मस्थानगत सजीव हैं । छिन्न होने पर भी उसी स्थान पर समानजातीय अंकुर की उत्पत्ति होती है, जैसे अर्श के मांसांकुर की । अणेगजीवा पुढोसत्ता (द ४ | सूत्र ४ ) शस्त्र - परिणति से पूर्व पृथ्वी चित्तवती ( सजीव ) कही गई है । वह अनेक जीव और पृथक् सत्त्वों (प्रत्येक atra के स्वतन्त्र अस्तित्व) वाली है । प्रकार पुढवी चित्तमंतमक्खाया अन्नत्थ सत्यपरिणं । दुविहा पुढवीजीवा उ, सुहुमा पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा बायरा तहा । For Private & Personal Use Only पुणो ॥ ( उ ३६/७० ) पृथ्वीकाय के जीव दो प्रकार के हैं- सूक्ष्म और बादर । इन दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त - ये दो-दो भेद होते हैं । बायरा जे उपज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया । सहा खरा य बोद्धव्वा, सण्हा सत्तविहा तहिं ॥ ( उ ३६।७१) www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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