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________________ जीव २७६ जीव का परिमाण जीव-प्राण धारण करने वाला। कालतो भावतो। दव्वतो एगं जीवदव्वं । खेत्ततो असंखेज्जपएसोगाढं। कालतो अणादीए अपज्जवसिते । १. जीव के लक्षण भावतो अणंता नाणपज्जवा दंसणपज्जवा चरित्तपज्जवा २. जीव का स्वरूप अगुरुलहुयपज्जवा य। (आवच १ पृ १०८) ३. जीवास्तिकाय का अर्थ जीवद्रव्य --द्रव्य की अपेक्षा एक द्रव्य -एक ४. जीव का परिमाण संख्या वाला है। क्षेत्र की अपेक्षा असंख्येय प्रदेशों में ५. जीवों की अनंतता अवगाहन करता है । काल की अपेक्षा अनादि और अनन्त ६. जीव के प्रकार है। भाव की अपेक्षा अनन्त ज्ञान-दर्शन-चारित्र पर्यवों • संसारी जीव * सिद्ध जीव (द्र. सिद्ध) वाला तथा अगुरुलघु पर्याय वाला है। ० संसारी जीव के प्रकार ३. जीवास्तिकाय का अर्थ * त्रस (द्र. त्रस) जीवास्तिकायः यस्माज्जीवितवान् जीवति जीविष्यति * स्थावर (द्र. जीवानकाय) | च तस्माज्जीवः । अस्तीति वा प्रदेशाः, अस्तिशब्दो ७. जीव के चौदह प्रकार वाऽस्तित्वप्रसाधकः । कायस्तु समूहः, प्रदेशानां जीवानां ८. सूक्ष्म जीवों के प्रकार वा उभयथाप्यविरुद्धं इत्यतो जीवास्तिकायः । * जीव (आत्मा) की अस्तित्व सिद्धि (द. आत्मा) ___ (अनुचू पृ २९) * पृथ्वी आदि में जीवत्व सिद्धि (द्र. जीवनिकाय) जीव जीवित था, है और रहेगा, इसलिए वह जीव * जीव और कर्म का संबंध (द्र. कर्म) कहलाता है। अस्ति शब्द प्रदेश और अस्तित्व का वाचक * जीव : द्रव्य का एक भेद (द्र. द्रव्य) है। काय शब्द प्रदेशों अथवा जीवों के समूह का वाचक १. जीव के लक्षण है । जीवास्तिकाय के दो अर्थ हैं-जीवप्रदेशों का समूह, .."जीवो उवओगलक्खणो ॥.. जीवों का समूह । नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। ४. जीव का परिमाण वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ।। जीवस्स उ परिमाणं वित्थरओ जाव लोगमेतं तु । (उ २८।१०,११) ओगाहणा य सुहमा तस्स पदेसा असंखेज्जा ।। जीव का लक्षण है उपयोग। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग-ये। जदा केवली समुग्घायगतो भवति तदा लोग पूरेति जीव के लक्षण हैं। जीवपदेसेहिं, एक्केको जीवपदेसो पिहीभवति, एवं आयाणे परिभोगे जोगुवओगे कसाय लेसा य । ओगाहणे सुहुमं। असमुग्घायगतस्स जीवपदेसा उपरि आणापाण इदिय बंधादयनिज्जरा चेव ।। उपरि भवंति । ते य पदेसा असंखेज्जा, जावतिया लोगाचित्तं चेयण सण्णा विण्णाणं धारणा य बुद्धी य । गासपदेसा तावतिया जीवपदेसा वि एकजीवस्स परिमाणं ईहा मती वितक्का जीवस्स उ लक्खणा एए॥ भणितं। (दनि १३५, अचू पृ ७१) (दनि १२५,१२६) केवलीसमुद्घात के समय जीव के प्रदेश पूरे लोक में आदान, परिभोग, योग, उपयोग, कषाय, लेश्या, व्याप्त हो जाते हैं । एक-एक जीवप्रदेश अविभक्त होने आनापान, इंद्रिय, बंध, उदय, निर्जरा, चित्त, चेतना, पर भी फैलाव की अपेक्षा से पृथक्-पृथक् (एक-एक संज्ञा, विज्ञान, धारणा, बुद्धि, ईहा, मति, वितर्क-ये आकाश प्रदेश पर एक-एक जीवप्रदेश) हो जाता हैजीव के लक्षण हैं। यही सूक्ष्म अवगाहना है। असमुद्घात के समय जीव प्रदेश सघन और एक दूसरे के ऊपर रहते हैं। लोका२. जीव का स्वरूप काश के असंख्येय प्रदेश हैं। उतने ही प्रदेश एक जीव के जीवदव्वस्स अणुओगो चउव्विहो - दव्वतो खेत्ततो हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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