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________________ सामायिक चारित्र २६७ चारित्र चतरिन्द्रिय -स्पर्शन, रसन, घ्राण और चक्षु-इन | * चारित्र के आचार (द. आचार) ___ चार इन्द्रियों वाले जीव । (द्र. त्रस) * चारित्र विनय (द. विनय) चतुविशतिस्तव –चौवीस अर्हतों की उत्कीर्तना। | | * चारित्र धर्म के प्रकार (व. धर्म) (द्र. स्तवस्तुति) | * * चारित्र भावना (5. भावना) चन्द्रप्रभु-आठवें तीर्थंकर। (द्र. तीर्थंकर) * अप्रत्याख्यानकषाय के क्षयोपशम से देश चारित्र चरणसत्तरी-प्रतिदिन किया जाने वाला चारित्रिक | (द्र. श्रावक) * कषाय के उदय से चारित्रघात ___ अनुष्ठान । इसके सत्तर अंग हैं * चारित्रसम्पन्न को ही मन:पर्यवज्ञान वय समणधम्म संजम वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। (द्र. मनःपर्यवज्ञान) नाणाइतियं तव कोहनिग्गहाई चरणमेयं ॥ * चारित्र-अतिशय से जंघाचारण लब्धि (ब्र. लब्धि) (ओभा २) * चारित्रमोह के प्रकार (द्र. कर्म) पांच महाव्रत, दस श्रमण धर्म, सतरह प्रकार का * चारित्र : सामायिक का एक भेद । संयम, दस प्रकार का वैयावृत्त्य, नौ ब्रह्मचर्यगुप्ति, ज्ञान, * चारित्र सामायिक की स्थिति, । दर्शन, चारित्र, बारह प्रकार का तप (अनशन आदि) ग्रहण की अर्हता, काल, दिशा आदि । (द्र. सामायिक) * सामायिक और कालचक्र........."J और क्रोध आदि चार कषायों का निग्रह -इन्हें चरण * चारित्रसम्पन्नता और ध्यान द्र. ध्यान) सत्तरी कहा जाता है। चारित्र-महाव्रत आदि का आचरण । सामायिक १. चारित्र का निर्वचन और लक्षण की साधना। ..एयं चयरित्तकरं, चारित्तं होइ आहियं ।। १. चारित्र का निर्वचन और लक्षण (उ २८१३३) २. चारित्र के प्रकार जो कर्म-संचय को रिक्त करता है, वह चारित्र है। ३. सामायिक चारित्र चरन्ति-गच्छन्त्यनेन मुक्तिमिति चारित्रम् । * तीर्थंकर के सामायिक चारित्र (द्र. तीर्थकर) । (उशावृ प ५५६) ४. छेदोपस्थापनीय चारित्र जिससे मुक्ति की प्राप्ति होती है, वह चारित्र है। ५. परिहारविशुद्धि चारित्र चारित्रं."सदसत्क्रियाप्रवृत्तिनिवृत्तिलक्षणम् । ० परिहार तप का क्रम (उशावृ प ५५६) • आहार विधि चारित्र का लक्षण है-सत् आचरण में प्रवृत्ति और • कालमान असत् आचरण से निवृत्ति । ० तप समाप्ति के बाद का क्रम २. चारित्र के प्रकार ६. सूक्ष्मसम्पराय चारित्र ____चरित्तगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-सामा* सूक्ष्मसम्पराय गुणस्यान (द्र. गुणस्थान) इयचरित्तगुणप्पमाणे, छेदोवट्ठावणियचरित्तगुणप्पमाणे, ७. यथाख्यात चारित्र ८. कषाय-विलय से चारित्र-प्राप्ति परिहारविसुद्धियचरित्तगुणप्पमाणे, सुहुमसंपरायचरित्तगुण९. चारित्रिक स्थिरता के आलम्बन सूत्र प्पमाणे, अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे । (अनु ५५३) १०. चारित्र का मूल्य चारित्र के पांच प्रकार हैं-सामायिक, छेदोपस्थाप११. चारित्र सम्पन्नता के परिणाम नीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात । १२. चारित्र और सम्यक्त्व ३. सामायिक चारित्र १३. चारित्र और नय सावज्जजोगविरइ त्ति"...." (विभा १२६३) १४. चारित्र (शील) के अठारह हजार अंग |'सर्वथा सावद्ययोग की विरति सामायिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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