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________________ काल-विवेक ..२५३ गोचरचर्या विचक्षण मुनि मित-भूमि में ही उचित भूभाग का दूर भिक्षा के लाभ प्रतिलेखन करे । जहां से स्नान-घर और शौचगह दिखाई एवं उग्गमदोसा विजढा पइरिक्कया अणोमाणं । पड़े, उस भूमिभाग का परिवर्जन करे। मोहतिगिच्छा अ कया विरियायारो य अणुचिण्णो ।। सर्वेन्द्रिय समाहित मुनि उदक और मिट्टी लाने के (ओनि २४९) मार्ग तथा बीज और हरियाली को वर्जकर खड़ा रहे। • आधाकर्म आदि दोषों से बचाव । अग्गलं फलिहं दारं, कवाडं वा वि संजए। ० प्रचुर आहार की प्राप्ति । अवलंबिया न चिट्ठज्जा, गोयरग्गगओ मूणी ।। ० लोक में आदर के भाव । (द ५।२।९) ० श्रम के कारण मोहचिकित्सा का लाभ । गोचराग्र के लिए गया हुआ संयमी आगल, परिघ, ० वीर्याचार का पालन । द्वार या किवाड़ का सहारा लेकर खड़ा न रहे। ११. काल-विवेक गोयरग्गपविट्ठो उ, न निसीएज्ज कत्थई । कालेण निक्खमे भिक्ख, कालेण य पडिक्कमे ।... कहं च न पबंधेज्जा, चिद्वित्ताण व संजए॥ (द ५।२।४) (द ५।२।८) भिक्ष समय पर भिक्षा के लिए निकले और समय गोचरान के लिए गया हुआ संयमी कहीं न बैठे और पर लौट आए । अकाल को वर्जकर जो कार्य जिस समय खड़ा रहकर भी कथा का प्रबन्ध न करे । का हो, उसे उसी समय करे। परिवाडीए न चिट्ठज्जा (उ ११३२) अकाले चरसि भिक्खु, कालं न पडिलेहसि । भिक्षु भिक्षा के लिए भिखारी की तरह पंक्ति में अप्पाणं च किलामेसि, सन्निवेसं च गरिहसि ।। खड़ा न रहे। (द ५२५) समणं माहणं वा वि, किविणं वा वणीमगं । भिक्षो ! तुम अकाल में जाते हो, काल की प्रतिउवसंकमंतं भत्तट्ठा, पाणढाए व संजए ।। लेखना नहीं करते, इसलिए तुम अपने आपको भी क्लान्त तं अइक्कमित्तु न पविसे, न चिठे चक्खुगोयरे । (खिन्न) करते हो और सन्निवेश (ग्राम) की भी निन्दा एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिठेज्ज संजए। करते हो। वणीमगस्स वा तस्स, दायगस्सुभयस्स वा । गोचरकाल अप्पत्तियं सिया होज्जा, लहत्तं पवयणस्स वा ।। ""तइयाए भिक्खायरियं"। (द ५२।१०-१२) (उ २६।१२) भक्त या पान के लिए उपसंक्रमण करते हए (घर औत्सर्गिकमेतत्, अन्यथा हि स्थविरकल्पिकानां में जाते हए) श्रमण, ब्राह्मण, कृपण या वनीपक को यथाकालमेव भक्तादिगवेषणम् । (उशाव प ५४३) लांघकर संयमी मुनि गृहस्थ के घर में प्रवेश न करे। मुनि तीसरे प्रहर में भिक्षाचरी करे। यह अभिग्रहगृहस्वामी और श्रमण आदि की आंखों के सामने धारी मुनियों की भिक्षा-विधि है। स्थविरकल्पी मुनि खड़ा भी न रहे। किन्तु एकान्त में जाकर खड़ा हो यथासमय भिक्षा के लिए जाए। जाए। सेज्जा निसीहियाए, समावन्नो व गोयरे । भिक्षाचरों को लांघकर घर में प्रवेश करने पर अयावयट्ठा भोच्चा णं, जइ तेणं न संथरे ।। वनीपक या गहस्वामी को अथवा दोनों को अप्रीति हो । तओ कारणम्प्पन्ने, भत्तपाणं गवेसए ।" सकती है अथवा उससे प्रवचन की लघुता होती है। (द ५२।२,३) परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणी। उपाश्रय या स्वाध्याय-भूमि में अथवा गोचर (भिक्षा) (उ २६६३५) के लिए गया हुआ मुनि मठ आदि में अपर्याप्त खाकर दूसरे ग्राम में भिक्षा के लिए जाना आवश्यक हो तो यदि न रह सके तो कारण उत्पन्न होने पर भक्त-पान की अधिक से अधिक अर्ध योजन तक जाए। गवेषणा करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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