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________________ वचनगुप्ति गुप्ति-असत् प्रवृत्ति से निवर्तन । योगनिग्रह | १. गुप्ति की परिभाषा २. गुप्ति के प्रकार ३. मनोगुप्ति ४. वचनगुप्ति ५. कायगप्ति * गुप्ति समिति भी है गुप्त ध्यान है १. गुप्ति की परिभाषा गुत्ती नियत्तणे वृत्ता, असुत्थेसु सव्वसो ॥ अशुभ विषयों से निवृत्त होना गुप्ति है । गोपनं गुप्तिः - सम्यग्योग निग्रहः । ( उशावृ प ५१४) सम्यक् रूप से मन, वचन और काययोग का निग्रह करना गुप्ति है । प्रवचनविधिना मार्गव्यवस्थापन मुन्मार्ग गमननिवारणं गुप्तिः । ( उशावृप ५१४ ) गुप्त का अर्थ है - आगमोक्त विधि से प्रवृत्ति करना तथा उन्मार्ग से निवृत्त होना । गुप्ति के तीन प्रकार मनोगुप्ति -असत् मन से निवर्तन । वचनगुप्ति-असत् वाणी से निवर्तन । कायगुप्ति-असत् प्रवृत्ति से निवर्तन | ३. मनोगुप्ति ( द्र. समिति ) (द्र ध्यान ) २. गुप्ति के प्रकार तिहिं गुत्तीहि - मणगुत्तीए वइगुत्तीए कायगुत्तीए । ( आव ४1८) मनोगुप्ति के चार प्रकार १. सत्या २. मृषा ३. सत्यामृषा ४. असत्यामृषा । ( उ २४/२६) सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा, मणगुत्ती चउब्विहा || Jain Education International - ( उ २४/२० ) २४७ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई ॥ ( उ २४ ।२१) संरम्भ: - सङ्कल्पः स च मानसः । तथाऽहं ध्यास्यामि यथाsसी मरिष्यतीत्येवंविधः । समारम्भः परपीडाकरोच्चाटनादिनिबन्धनं ध्यानम् । आरम्भ:- अत्यन्तक्लेशतः परप्राणापहारक्षममशुभध्यानमेव । ( उशावृप ५१८, ५१९) संरम्भ (अशुभ संकल्प ), समारम्भ ( परपीड़ाकारी ध्यान) और आरम्भ ( परप्राणापहारी ध्यान) में प्रवृत्त चित्त का निवर्तन करना मनोगुप्ति है । मनोगुप्ति के परिणाम मत्तया णं जीवे एगग्गं जणयइ । एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ । (उ२९।५४) मनोगुप्तता ( कुशल मन के प्रयोग) से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता | एकाग्र चित्त वाला जीव अशुभ संकल्पों से मन की रक्षा करने वाला और संयम की आराधना करने वाला होता है । ४. वचनगुप्ति गुप्ति सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा, वइगुत्ती चउव्विहा || वचनगुप्ति के चार प्रकार हैं १. सत्या २. मृषा ३ सत्यामृषा ४. असत्यामृषा । For Private & Personal Use Only ( उ२४।२२) संरंभसमारंभे, आरंभे य तहेव य । वयं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई ॥ ( उ २४।२३) वाचिकः संरम्भः - -परव्यापादनक्षमक्षुद्र विद्यादिपरावर्त्तनासङ्कल्पसूचको ध्वनिरेवोपचारात्सङ्कल्पशब्दवाच्यः सन् । समारम्भ:- परपरितापकरमन्त्रादिपरावर्त्तनम् । आरम्भ: - तथाविधसंक्लेशतः प्राणिनां प्राणव्यपरोपणक्षममन्त्रादिजपन मिति । ( उशावृ प ५१९) संरंभ - प्राणव्यपरोपण में समर्थ क्षुद्र विद्या आदि के परावर्तन की संकल्पसूचक ध्वनि वाचिक संरंभ है । समारंभ - परपीड़ाकारक मन्त्र आदि का परावर्त्तन समारम्भ है । www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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