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________________ उपशम श्रेणी : मोह-उपशम की प्रक्रिया २४३ गुणस्थान अथवा इसका अर्थ है जिसमें सूक्ष्म राग की स्त्रीवेद विद्यमानता होती है, वह सूक्ष्म सम्पराय है। वह असंख्येय हास्यषट्क समय वाले अन्तर्मुहूर्त की स्थितिवाला, विशुध्यमान पुरुषवेद परिणाम वाला अथवा प्रतिपाति परिणाम वाला होता अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान क्रोध-युगपत संज्वलन क्रोध निवृत्ति बादर, अनिवृत्तिबादर और सूक्ष्मसम्पराय अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान मान-युगपत दसणमोहक्खवणे नियट्टि अनियट्रिबायरो परओ। संज्वलन मान जाव उ सेसो संजलणलोभसंखेज्जभागो त्ति । अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान माया-युगपत् तदसंखेज्जइभागं समए समए खवेइ एक्केक्कं । संज्वलन माया तत्थ य सुहुम सरागो लोभाणू जावमेक्को वि॥ अप्रत्याख्यान.प्रत्याख्यान लोभ- युगपत् (विभा १३३०,१३३१) संज्वलन लोभ दर्शन मोह के क्षय होने पर निवृत्ति बादर गुणस्थान विशेष-श्रेणी प्रारम्भ करने वाला यदि नपंसक हो तो पहले स्त्रीवेद फिर पुरुष वेद और अन्त में नपुंसक प्राप्त होता है। उसके बाद अप्रत्याख्यान कषाय से लेकर वेद का उपशमन करता है। यदि श्रेणी प्रारम्भ करने जब तक संज्वलन लोभ के संख्येय भाग को क्षय करता है, तब तक अनिवृत्ति बादर गुणस्थान होता है। वाली स्त्री हो तो पहले नपुंसक वेद फिर पुरुषवेद और अन्त में स्त्रीवेद का उपशमन करती है। उस संख्येय भाग के चरम खण्ड के असंख्येय खण्ड करता है। उन असंख्येय खण्डों को एक-एक समय में उपशम श्रेणी के अधिकारी क्षीण करता है। जब तक लोभ का एक अंश रहता है, उवसामगसेढीए पट्टवओ अप्पमत्तविरओ उ। तब तक सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान होता है। पज्जवसाणे सो वा होइ पमत्तो अविर ओ वा ।। १२. श्रेणि-आरोहण कब ? अन्ने भणंति अविरय-देस-पमत्ता-उपमत्तविरयाणं । सम्मत्तम्मि उ लद्धे पलियपहत्तेण सावओ होज्जा । अन्नयरो पडिवज्जइ सणसमणम्मि उ नियत्री । चरणो-वसम-खयाणं सागर संखंतरा होति ।। (विभा १२८५,१२८६) (विभा १२२२) उपशम श्रेणि में आरोहण करते समय जीव अप्रमत्त सम्यक्त्व के प्राप्तिकाल में मोहकर्म की जितनी संयत होता है। उपशम श्रेणि से गिरने पर वह पुनः स्थिति अवशिष्ट रहती है, उस स्थिति में से पल्योपम प्रमत्त संयत अथवा अविरत हो जाता है। पृथक्त्व (दो से नौ पल्योपम) स्थितिखंड के क्षय होने पर कुछ आचार्य ऐसा मानते हैं कि अविरत, देशविरत, जीव देशविरति को प्राप्त करता है। संख्यात सागरोपम प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत- इनमें से कोई भी जीव के क्षीण होने पर सर्वविरति प्राप्त करता है। उसमें से उपशम श्रेणि पर आरोहण कर सकता है। संख्यात सागरोपम क्षीण होने पर उपशम श्रेणी, कार्मग्रन्थिकाभिप्रायेण तु प्रतिपतितोऽसौ मिथ्याउसमें से संख्यात सागरोपम क्षीण होने पर क्षपक श्रेणी दृष्टिगुणस्थानकमपि यावद् गच्छति । प्राप्त करता है। (विभामवृ पृ ४८२) १३. उपशम श्रेणी : मोह-उपशम की प्रक्रिया कर्म ग्रन्थ की मान्यता है- उपशम श्रेणि से गिरने अणदंसनपुंसित्थी वेयछक्कं च पुरुसवेयं च । पर वह मिथ्यादृष्टि गुणस्थान तक भी चला जाता है। दो दो एगंतरिए सरिसे सरिसं उवसमेइ ।। उपशम श्रेणी और गति (आवनि ११६) बद्धाऊ पडिवन्नो सेढिगओ वा पसंतमोहो वा । मोहकर्म की प्रकृतियों के उपशम का क्रम जइ कुणइ कोइ कालं वच्चइ तोऽणुत्तरसुरेसु ॥ अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क- युगपत् अनिबद्धाऊ होउं पसंतमोहो मुहत्तमेत्तद्धं । दर्शनत्रिक- युगपत् उइयकसायो नियमा नियत्तए सेढिपडिलोमं ।। नपुंसकवेद (विभा १३०४,१३०५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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