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________________ केवली समुद्घात -२३१ केवली समुद्घात छद्मस्थ मुनि दीर्घ संयमी जीवन की इच्छा कर जह उल्ला साडीया आसु सुक्कइ विरल्लिया संती । सकता है, इसलिए कि वर्तमान जीवन में मुक्ति हो जाये। तह कम्मलहुयसमए वच्चंति जिणा समुग्घायं ।। केवली दीर्घायु जीवन की इच्छा नहीं करते । वे कृतकृत्य (आवनि ९५४, ९५६) हो चुके हैं, इसलिए उनके जीवन का प्रयोजन शेष नहीं वेदनीय कर्म की बहलता और आयूष्यकर्म की अल्पता को जानकर केवली समुद्घात करते हैं और रहा। अशेष कर्मों का क्षय कर देते हैं। १०. केवली छद्मस्थ को वन्दना करते हैं जिस प्रकार आर्द्र वस्त्र फैलाने पर शीघ्र ही सुख ववहारोऽविह बलवं जं छउमत्थंपि वंदई अरहा। जाता है, उसी प्रकार के वली-समुद्घात से कर्मों की जा होइ अणाभिण्णो जाणतो धम्मयं एयं ॥ (आवभा १२३) कम्मलहुयाए समओ भिन्नमुहुत्तावसेसओ कालो। व्यवहार भी बलवान होता है, क्योंकि अर्हत् (केवली) अन्ने जहन्नमेयं छम्मासमुक्कोस मिच्छति ।। छदमस्थ को भी उस समय तक वन्दना करते हैं, जब तक (विभा ३०४८) वे (अर्हत) केवली के रूप में अज्ञात रहते हैं । यह उनका केवली के जब अन्तर्महत आयुष्य शेष रहता है तब आचार है। वेदनीय आदि कर्मों की स्थिति और आयुष्यकर्म की जहाहियग्गी जलणं नमसे, नाणाहुईमंतपयाभिसित्तं । स्थिति को समान करने के लिए केवली समदघात का एवायरियं उचिट्ठएज्जा, अणंतनाणोवगओ वि संतो॥ आ आरम्भ करते हैं। कुछ आचार्यों की मान्यता है-- कर (द ९।१।११) केवली के जब जघन्य आयुष्य अन्तर्महर्त का और उत्कृष्ट जैसे आहिताग्नि ब्राह्मण विविध आहुति और मंत्र १. आयुष्य' छह मास का रहता है, तब केवली समुदघात पदों से अभिषिक्त अग्नि को नमस्कार करता है, वैसे ही करते हैं। शिष्य अनन्तज्ञानसम्पन्न होते हए भी आचार्य की विनय- अन्तर्महर्तमादिकृत्वोत्कर्षेण आमासेभ्य: षड्भ्यः पूर्वक सेवा करे। आयुषोऽवशिष्टेभ्यः अभ्यन्तर आविर्भतकेवलज्ञानपर्यायाः केवली समुद्घात-केवली के वेदनीय, नाम और ते नियमात्समुद्घातं कुर्वन्ति । ये तु षण्मासेभ्य उपरिष्टा गोत्र कर्म के आश्रित होने दाविर्भूतकेवलज्ञानाः शेषास्ते समुद्घातकाद् बाह्याः, ते वाला समुद्घात। समुद्घातं न कुर्वन्तीत्यर्थः........षाण्मासिकावशिष्टे समो आयुषो कर्मणां उद्घात: समुद्घात: सव्वे आयुषि आविर्भूतकेवल-ज्ञानपर्यायेभ्यः सकाशात् षड्भ्यो जीवपदेसे विसारेति, एवं सिग्धं कम्म खविज्जति........ मासेभ्य: ये उपरि समयोत्तरवृद्ध्याऽवशिष्टे आयुषि शेषे पढममेव अंतोमुहत्तियमुदीरणावलिकायां कम्मपक्खेवाइ आविर्भूतज्ञानाः केवलिनः ते शेषाः समुद्घातं प्रति भाज्या:.......अथवा येषां बहु संवेद्यमस्ति आयुच्छाल्पमवरूवं परिस्पन्दनं गच्छति। (आवचू ११ ५७९) तिष्ठते ते नियमात्समुद्घातं कुर्वति नेतर इति ।। जिस प्रयत्न में प्रबलता से कर्मों की स्थिति और (आवचू १ पृ ५७०) अनुभाग का समीचीन उद्धात होता है, वह केवली ____ अंतर्मुहूर्त से लेकर अधिकतम छह माह आयु शेष समुद्घात है। उनमें उदीरणावलिका में प्रविष्ट कर्म रहने पर जिन्हें केवलज्ञान प्राप्त होता है, वे निश्चित पुदगलों का प्रक्षेपण होता है -वेदनीय कर्मदलिकों को रूप से समुद्घात करते हैं। कैवल्यप्राप्ति के समय आयुष्य कर्मदलिकों के समान करने के लिए सब आत्म जिनकी आयु छह माह से अधिक होती है, वे समुद्घात प्रदेशों का लोकाकाश में निस्सरण होता है और कर्मों नहीं करते। का शीघ्रता से क्षय होता है। इसका कालमान है कैवल्यप्राप्ति के समय जिनकी आयु छह माह से अन्तर्मुहूर्त (आठ समय)। अधिक है, उनकी जब छह माह आयु शेष रहती है, तब केवली समुद्घात कब और क्यों ? उनमें से कुछ समुद्घात करते हैं, कुछ नहीं करते । नाऊण वेयणिज्ज अइबह आउअंच थोवागं । अथवा जिनके वेदनीय आदि कर्म अधिक तथा आयुष्य गंतूण समुग्घायं खति कम्मं निरवसेसं ॥ कर्म अल्प होता है, वे केवली नियमतः समुद्घात करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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