SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केवलज्ञान ८. आवरणक्षय और नय आवरणक्खयसमए नेच्छइअनयस्स केवलुप्पत्ती । तत्तोऽणंतर समए ववहारो केवलं भणइ ॥ ( विभा १३३४ ) जिस क्षण केवलज्ञानावरण का क्षय होता है, उसी क्षण केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है - यह निश्चयनय का अभिमत है । आवरणक्षय के अनन्तर क्षण में कैवल्य उत्पन्न होता है - यह व्यवहारनय का अभिमत है । नाणं न खिज्जमा, खीणे जुत्तं जओ तदावरणे । न य किरियानिद्वाणं, कालेगत्तं जओ जुत्तं ॥ ( विभा १३३५) व्यवहारनय के अनुसार आवरण की क्षीयमाण अवस्था में ज्ञान नहीं होता, आवरण के क्षय होने पर ही वह होता है, क्योंकि क्रियाकाल और निष्ठाकाल में एकत्व उचित नहीं है । farararafम्म खओ जइ नत्थि तओ न होज्ज पच्छावि । जsarfaरियस खओ पढमम्मि वि कीस किरियाए । (विभा १३३७ ) यदि क्रियाकाल में क्षय नहीं होता है तो वह बाद में भी नहीं होगा । यदि क्रिया के बिना ही क्षय होता है, तब पहले क्षण की क्रिया की क्या अपेक्षा है ? जं निज्जरिज्जमाणं निज्जिण्णं ति भणियं सुए जं च । नोकम्मं निज्जरइ नावरणं तेण तस्समए ॥ ( विभा १३३८ ) आगम में निर्जीर्यमाण को निर्जीर्ण कहा गया है । कर्म का वेदन होता है । नोकर्म ( अकर्म ) की निर्जरा होती है । इसलिए निर्जीर्यमाण/क्षीयमाण काल में कर्म का आवरण क्षीण हो जाता है। क्षीयमाण और क्षीण में कालभेद नहीं है । ६. केवलज्ञान - केवलदर्शन उभयावरणाईओ केवलवरनाण- दंसणसहावो । जाणइ पासइ य जिणो नेयं सव्वं सयाकालं ॥ ( विभा १३४१ ) केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण कर्म के क्षीण होने पर केवली समस्त ज्ञेय को केवलज्ञान से सदा जानता है और केवलदर्शन से सदा देखता है । Jain Education International २२८ केवली -- केवलज्ञान से संपन्न । १. केवली की परिभाषा ० प्रकार २. केवली के दो उपयोग युगपत् नहीं ३. केवली का बोलना वचनयोग * केवली के मनोयोग * केवली के द्रव्यमान ४. केवली नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी ५. केवली के ईर्यापथिक बंध ६. केवली : कायनिरोध ध्यान * केवली : शुक्ल ध्यान ७. केवली : योगनिरोध की प्रक्रिया केवली ( द्र. गुणस्थान ) ( द्र. आत्मा ) (द्र ध्यान ) ८. केवलो : शैलेशी अवस्था * शैलेशी अवस्था : कर्मक्षय का क्रम (द्र गुणस्थान ) ९. केवली जीविताशंसा से मुक्त * केवली मरण (द्र. मरण) १०. केवली छद्मस्थ को वन्दना करते हैं। १. केवली परिभाषा कसिणं केवलकप्पं लोगं जाणंति तह य पासंति । केवलचरित्तनाणी तम्हा ते केवली हुति ॥ ( आवर्धन १०७९) जो पंचास्तिकायात्मक लोक को सम्पूर्ण रूप से जानते-देखते हैं, वे केवली । यहां केवल शब्द के दो अर्थ विवक्षित हैं - एक और सम्पूर्ण । जिनके एक ज्ञान (केवलज्ञान) और एक चारित्र ( यथाख्यात) अथवा सम्पूर्ण ज्ञान और सम्पूर्ण चारित्र होता है, वे केवली कहलाते हैं । प्रकार For Private & Personal Use Only केवली त्रिविधः, तद्यथा - श्रुतकेवली, क्षायिकसम्यक्त्व केवली, क्षायिकज्ञानकेवली । यदिवा चतुर्विधः, तद्यथा - श्रुतकेवली, अवधिकेवली, मनःपर्यायज्ञानकेवली, केवलज्ञानकेवली | ( आवमवृप १०४ ) केवली के तीन प्रकार हैं - १. श्रुतकेवली २. क्षायिक सम्यक्त्व केवली ३. क्षायिकज्ञान केवली । अथवा केवली के चार प्रकार हैं - १. श्रुतकेवली २. अवधिकेवली ३. मनःपर्यायज्ञानकेवली ४. केवलज्ञानकेवली । www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy