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________________ काव्यरस २२० रस के प्रकार ८. काल-प्रतिलेखना की निष्पत्ति रौद्र रस कापडिलेहणयाए णं नाणावरणिज्ज कम्मं खवेइ। व्रीडा रस (उ २९।१६) बीभत्स रस काल-प्रतिलेखना से जीव ज्ञानावरणीय कर्म को हास्य रस क्षीण करता है। करुण रस .."अकालं च विवज्जेत्ता, काले कालं समायरे ॥ । प्रशान्त रस __(द ५।२।४) - अकालं च विवज्जेत्ता णाम जहा पडिलेहणवेलाए १. काव्यरस की परिभाषा सज्झायस्स अकालो, सज्झायवेलाए पडिलेहणाए अकालो, कवेरभिप्रायः काव्यं, रस्यन्ते--अन्तरात्मनाऽनुभूयन्त एवमादि । भिक्खावेलाए भिक्खं समायरे, पडिलेहणवेलाए इति रसाः, तत्तत्सहकारिकारणसन्निधानोदभताश्चेतोपडिलेहणं समायरे, एवमादि । भणियं च विकारविशेषाः । 'जोगो जोगो जिणसासणंमि दुक्खक्खया पउंजंतो। बाह्यार्थालम्बनो यस्तु विकारो मानसो भवेत् । अण्णोऽण्णमणाहतो असवत्तो होइ कायव्वो ॥' स भावः कथ्यते सदभिस्तस्योत्कर्षो रसः स्मृतः ।। (दजिचू पृ १९४, १९५) (अनुमवृ प १२४) प्रतिलेखन का काल स्वाध्याय के लिए अकाल है। कवि के कर्म, भाव या अभिप्राय का नाम काव्य स्वाध्याय का काल प्रतिलेखन के लिए अकाल है। काल है। जो अन्तरात्मा के द्वारा अनुभूत होते हैं वे रस कहमर्यादा को जानने वाला भिक्ष अकाल-क्रिया न करे। लाते हैं। वे सहकारी कारणों की सन्निधि से उद्भूत मुनि को भिक्षा-काल में भिक्षा, प्रतिलेखन-काल में चैतसिक विकार हैं। प्रतिलेखन, स्वाध्याय-काल में स्वाध्याय और जिस काल विकार और रस में कुछ अन्तर भी है। बाहरी में जो क्रिया करनी हो, वह उसी काल में करनी चाहिए। वस्तु के आलम्बन से जो मानसिक विकार होता है वह जिनशासन में योग्य योग-प्रवृत्ति का विधान है भाव कहलाता है । उस भाव का प्रकर्ष रस है। जिस समय जो योग्य हो, दुःखक्षय के लिए उसका मिउमहररिभियसुभयरणीतिणिद्दोसभूसणाणुगतो । प्रयोग करे, जिससे किसी दूसरे को बाधा न पहुंचे, कोई सुहदुहकम्मसमा इव कव्वस्स रसा भवंति तेणं । शत्रु न बने। (अनुचू पृ ४७) कालिकसूत्र-दिन और रात के पहले और चौथे रस की भांति रसनीय चित्तवृत्तियां भी रस कहप्रहर में पढ़े जाने वाले आगम। ___ लाती हैं। जैसे सुख वेदनीय और दुःख वेदनीय अथवा (द्र. अगबाह्य) साता-असाता वेदनीय कर्म के रस होते हैं वैसे ही काव्य कालिक्युपदेश-वह ज्ञान जिसमें ईहा, अपोह, के रस होते हैं। मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता और २. रस के प्रकार विमर्श होता है । संज्ञो श्रुत का एक नव कव्वरसा पण्णत्ता, तं जहाभेद। (द्र. श्रुतज्ञान) वीरो सिंगारो अब्भओ य रोहो य होइ बोधव्यो । काव्यरस-स्थायीभाव की अभिव्यक्ति से होने वेलणओ बीभच्छो, हासो कलुणो पसंतो य । वाली अनुभूति । (अनु ३०९) काव्यरस के नौ प्रकार हैं -- १. काव्यरस की परिभाषा १. वीर ६. बीभत्स | २. रस के प्रकार २. शृंगार ७. हास्य वीर रस ३. अद्भुत ८. करुण शृंगार रस ४. रौद्र ९. प्रशान्त। अद्भुत रस ५. व्रीडा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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