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________________ काल विज्ञान पौरुषी का प्रमाणकाल """॥ पोरिसी पमाणकालो निच्छ्यववहारिओ जिणक्खाओ । निच्छयओ करणजुओ (ओनि २८१ ) पौरुषी का प्रमाणकाल दो प्रकार का है - नैश्चयिक और व्यावहारिक । नैश्चयिक पौरुषी का प्रमाणकाल करण अर्थात् गणित के द्वारा निकाला जाता है । अणादिगणे अट्ठगुणेगट्टिभाइए लद्धं । उत्तरदाहिणमाई पोरिसि पयसुज्झपक्खेवा ॥ (ओनि २८२ ) अयनातीतदिन गणः उत्कृष्टतस्त्यशीतं शतम् । तच्चाष्टगुणं जातानि चतुर्दशशतानि चतुःषष्ट्यधिकानि तत्र चैकषष्ट्या भागे हृते लब्धानि चतुर्विंशतिरंगुला नि तत्रापि द्वादशभिरंगुलैः पदमिति जाते द्वे पदे । तत्र हि उत्तरायणप्रथमदिने चत्वारि पदान्यासन् ततस्तन्मध्यात्पदद्वयोत्सारणे जाते कर्कट संक्रान्त्यदिने द्वे पदे । दक्षिणायनाद्यदिने तु द्वे पदे अभूतां तन्मध्ये च द्वयोः क्षिप्तयोजतानि मकरसंक्रान्तौ चत्वारि पदानि । इदं चोत्कृष्टजघन्यदिनयोः पौरुषीमानम् । ( उशावृ प ५३७ ) अयन के अतीत दिनों के समूह को ८ से गुणा करके ६१ का भाग देने से जो लब्ध आता है, उसको उत्तरायण के और दक्षिणायन के आदि में क्रमशः शुद्धि (घटाने) और प्रक्षेप (योग) करने से पौरुषी का प्रमाण आता है । २१८ अयन दो प्रकार का होता है उत्तरायण और दक्षिणायन । सूर्य दक्षिणायन के अन्तिम दिन से उत्तर की ओर गति करता है उसे उत्तरायण कहते हैं । उत्तरायण के अन्तिम दिन से सूर्य वापस दक्षिण की ओर गति करता है उसे दक्षिणायन कहते हैं । एक अयन में उत्कृष्ट १८३ दिन होते हैं । एक अयन में पौरुषी का परिमाण दो पाद घटता या बढ़ता है। यह कथन १८३ दिनों की अपेक्षा से कहा गया है । उत्तरायण के प्रथम दिन में पौरुषी का परिमाण चार पाद होता है । वह क्रमशः घटता - घटता कर्क संक्रान्ति के दिन तक दो पाद का हो जाता है । दक्षिणायन के प्रथम दिन पौरुषी का परिमाण दो पाद होता है । क्रमशः बढ़ते बढ़ते मकरसंक्रांति तक दो पाद बढ़ जाता है, तब उसका परिमाण २+२=४ पाद हो जाता है। दो पाद का परिमाण पौरुषी का जघन्य परिमाण है और चार पाद का परिमाण पौरुषी का उत्कृष्ट परिमाण है । बीच के दिनों Jain Education International पादोनपौरुषी - छायाप्रमाण का परिमाण निकालने के लिए गणित इस प्रकार है१८३ दिनों में दो पाद अर्थात् २४ अंगुल १ दिन में पौरुषी अयन के प्रतिदिन में अंगुल घटती या बढ़ती है । आसाढे मासे दुपया पोसे मासे चित्तासोसु मासेसु तिपया हवइ ( उ २६ १३) आषाढ मास में दो पाद प्रमाण, पौष मास में चार पाद प्रमाण, चैत्र तथा आश्विन मास में तीन पाद प्रमाण पौरुषी होती है । पाद - अंगुल २-० समय आषाढ़ पूर्णिमा २-४ श्रावण पूर्णिमा भाद्रपद पूर्णिमा २८ आश्विन पूर्णिमा ३-० कार्तिक पूर्णिमा ३-४ मृगसर पूर्णिमा ३-८ चउप्पया । पोरिसी ॥ समय पौष पूर्णिमा माघ पूर्णिमा फाल्गुन पूर्णिमा चैत्र पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा ज्येष्ठ पूर्णिमा अंगुलं सत्तरत्तेणं पक्खेण य दुअंगुलं । वड्ढr हायए वावी मासेणं चउरंगुलं ॥ For Private & Personal Use Only - अंगुल 8-0 ३-८ ३-४ ३-० २-८ २-४ (उ२६।१४) पौरुषी के कालमान में सात दिन रात में एक अंगुल पक्ष में दो अंगुल, एक मास में चार अंगुल वृद्धि और हानि होती है। श्रावण मास से पौष मास तक वृद्धि और माघ से आषाढ़ तक हानि होती है । आसाढ बहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवइसाहेसु य, नायव्वा ओमरत्ताओ ॥ ( उ २६ । १५) आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख – इनके कृष्ण पक्ष में एक-एक अहोरात्र ( तिथि ) क्षय होता है । (साधारतया एक मास में ३० अहोरात्र और एक पक्ष में १५ अहोरात्र होते हैं । किन्तु आषाढ़ आदि उपर्युक्त छह मासों का कृष्ण पक्ष १४ अहोरात्र का ही होता है ।) पादोनपौरुषी- छायाप्रमाण जेट्ठामूले आसाढसावणे छह अंगुलेहि पडिलेहा । अहं अतिमि अतइए दस अट्ठहिं चउत्थे ॥ (ओनि २८६ ) www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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