SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संपादकीय योगक्षेम वर्ष सम्पन्न हुआ । सन् १९९० में आगम कार्य के अन्तर्गत सभी आगमों के विषयकोश की योजना बनाई गई । पूज्य गुरुदेव तथा आचार्यप्रवर ने डॉ० सत्यरंजन बनर्जी के समक्ष इस योजना की चर्चा की। उन्होंने इस उपक्रम की सराहना करते हुए कहा कि इसकी क्रियान्विति के लिए अनेक व्यक्तियों की अपेक्षा है। डॉ. बनर्जी तथा मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी ने कोश का प्रारूप बनाया-प्रत्येक मूल विषय का प्राकृत शब्दरूप, संस्कृत रूपांतरण, रोमन स्क्रिप्ट में उसका अवतरण, हिन्दी और अंग्रेजी में अर्थ, विषय से संबद्ध ससंदर्भ मूलपाठ का उद्धरण और उसका हिन्दी अनुवाद । पूज्य गुरुदेव एवं आचार्यप्रवर ने इस कार्य के लिए हमें नियोजित किया। कार्य प्रारम्भ हुआ। लगभग दो वर्ष तक यह कार्य चला । अनेक उतार-चढ़ाव आये। सम्यग् अवगति के अभाव में, भटकाव की-सी स्थिति में गति होती रही। डॉ० बनर्जी का परामर्श रहा कि सब ग्रन्थों को एक साथ न लेकर उन्हें खंडों में विभक्त कर दिया जाए तो कार्य भी होता रहे और उसकी फलश्रुति भी सामने आती रहे। एक दिन संगोठी हई और पूज्य गुरुदेव तथा आचार्यप्रवर ने निर्णायक स्वर में यह निर्देश दिया कि समस्त आगमों के विषयकोश के अन्तर्गत प्रारम्भ में तुम पांच आगमों (आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार) का विषयकोश तैयार करो। इससे दिशा स्पष्ट हो जाएगी और अन्यान्य आगमों के विषय-चयन में सुविधा होगी तथा यह कार्य समुचित काल में सम्पन्न भी हो जाएगा। सन् १९९२ में हमने यथानिर्देश पुनः कार्य प्रारम्भ किया। एक दिन हम आचार्यप्रवर की सन्निधि में बैठी थीं। आचार्यप्रवर ने कार्य की अवगति ली। हमने निवेदन किया सम्यक दिशादर्शन के अभाव में हमें इस कार्य से संतोष नहीं है। तत्काल आचार्यप्रवर ने परम अनुग्रहपूर्वक सप्ताह में दो दिन इस कार्य के लिए निर्धारित किये। उस कालांश में मूल पाठ, अनुवाद, विषय और उपविषय से संबंधित समस्यायें सुलझाई जातीं । आचार्यप्रवर की सन्निधि में हमारी दृष्टि भी स्पष्ट होती चली गई। सन् १९९४, सुजानगढ़ महोत्सव के बाद पूज्य गुरुदेव और आचार्यप्रवर ने दिल्ली यात्रा के लिए प्रस्थान किया। मुनिश्री दुलहराजजी का लाडनं आना हआ। वे आचारांग भाष्य के कार्य में संलग्न थे। पूज्य गुरुदेव और आचार्यप्रवर ने हमें उनके दिशा-निर्देशन में कार्य करने की अनुज्ञा प्रदान की। हम उनकी कार्य शैली से पूर्व परिचित थीं । देशी शब्दकोश, निरुक्त कोश और एकार्थक कोश उनके निर्देशन में ही सम्पादित किए गए थे। हमने पूज्य गुरुदेव एवं आचार्यप्रवर द्वारा निर्दिष्ट कोश कार्य की बात उन्हें कही। उन्होंने कार्य प्रणाली की अवगति ली और सहयोग की स्वीकृति दी। कार्य तो चल ही रहा था, अब उसमें गति आ गई। विषय का निर्धारण कर हम निर्धारित पांच आगमों तथा उनके व्याख्या ग्रन्थों का अनुशीलन करतीं और जहां जैसी सामग्री मिलती, उसकी उपयुक्तता के आधार पर उसका संग्रहण हो जाता। एक ही विषय पर अनेक ग्रन्थों में समान या असमान सामग्री मिलती, तो हम अपनी मति से ग्राह्य-अग्राह्य का निर्णय कर, ग्राह्य का मूल पाठ (प्राकृत या संस्कृत) संग्रहीत कर, उसका उपबिंदुओं के आधार पर विभाजन और हिन्दी में अनुवाद कर यथास्थान योजित कर लेती। यह कार्य दुरूह था। एक ही विषय की जानकारी के लिए अनेक व्याख्याग्रंथ पढ़ने होते और वहां उस विषय के जो नए तथ्य प्राप्त होते, उन्हे संकलित कर लिया जाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy