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________________ कायोत्सर्ग २०४ कायोत्सर्ग के प्रकार काय के एकार्थक---काय, शरीर, देह, बोन्दी, चय, तिर्यञ्च । उनका अभिभव करने के लिए कायोत्सर्ग नहीं उपचय, संघात, उच्छ्रय, समुच्छ्य, किया जाता । भय को मिटाने के लिए कायोत्सर्ग करने कलेवर, भस्त्रा, तनु, पाणु । का निषेध नहीं है। उत्सर्ग के एकार्थक-उत्सर्ग, व्युत्सर्ग, उज्झना, काउस्सग्गं मोक्खपहदेसियं जाणिऊण तो धीरा। अवकिरण, छर्दन, विवेक, वर्जन, दिवसाइयारजाणणट्टयाइ ठायंति उस्सग्गं ।। त्याग, उन्मोचना, परिशातना, (आवनि १४९७) शातना। कायोत्सर्ग मोक्षमार्ग के रूप में उपदिष्ट है-ऐसा २. कायोत्सर्ग के प्रयोजन जानकर धतिमान मुनि देवसिक आदि अतिचारों की पावुग्घाई कीरइ उस्सग्गो मंगलंति उद्देसो । स्मति करने के लिए चेष्टा कायोत्सर्ग करते हैं। अणुवहियमंगलाणं मा हुज्ज कहिंचि णे विग्धं ॥ अमंगल निवारण (आवान १५३७) कज्जणिमित्तं गच्छंतो अवक्खलितो अट्ट उस्सासे कायोत्सर्ग मंगल है। पाप (अनिष्ट या अमंगल) काउस्सग्गो कातव्वो, ताहे गंमति, जदि बितियपि तो का निराकरण करने के लिए यह किया जाता है। सोलस उस्सासा। ततियं जदि अवसउणो तो अच्छति मंगल का अनुष्ठान न करने पर हमारे कार्य में कहीं। अण्णं सोभणं सउणं पडिच्छंतो, सुतक्खंधपरियट्टणे पणुविघ्न न आ जाए, इस दृष्टि से कार्य के प्रारम्भ में वीसं उस्सासा। (आव २ पृ. २६६,२६७) मंगल का अनुष्ठान (कायोत्सर्ग) करणीय है। किसी कार्य के निमित्त स्थान से बाहर जाते समय अन्नं इमं सरीरं अन्नो जीवृत्ति एव कयबुद्धी। दुक्खपरिकिलेसकरं छिद ममत्तं सरीराओ॥ अपशकुन हो जाये तो आठ उच्छ्वास का कायोत्सर्ग कर फिर जाए। दूसरी बार फिर अपशकुन हो जाये तो सोलह (आवनि १५५२) उच्छ्वास का कायोत्सर्ग करे । तीसरी बार अपशकून शरीर भिन्न है और आत्मा भिन्न है-इस प्रकार होने पर ठहर जाये, शुभ शकून की प्रतीक्षा करे। की बुद्धि का निर्माण कर तू दुःखद और क्लेशकारी शरीर के ममत्व का छेदन कर । ३. कायोत्सर्ग के प्रकार जावइया किर दुक्खा संसारे जे मए समणुभूया। काउस्सग्गो दव्वतो भावओ य भवति । दव्वतो इत्तो दुव्विसहतरा नरएसु अणोवमा दुक्खा ॥ कायचेट्ठानिरोहो, भावतो काउस्सग्गो झाणं । तम्हा उ निम्ममेण मुणिणा उवलद्धसुत्तसारेणं । (आवच २ पृ. २४९) काउस्सग्गो उग्गो कम्मक्खयट्ठा कायव्यो । कायोत्सर्ग के दो प्रकार हैं(आवनि १५५३,१५५४) द्रव्य कायोत्सर्ग-कायचेष्टा का निरोध, शरीर की संसार में मैंने जितने दुःखों का अनुभव किया है, स्थिरता। उनसे अति दुःसह्य और अनुपम दुःख नरक के होते भाव कायोत्सर्ग-प्रशस्त ध्यान । हैं-यह सोचकर निर्ममत्व की साधना करने वाला तथा उसिउस्सिओ य तह उस्सिओ अ उस्सिअनिसन्नओ चेव ।। सूत्र के सार को उपलब्ध मुनि अपने कर्मों को क्षीण करने निसनस्सिओ निसन्नो, निसन्नगनिसन्नओ चेव ॥ के लिए कायोत्सर्ग करे। निवन्नुसिओ निवन्नो, निवन्ननिवन्नगो अ नायव्वो।... मोहपयडीभयं अभिभवित्तु जो कुणइ काउस्सग्गं तु । (आवनि १४५९,१४६०) भयकारणे य तिविहे, नाभिभवो नेव पडिसेहो । कायोत्सर्ग के नौ प्रकार (आवनि १४५४) १. उच्छ्रित-उच्छित ६. निषण्ण-निषण्ण मोहनीयकर्म की भय आदि प्रकृतियों का अभिभव २. उच्छित ७. निपन्न-उच्छित करने के लिए अभिभव कायोत्सर्ग किया जाता है, बाह्य ३. उच्छित-निषण्ण ८. निपन्न (सुप्त) कारणों का पराभव करने के लिए नहीं। भय उत्पन्न ४. निषण्ण-उच्छित ९. निपन्न-निपन्न होने के तीन बाह्य कारण हैं-देव, मनुष्य और ५. निषण्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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