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________________ कामभोग की परिभाषा कामभोग रस और भाव कषाय कामभोग-शब्द आदि इन्द्रियविषयों का रसओ रसो कसाओ कसायकम्मोदओ य भावम्मि।... आसेवन। (विभा २९८५) १. कामभोग की परिभाषा हरीतकी आदि का जो कसैला रस है, वह रस २. द्रव्यकाम-भावकाम कषाय है। ३. दिव्य कामभोग मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला कषाय का ४. कामभोग : उपमाएं परिणाम भाव-कषाय है। ५. कामभोग के परिणाम राग कषाय के प्रकार ६. कामभोग-परित्याग के परिणाम जं रायवेयणिज्जं समुइण्णं भावओ तओ राओ। ७. पदार्थ : आध्यात्मिक दृष्टिकोण सो दिट्ठि-विसय-नेहाणुरायरूवो अभिस्संगो । ८. कामभोग-विरति का उपाय कुप्पवयणेसु पढमो बिइओ सद्दाइएसु विसएसु । १. कामभोग की परिभाषा विसयादनिमित्तो वि हु सिणेहराओ सुयाईसु ॥ ते इटा सहरसरूवगंधफासा कामिज्जमाणा विसय__ (विभा २९६४,२९६५) । पसत्तेहिं कामा भवंति ।"भोगा सहादयो विसया। राग-वेदनीयकर्म के उदय से होने वाला जीव-परि (दजिचू पृ ७५,८२) णाम भावराग है। विषयासक्त मनुष्यों द्वारा काम्य-- इष्ट शब्द, रूप, उसके तीन प्रकार हैं - गन्ध, रस तथा स्पर्श काम कहलाते हैं। १. दृष्टिराग-कुप्रवचन में अनुराग । इन्द्रिय-विषय .... शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श २. विषयराग-शब्द आदि इन्द्रिय-विषयों में म का आसेवन भोग कहलाता है। अनुराग । काम्यन्ते इति कामाः। भुज्यन्ते इति भोगाः। ३. स्नेहराग-विषय आदि के निमित्तों के अभाव ....कामौ च शब्दरूपाख्यौ । भोगाश्च स्पर्श रसगन्धाख्याः। में भी पुत्र, स्वजन आदि के प्रति होने वाला (उशावृ प २४३) अनुराग । जिनकी कामना की जाती है वे काम हैं और काकिणी-१. चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक जिनका उपभोग किया जाता है वे भोग हैं । रत्न। (द्र. चक्रवर्ती) (5. चक्रवर्ती) शब्द और रूप काम कहलाते हैं । स्पर्श, रस और २. एक प्रकार का सिक्का। गंध भोग कहलाते हैं। कागिणी णाम रूवगस्स असीतिमो भागो। वीसोव विसयसुहेसु पसत्तं अबुहजणं कामरागपडिबद्धं । उक्कामयंति जीवं धम्मातो तेण ते कामा ।। गस्स चतुभागो। (उचपृ १६१) अण्णं पि य सिं णाम कामा रोग त्ति पंडिया बॅति । एक रुपये के अस्सीवें भाग तथा विशोपक के चौथे कामे पत्थेमाणो रोगे पत्थेति खलु जंतू ।।। भाग को काकिणी कहा जाता है। काकिणिः-विंशतिकपर्दकाः। (उशाव प २७२) (दनि ७१,७२) बीस कौड़ियों की एक काकिणी होती है। विषय सुख में आसक्त और काम-राग में प्रतिबद्ध अज्ञानी जीव को जो धर्म से उत्क्रमण कराते हैं, वे काम कापोत लेश्या-अप्रशस्त भावधारा तथा उसकी हैं। ज्ञानी काम को रोग कहते हैं। जो कामों की उत्पत्ति में कापोत वर्ण पार्थना करतेने पार की प्रार्थना करते हैं, वे प्राणी निश्चय ही रोगों की प्रार्थना वाले पुद्गल । (द्र. लेश्या) करते हैं। विषीदन्ति-धर्म प्रति नोत्सहन्त एतेष्विति विषयाः । यद्वाऽऽसेवनकाले मधुरत्वेन परिणामे चाति Jain Education International For Private & Personal. Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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