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________________ कथा १७२ मिश्रकथा शुभ कर्मों के परिणामों का प्रतिपादन करने से संवेग निव्वेदणी। बितिया निव्वेदणी-इहलोए दुच्चिण्णा कुम्मा उत्पन्न होता है। जैसे-इस लोक में वैक्रिय आदि परलोए दुहविवागसंजुत्ता भवन्ति । जहा णे रतियाणं इह लब्धियां शुभ कर्मों के फलस्वरूप होती हैं। मणुस्सभवे कतं कम्म णिरयभवे फलति । ततिया निव्वेसंवेगणी चतुव्विहा, तं जहा-आतसरीरसंवेदणी, गणी-परलोए दुच्चिण्णा कम्मा इहलोकदुहविवागसंजुत्ता परसरीरसंवेदणी, इहलोगसंवेदणी, परलोगसंवेदणी। भवंति। जहा बालत्तणे चेव दरिद्कुलसंभूता खय-कुट्ठ आयसरीरसंवेदणी-जं एतं अम्हं तुभं वा सरीरयं जलोयराभिभूता। चतुत्थी निव्वेगणी-परलोए दुच्चिण्णा एयं सुक्क-सोणित-वसा-मेत-संघातनिप्फण्णं मुत्त-पूरीस- __ कम्मा परलोए चेव दुहविवागसंजुत्ता भवति । जहा पुन्वि भायणत्तणेण य असुति त्ति कहेमाणो सोतारस्स दुक्कएहि कम्मेहिं चंडालादिदुगंछितजातीजाता एकताणिसंवेगमुप्पादयति । द्धंधसा णिरयसंवत्तणीयं पूरेऊणं णिरयभवे वेदंति । परसरीरसंवेदणीए वि परसरीरमेवमेवासुति, अहवा (दअचू पृ ५७) परतो मततो, तस्स सरीरं वण्णेमाणो संवेगमप्पाएति । निवेदनी कथा के चार प्रकार हैं इहलोकसंवेदणी जहा-सव्वमेव माणुस्समणिच्चं १. इहलोक में दुश्चीर्ण कर्म इसी लोक में फल देने कदलीथंभनिस्सारं एवं संवेगमुप्पाएति । वाले होते हैं। जैसे-चोर, पारदारिक आदि के परलोकसंवेदणी जहा- जति देवेसु वि एरिसाणि कर्म। दुक्खाणि णरग-तिरिएस को विम्हतो? (दअच प ५७) २. इहलोक में दुश्चीर्ण कर्म परलोक में दुःखमय फल संवेजनी कथा के चार प्रकार हैं-- देने वाले होते हैं। जैसे-नैरयिकों को मनुष्य भव १. आत्मशरीर संवेजनी-शरीर की अशुचि का वर्णन में कृत कर्म नरक में फल देते हैं। कर श्रोता के मन में संवेग उत्पन्न करने वाली ३. पूर्वभव में दुश्चीर्ण कर्म इहभव में दुःखमय फल देने कथा। वाले होते हैं। जैसे-दरिद्रकुल में उत्पन्न कोई-कोई २. परशरीर संवेजनी-परशरीर अथवा मृतक के जीव बचपन में ही क्षय, कोढ, जलोदर आदि रोगों शरीर की अशुचि का वर्णन कर संवेग उत्पन्न करने से अभिभूत हो जाता है। वाली कथा। ४. पूर्वभव में दुश्चीर्ण कर्म परभव में दुःखमय फल देने ३. इहलोक संवेजनी-मनुष्य-जीवन की असारता वाले होते हैं। जैसे–पूर्वभव में कृत दुष्कर्मों के दिखाने वाली कथा। द्वारा चंडाल आदि जुगुप्सनीय जातियों में उत्पन्न । ४. परलोक संवेजनी-देव, तिर्यंच और नरक के जन्मों हो अत्यन्त क्रूर कर्म कर नरक में उन कर्मों का वेदन करना। की मोहमयता व दुःखमयता बताने वाली कथा। कथा से संवेग-निर्वेद निवेदनी कथा सिद्धी य देवलोगो सुकुलुप्पत्ती य होइ संवेगो। पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिज्जए जत्थ । नरगो तिरिक्खजोणी कुमाणुसत्तं च णिव्वेओ॥ इह य परत्थ य लोए कहा उणिव्वेयणी णाम ।। (दनि १०२) (दनि १०१) मुक्ति, देवलोक और सुकुल में जन्म-इनका निरूपण जिस कथा में पापकों के अशुभ विपाकों का कथन करने से श्रोता में संवेग उत्पन्न होता है । नारक, तिर्यंच हो, वह निर्वेदनी कथा है। जिस कथा में यह बताया और कुमनुष्यत्व-इनका निरूपण करने से श्रोता में जाता है कि इहलोक में किए हुए कर्म इहलोक में भी उदय में आ सकते हैं, परलोक में भी उदय में आ सकते निर्वेद उत्पन्न होता है। हैं, वह निर्वेदनी कथा है। ६. मिश्रकथा . निव्वेदणीकहा चउव्विहा, तं जहा-इहलोए धम्मो अत्थो कामो उवइस्सइ जत्थ सुत्त-कव्वेसु । दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगदुहविवागसंजुत्ता भवंति लोगे वेदे समए सा उ कहा मीसिया णामं ॥ चउभंगो। पढमे भंगे चोरपारदारियाणं पढमा (दनि १०५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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