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________________ अनेषणीय आहार'''' कोटि के नौ प्रकार हैंहनन - १. स्वयं हिंसा करना २. दूसरे से हिंसा करवाना ३. हिंसा का अनुमोदन करना पाचन - ४. स्वयं पकाना, ५. दूसरों से पकवाना ६. पचन - पाचन का अनुमोदन करना क्रयण - ७. स्वयं खरीदना, ८. दूसरों से खरीदवाना ९. खरीदने का अनुमोदन करना । इनमें प्रथम छह भेद अविशोधिकोटि के और अंतिम तीन भेद विशोधिकोटि के हैं । इन नौ कोटियों तथा उद्गम - उत्पाद - एषणा के दोषों से रहित शुद्ध आहार आदि मुनि के लिए ग्राह्य है । १०. अनेषणीय आहार आदि का दुष्परिणाम उद्देयं कीकडं नियागं, न मुंबई किंचि आहेस णिज्जं । अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता, इओ चुओ गच्छइ कट्टु पावं ॥ ( उ २०/४७) जो औद्देशिक, क्रीतकृत, नित्याग्र और कुछ भी औपम्य संख्या - संख्या प्रमाण का चौथा प्रकार । अनेषणीय को नहीं छोड़ता वह अग्नि की तरह सर्वभक्षी (द्र.संख्या) होकर पापकर्म का अर्जन करता है और यहां से मरकर औपशमिक सम्यक्त्व - मोहकर्म के उपशमं से प्राप्त दुर्गति में जाता है । (द्र. सम्यक्त्व ) अथवा घटनात्मक वचन सम्यक्त्व । जे नियागं ममायंति कीयमुद्दे सियाह । वहं ते समजणंति, इइ वृत्तं महेसिणा ।। (द ६।४८ ) १६९ जो जिस रूप में ग्रहण किया है, उसे उसी रूप में रखना - सार - असार भोजन को विभक्त न करना विधिगृहीत है । क्षमता । सदोष भिक्षा लेना तथा सरस, मनोज्ञ द्रव्य को नीरस द्रव्य से ढक देना अविधिगृहीत है । औत्पत्तिकी बुद्धि - अदृष्ट तथा अश्रुत अर्थ के विषय में तत्काल उत्पन्न होने वाली ( द्र. बुद्धि ) औदयिक भाव - कर्मों के उदय से होने वाली आत्मा की अवस्था । (द्र भाव ) औदारिक शरीर - स्थूल पुद्गलों से निष्पन्न तथा रस आदि सप्तधातुमय शरीर । ( द्र. शरीर ) औद्देशिक-अमुक-अमुक साधु को उद्दिष्ट कर बनाया जाने वाला आहार आदि । एषणा ( उद्गम ) का एक दोष । (द्र. एषणा ) जो नित्यग्र, क्रीत, औद्दे शिक और आहृत (निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से लाया गया) आहार ग्रहण करते हैं-वे प्राणिवध का अनुमोदन करते हैं - ऐसा महर्षि महावीर ने कहा है । सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाए दोसा उ । दस एसणाएँ दोसा संजोयणमाइ पंचेव ॥ ( पिनि ६६९ ) एषणा के सैंतालीस दोष हैं - उद्गम के सोलह, उत्पादना के सोलह एषणा के दस और मांडलिक के पांच । . उग्गमदोसाइजढं अहवा बीअं जहि जहापडिअं । इय एसो गहणविही असुद्ध पच्छायणे अविही || (ओभा २९५) उद्गम आदि दोषों से रहित शुद्ध भिक्षा लेना और Jain Education International कथा - काल्पनिक पद्धति | १. कथा की परिभाषा २. कथा के प्रकार • अर्थकथा ० कामकथा ० धर्मकथा • मिश्रकथा ३. अर्थकथा के अंग ४. कामकथा के अंग ५. धर्मकथा के प्रकार • आक्षेपणी • विक्षेपणी ० संवेजनी ० निर्वेदनी कथा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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