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________________ निषिद्धदायक संबंधी अपवाद १६७ एषणासमिति यह कैसा साधु, जो बच्चे से सब कुछ ले लेता है। वह बड़ा पात्र उठाकर उससे भिक्षा दे तो उसके नीचे वृद्ध, जिसके लार टपकती हो, उसके हाथ से भिक्षा रहे कीटिका आदि जन्तु मर सकते हैं। लेने से लोक में जुगुप्सा पैदा हो सकती है। उसके हाथ कर्मकर, पुत्रवधू आदि चोरी से कोई वस्तु दे तो कांपते हों, तो देय वस्तु अथवा वह स्वयं गिर सकता है। उसे लेने से ग्रहण-बन्धन-ताड़न आदि दोष संभव है। यदि घर में उसका प्रभूत्व न हो तो परिवार में अप्रीति बलि आदि के निमित्त स्थापित अयपिंड की भिक्षा भी उत्पन्न हो सकती है। लेने से प्रवर्तन आदि दोष लगते हैं। मदिरापायी, उन्मत्त आदि से भिक्षा लेने पर अन्य साधु के निमित्त स्थापित अथवा ग्लान आदि आलिंगन, पात्रभेदन, लोकगर्दा आदि दोष उत्पन्न हो के निमित्त से निर्मित भिक्षा लेने से अदत्तादान का दोष सकते हैं । कांपते व्यक्ति से भिक्षा लेने पर परिशाटन लगता है। आदि दोष संभव हैं। साधु की अनुकम्पा अथवा प्रत्यनीकता वश जानबूझ ज्वरग्रस्त अथवा कोढी से भिक्षा लेने पर रोगसंक्रमण अशुद्ध भिक्षा दे तो उसे लेने से आधाकर्म आदि एषणा हो सकता है। पादुकारूढ, बेडियों से बद्ध, हाथ- के दोष लगते हैं। पैर कटे हए-- इन व्यक्तियों से भिक्षा लेने पर लोक में इन सब दोषों की संभावना अथवा अनिवार्यता के निन्दा हो सकती है। इनके गिरने आदि से पन्तिाप हो कारण बालक आदि के हाथ से भिक्षा लेने का निषेध सकता है। किया गया है। नपंसक से निरन्तर भिक्षा लेने से काम उद्दीप्त हो निषिद्धदायक संबंधी अपवाद र सकता है। उससे अतिपरिचय होने पर लोगों में मुनि के आचार के प्रति शंका हो सकती है। भिक्ख मित्ते अवियालणा उ बालेण दिज्जमाणमि । स्तनपान कराती हुई अथवा गर्भवती स्त्री से भिक्षा संदिठे वा गहणं अइबहुय वियालणेऽणुन्ना ।। लेने पर बच्चे को कण्ट हो सकता है। थेर पह थरथरते धरिए अन्नेण दढसरीरे वा। भोजन करती हई स्त्री भिक्षा दे तो बीच में आचमन ..अव्वत्तमत्तसड्ढे अविभले वा असागरिए । सुइभद्दग दित्ताई दढग्गहे वेविए जरंमि सिवे । आदि करने पर जलजीवों की विराधना संभव है। अन्नधरियं तु सड़ढो देयंधोऽन्नेण वा धरिए । बिलौना करती हई से भिक्षा लेने में लिप्त-दोष संभव मंडलपसूतिकुट्ठीऽसागरिए पाउयागए अयले ।। धान्य का पेषण, कंडन या दलन करती हुई स्त्री से कमबद्धे सवियारे इयरे विठे असागरीए । भिक्षा लेने में सचित्त बीज आदि अथवा हाथ धोने से पंडग अप्पडिसेवी वेला थणजीवि इयर सव्वंपि । उक्खित्तमणावाए न किंचि लग्गं ठवंतीए । जल आदि की जीव-विराधना हो सकती है। पीसंती निप्पिटठे फासं वा घसूलणे असंसत्तं । इसी प्रकार रूई आदि के पिंजन, रुंचन, कर्तन आदि के समय भिक्षा देकर खरंटित हाथ धोने से जल कत्तणि असंखचन्न चुन्नं वा जा अचोक्खलिणी ।। जीवों की विराधों होती है। गेहूं आदि भुनने के समय उध्वट्टणि संसत्तेण वावि अट्ठील्लए न घट्टेइ । भिक्षा देने से गेहं आदि के जलने की संभावना रहती है। पिंजणपमद्दणेसु य पच्छाकम्मं जहा नत्थि ॥ सेसेसु य पडिवक्खो न संभवइ कायगहणमाईस् । लवण, उदक, अग्नि, हवा भरी हुई मशक, बीजयुक्त फल आदि को नीचे रखती हई, सचित्त पृथ्वी आदि का पडिवक्खस्स अभावे नियमा उ भवे तयग्गहणं ॥ स्पर्शन, खनन अथवा संघटन करती हई, सचित्त जल (पिनि ५९७-६०४) से स्नान, प्रक्षालन, सिंचन आदि करती हई स्त्री भिक्षा बालक, वृद्ध आदि के हाथ से भिक्षा लेने का निषेध दे तो इससे छह जीवनिकाय के आरंभ से हिंसा का दोष वैकल्पिक है- निम्न स्थितियों में उनके हाथ से भिक्षा लगता है। ली जा सकती हैदही आदि से संसक्त हाथ आदि से भिक्षा लेने से बालक को मां आदि से अनुज्ञा प्राप्त होने पर उससे रसजीवों की हिंसा होती है। भिक्षा ली जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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