SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एषणा के प्रकार १५७ एषणासमिति आधार पर इसके पांच प्रकार हैं ३. उद्गम-उत्पादन की परिभाषा १. अल्पाहार-- आठ ग्रास प्रमाण । ४. उद्गम बोषों के प्रकार और विवरण २. अपार्द्ध -- बारह ग्रास प्रमाण । ५. उदगम : विशोधिकोटि-अविशोधिकोटि ३. द्विभाग- सोलह ग्रास प्रमाण । ६. उत्पादन दोषों के प्रकार ४. प्रमाणोपेत-चौबीस ग्रास प्रमाण । ७. ग्रहणषणा की परिभाषा ५. किंचित ऊनोदरी- इकतीस ग्रास प्रमाण । ८. ग्रहणषणा के प्रकार और विवरण भाव ऊनोदरी ९. नवकोटि शुद्ध भिक्षा भावोमोयरिया चउण्हं कसायाणं उदयनिरोहो उदय- १०. अनेषणीय आहार आदि के दुष्परिणाम प्पत्तविफलीकरणं च । (दअचू पृ १३) * एषणा : समिति का एक प्रकार (द्र. समिति) क्रोध आदि चार कषायों के उदय का निरोध और * एषणा के सात प्रकार (द्र. भिक्षाचर्या) उदयप्राप्त का विफलीकरण भाव ऊनोदरी है। * औद्देशिक आदि अनाचार (द्र. अनाचार) * निर्दोष आहार ग्रहण-विधि (द्र. गोचरचर्या) ऋजुमति-मनःपर्यवज्ञान का एक भेद । * सदोष भिक्षा और कायोत्सर्ग (द्र. कायोत्सर्ग) (द्र. मनःपर्यवज्ञान) ऋजुसूत्र-वर्तमान पर्याय को स्वीकार करने वाला १. एषणा को परिभाषा अभिप्राय । वर्तमान क्षण को ग्रहण एषणासमिति म गोचरगतेन मुनिना सम्यगुप करने वाला दृष्टिकोण। (द्र. नय) युक्तेन नवकोटिपरिशुद्धं ग्राह्यम् । (आवहावृ २ पृ८४) ऋद्धि-ऐश्वर्य। (द्र. लब्धि गोचरचर्या के समय मनि सावधानी से नवकोटि ) ऋषभ-प्रथम तीर्थंकर द्र. तीर्थंकर) परिशुद्ध भिक्षा ग्रहण करता है, इसे एषणा समिति कहा जाता है। एकत्व भावना-अपने आपमें अकेलेपन का अनुभव एत्थ य समणसुविहिया परकडपरनिट्ठियं विगयधूमं । करना। (द्र. अनुप्रेक्षा) आहारं एसंति जोगाणं साहणट्ठाए । एकसिद्ध-एक समय में एक जीव का सिद्ध होना । (दनि ४३) (द्र. सिद्ध) संयमयोगों की साधना के लिए श्रमण दूसरों के लिए एकेन्द्रिय-वे जीव जिनके केवल एक स्पर्शनेन्द्रिय कृत --निष्पन्न, धूम आदि दोषों से मुक्त आहार की ही होती है। (द्र. जीव) एषणा करते हैं। एवंभत-क्रिया की परिणति के अनरूप ही शब्द २. एषणा के प्रकार के प्रयोग को स्वीकार करने वाला गवसणाए गहणे य, परिभोगेसणा य जा। अभिप्राय। (द्र, नय) आहारोवहिसेज्जाए, एए तिन्नि विसोहए ।। (उ २४१११) एषणासमिति-कल्पनीय आहार, पानी आदि को एषणा के तीन प्रकार हैं--गवेषणा, ग्रहणषणा और गवंषणा करना। समिति का परिभोगैषणा । मुनि आहार, उपधि और शय्या के विषय तीसरा भेद। में इन तीनों का विशोधन करे। उग्गमुप्पयणं पढमे, बीए सोहेज्ज एसणं । १. एषणा की परिभाषा परिभोयंमि चउक्कं, विसोहेज्ज जयं जई ।। २. एषणा के प्रकार (उ २४/१२) ० गवेषणा-उदगम और उत्पादन के दोष यतनाशील यति प्रथम एषणा में उद्गम और उत्पादन • ग्रहणषणा-एषणा के दोष के दोषों का शोधन करे। दूसरी एषणा में एषणा * परिभोगषणा-मांडलिक दोष (द्र. आहार) ) सम्बन्धी दोषों का शोधन करे और परिभोगैषणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy