SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवश्यक भाव आवश्यक के निक्षेप 1 ..... भावावस्वं दुविहं पण्णत्तं तं जहा – आगमओ य नोआगमओ य । ( अनु २२ ) भाव आवश्यक के दो प्रकार हैं-आगमतः और नोआगमतः । आगमतः भावावश्यक ...आगमन भावावस्तयं - जाणए उनउत्ते ।..." ( अनु २३) जो आवश्यक को जानता है और उसमें उपयुक्त ( दत्तचित्त ) है, वह आगमतः भाव आवश्यक है । नोआगमतः भावावश्यक .....नो आगमओ भावावस्सयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा - लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं । ( अनु २४ ) नोआगमतः भाव आवश्यक के तीन प्रकार हैंलौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक । लौकिक भावावश्यक लोइयं भावावस्सयं पुण्यण्हे भारहं अवरण्हे रामायणं । ( अनु २५ ) (वक्ता और श्रोता) पूर्वाह्न में भारत और अपराह्न में रामायण के पाठ में उपयुक्त होते हैं, वह लौकिक भाव आवश्यक है । कुप्रावचनिक भावावश्यक जे इमे चरग चीरिय-चम्मखंडिय भिक्खोंड इज्जंजलि - होम-जप-दुरुक्क नमोक्कारमाइयाई भावावस्तयाई करेंति । से तं कुप्पावयणियं भावावस्तयं ( अनु २६) जो चरक, चीरिक, चर्मखण्डिक, भिक्षाजीवी आदि विभिन्न सम्प्रदायों के अनुयायी देव पूजा, अञ्जलि, होम, जप, देव आदि के सामने बैल की तरह रंभाना और नमस्कार आदि भावयुक्त आवश्यक क्रियाओं को सम्पन्न करते हैं, वह कुप्रावनिक भाव आवश्यक है । लोकोतरिक भावावश्यक १२९ जणं इमं समणे वा समणी वा सावए वा साविया वा तच्चिते तम्मणे अण्णत्य कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओ काल आवस्यं करेति से तं लोगुत्तरियं भावादस्वयं । ( अनु २७ ) जो साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका आवश्यक I Jain Education International में एक चित्त, एक मन अन्यत्र कहीं भी मन की प्रवृत्ति नहीं करते हुए, दोनों समय (प्रात: और सायं) आवश्यक करते हैं, वह लोकोत्तरिक भाव आवश्यक है । आवश्यकव्यतिरिक्त अंगबाह्य का एक भेद । । (द्र. अंगबाह्य) आवश्यकी सामाचारी का एक भेद । उपाश्रय से बाहर जाते समय 'आवस्सर' शब्द का उच्चारण करना । (द्र. सामाचारी) आशातना - अवमानना। ज्ञान आदि गुणों का नाश करने वाली क्रिया । १. आशातना की परिभाषा २. आशातना के प्रकार आशातना ३. आशातना की फलश्रुति ४. एक की आशातना -- सबकी आशातना * आचार्य की आशातना के परिणाम (द्र आचार्य) * अनाशातना विनय (द्र. विनय ) १. आशातना की परिभाषा आसायणाणामं नाणादिआयस्स सातणा । ( आवचू २ पृ २१२ ) सम्यक्त्वादिलाभं शातयति - विनाशयतीत्याशातना । ( उशाबू प ५७८) सम्यक्त्व, ज्ञान आदि की उपलब्धि में बाधा अथवा न्यूनता उत्पन्न करने वाली अवज्ञापूर्ण प्रवृत्ति आमावना कहलाती है । २. (क) आशातना के प्रकार १. अरहंताणं आसायणाए २. सिद्धाणं आसायणाए ३. आयरियाणं आसावणाए ४ उवज्झायाणं आसायजाए ५. साहूणं आसायणाए ६. साहूणीणं आसायणाए ७. सावयाणं आसायणाए ८ सावियाणं आसायणाए ९. देवाणं आसायणाग १०. देवीणं आसायणाए ११. इहलोगस्स आसायणाए १२. परलोगस्स आसायणाए १३. केवलिपण्णत्तस्स धम्मस्स आसायणाए १४. सदेवमणासुरस्स 'लोगस्स आसायणाए १५. सव्वपाणभूतजीवसत्ताणं आसायणाए १६. कालस्स आसायणाए १७. सुयस्स आसायण ए १८. सुयदेवयाए आसायणाए १९. वायणा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy