SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आभिनिबोधिक ज्ञान ११२ व्यञ्जनावग्रह : परिभाषा मतिज्ञान के विविध भेदों का हेतु है--निमित्तों की ७. व्यञ्जनावग्रह : परिभाषा विचित्रता-- वंजिज्जइ जेणत्थो घडोव्व दीवेण वंजणं तं च । १. बाह्य निमित्त --आलोक, विषय आदि । उवगरणिदियसद्दाइपरिणयद्दव्वसंबंधो । २. आभ्यन्तर निमित्त-आवरण का क्षयोपशम, (विभा १९४) उपयोग इन्द्रिय तथा उपकरण इन्द्रिय । दीपक से घट की भांति जिससे अर्थ अभिव्यंजित इन निमित्तों के किञ्चिन्मात्र भेद से मतिज्ञान के होता है, वह व्यञ्जन है। उपकरण इन्द्रिय और शब्द अनन्त प्रकार होते हैं तथा मतिज्ञान से युक्त जीव अनन्त आदि रूप में परिणत द्रव्य का परस्पर संबंध होना होने के कारण और उनके मतिज्ञान के क्षयोपशम की व्यंजन है। भिन्नता के कारण भी उसकी अनन्तता है। उपकरणेन्द्रिय शब्दादिपरिणतद्रव्यसम्बन्धे प्रथम६. अवग्रह : परिभाषा समयादारभ्यार्थावग्रहात् प्राक् या सुप्तमत्तमूच्छितादिरूप-रसादिभेदरनिर्देश्यस्याऽव्यक्तस्वरूपस्य सामा पुरुषाणामिव शब्दादिद्रव्यसम्बन्धमात्रविषया 'काचिदन्यार्थस्याऽवग्रहणं परिच्छेदनमवग्रहः।" अर्थानां रूपा व्यक्ता ज्ञानमात्रा सा व्यञ्जनावग्रहः । दीनां प्रथम दर्शनानन्तरमेवावग्रहणमवग्रहं ब्रवते । (नन्दीमवृ प १६९) (विभामवृ पृ ९०) उपकरण इन्द्रिय और शब्द आदि रूप में परिणत जिसमें रूप, रस आदि का निर्देश न किया जा सके, द्रव्य का संबंध होने पर प्रथम समय से लेकर अर्थावग्रह जिसका स्वरूप स्पष्ट न हो, उस सामान्य मात्र अर्थ का से पूर्व का जो अव्यक्त ज्ञान है, वह व्यञ्जनावग्रह है। ग्रहण अवग्रह है। यह अव्यक्त ज्ञान सुप्त-मत्त-मच्छित पुरुष के ज्ञान जैसा होता है। (इन्द्रिय और पदार्थ का संबंध रूप योग होने पर अस्तित्व मात्र का आभास होना दर्शन है।) दर्शन के प्रकार बाद सामान्य रूप से पदार्थ का ग्रहण अवग्रह है। - वंजणुग्गहे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियपर्याय वंजणुग्गहे, घाणिदियवंजणुग्गहे, जिभिदियवंजणुग्गहे; फासिदियवंजणुग्गहे । (नन्दी ४१) उग्गहस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाधोसा नाणावंजणा व्यञ्जनावग्रह के चार प्रकार हैंपंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा-ओगेण्हणया उवधारणया सवणया अवलंबणया मेहा। (नन्दी ४३) १. श्रीन्द्रिय व्यञ्जनावग्रह, २. घ्राणेन्द्रिय व्यञ्जनावग्रह, ३. जिह्वन्द्रिय व्यञ्जनावग्रह, ४. स्पर्शनेअवग्रह के नाना घोष और नाना पर्याय वाले पांच न्द्रिय व्यञ्जनावग्रह ।। एकार्थक हैं-- मल्लक का दृष्टांत १. अवग्रहण, २. उपधारण, ३. श्रवण, ४. अवलम्बन, ५. मेधा। मल्लगदिद्रुतेणं -से जहानामए केइ पुरिसे आवाग सीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिन्दु पक्खिविज्जा प्रकार से नठे, अण्णे पक्खित्ते से वि नठे। एवं पक्खिप्पउग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अत्थुग्गहे य माणेस-पक्खिप्पमाणेस होही से उदगबिन्दु जेणं तं वंजणुग्गहे य। (नन्दी ४०) मल्लगं रावेहिति, होही से उदगबिन्दू जेणं तंसि अवग्रह दो प्रकार का है-अर्थ अवग्रह और मल्लगंसि ठाहिति, होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लग व्य ञ्जन अवग्रह। भरेहिति, होही से उदगबिन्दू जेणं तं मल्लगं पवाहेहिति । तत्थुग्गहो दुरू वो गहणं जं होज्ज वंजणत्थाणं ।... एवामेव पक्खिप्पमाणेहि-पक्खिप्पमाणेहिं अणंतेहिं पुग्ग - (विभा १९३) लेहिं जाहे तं वंजणं पुरियं होइ, ताहे 'हुँ' ति करेइ, नो - व्यंजन और अर्थ का ग्राहक होने के कारण अवग्रह चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ ? तओ ईहं पविसइ, तओ दो प्रकार का है। जाणइ अमुगे एस सद्दाइ। तओ अवायं पविसइ, तओ से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy