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________________ वीर्य आचार ० स्नान वर्जन ० विभूषा वर्जन ८. अकल्प आदि के वर्जन का प्रयोजन ९. आचार-समाधि के प्रकार १०. आचार-सम्पन्नता के परिणाम ११. आचार - अतिक्रमण के चार स्थान • अतिक्रम ● व्यतिक्रम ० अतिचार * अनाचार १२. अतिचार क्या ? १३. अतिचार का हेतु १४. ज्ञान के अतिचार • दर्शन के अतिचार भावक का आचार * श्रमण का आचार आचारपालन में प्रमत्त: पापश्रमण १. आचार की परिभाषा शिष्टाचरितो ज्ञानाद्यासेवनविधिः । ( नन्दीहाव पृ७५ ) आचारो वेषधारणादिको बाह्य क्रियाकलापः । ( उशावृप ४९९ ) (प्र. अनाचार ) आचार के पांच प्रकार हैं १. दर्शन आचार आचार का अर्थ है शिष्ट व्यक्तियों द्वारा आचीर्ण ज्ञान दर्शन आदि के आचरण – अभ्यास की विधि । आचार का अर्थ है - वेश धारण आदि बाह्य क्रिया कलाप । २. ज्ञान आचार ३. चारित्र आचार (प्र. सम्यक्त्व ) (द्र धावक ) (प्र. भ्रमण) (द्र. श्रमण ) २. आचार के प्रकार दंसण नाण चरिते तवबायारे य वीरियायारे । एसो भावायारो पंचविहो होइ नायव्वो ॥ (दनि ६६) Jain Education International ८५ ४. तप आचार ५. वीर्य आचार । ३. ज्ञान के आचार काले विषये बहुमाणे उवहाणे तहा अनिण्हवणे । वंजण अत्थ तदुभए अट्टविहो नाणमायारो ॥ ( दनि ८० ) ज्ञानाचार के आठ प्रकार काल श्रुत का अध्ययन करने के लिए निर्दिष्टकाल में श्रुत का अभ्यास करना । विनय - ज्ञानप्राप्ति के प्रयत्न में विनम्र रहना । बहुमान ज्ञान के प्रति आन्तरिक अनुराग रखना । उपधान - श्रुतवाचन के समय आयम्बिल आदि विशेष तप का अनुष्ठान करना । अनिवन ज्ञान और ज्ञानदाता आचार्य का गोपन न करना । आचार सूत्र - सूत्र का वाचन करना । अर्थ - अर्थ का वाचन करना । सूत्रार्थ सूत्र और अर्थ दोनों का वाचन करना । ४. चारित्र के आचार ―1 पणिहाणजोगजुत्ता पंचहि समितीहि तिहि य गुत्तीहि । एस चरितायारो अटुविहो होइ णायव्वो । (दनि ८९) चारित्राचार के आठ प्रकार पांच समिति और तीन गुप्ति । ( द्र समिति, गुप्ति ) ५. तप आचार वारसविहम्मि वि तवे सम्भितर बाहिरे कुसल दिट्ठे । अगिलाए अणाजीवी णायव्वो सो तवायारो ॥ ( दनि ९० ) पूजा-प्रतिष्ठा की आकांक्षा से विहीन, अदीनभाव से बारह प्रकार के बाह्य और आभ्यंतर तप का आचरण करना तप आचार है । ( द्र. तप ) ६. वीर्य आचार For Private & Personal Use Only अणिगूहितबल विरिओ परक्कमति जो जहुत्तमाउस्तो । जुंज य जहाथामं णावब्बो वीरियायारो ॥ (दनि ९१ ) अपनी शक्ति का गोपन न करते हुए ज्ञान-दर्शनचारित्र-तप की आराधना में पराक्रम करना वीर्याचार है । उसके छत्तीस प्रकार हैं ज्ञान के आठ आचार www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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